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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 16
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    इन्द्रं॑ वो वि॒श्वत॒स्परि॒ हवा॑महे॒ जने॑भ्यः। अ॒स्माक॑मस्तु॒ केव॑लः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । व॒: । वि॒श्वत॑: । परि॑ । हवा॑महे । जने॑भ्य: ॥ अ॒स्माक॑म् । अ॒स्तु॒ । केव॑ल: ॥७०.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं वो विश्वतस्परि हवामहे जनेभ्यः। अस्माकमस्तु केवलः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । व: । विश्वत: । परि । हवामहे । जनेभ्य: ॥ अस्माकम् । अस्तु । केवल: ॥७०.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 16

    भावार्थ -
    (विश्वतः जनेभ्यः) समस्त जनों के (परि) ऊपर विद्यमान उस (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर की हम (हवामहे) स्तुति करते हैं। वह (केवलः) केवल, अद्वितीय परमेश्वर ही (अस्माकम्) हमारा और (वः) तुम्हारा सहायक है। राजा भी सबके ऊपर विद्यमान होकर अकेला ही सबका हितकारी है। देखो अथर्व का० २०। ३१। १॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—१,२,६-२० इन्द्रमरुतः, ३-५ मरुतः॥ छन्दः—गायत्री॥

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