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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 7
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    इन्द्र॒मिद्गा॒थिनो॑ बृ॒हदिन्द्र॑म॒र्केभि॑र॒र्किणः॑। इन्द्रं॒ वाणी॑रनूषत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । इत् । गा॒थिन॑: । बृ॒हत् । इन्द्र॑म् । अ॒र्केभि॑: । अ॒र्किण॑: ॥ इन्द्र॑म् । वाणी॑: । अ॒नू॒ष॒त॒ ॥७०.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः। इन्द्रं वाणीरनूषत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । इत् । गाथिन: । बृहत् । इन्द्रम् । अर्केभि: । अर्किण: ॥ इन्द्रम् । वाणी: । अनूषत ॥७०.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    (गाथिनः) उद्गाता लोग, गाथा द्वारा स्तुति करने वाले (इन्द्रम् इत् अनूषत) उस इन्द्र ऐश्वर्यवान् परमेश्वर की ही स्तुति करते हैं। (अर्किणः) अर्चना करने वाले विद्वान् पुरुष (अर्केभिः) वेदमन्त्रों से (इन्द्रम् इत् अनूषत) उस इन्द्र की ही स्तुति करते हैं और (वाणीः) यजुर्वेद की गद्यमय वाणियें भी (इन्द्रम् अनूषत) इन्द्र की ही स्तुति करती हैं। राजा के पक्ष में—(गाथिनः) श्लोकपाठकः वन्दीजन, (अर्किणः) अर्चना करने हारे और (वाणीः) उत्तम वाणिएं सभी राजा की स्तुति करते हैं या उसके गुणों का प्रतिपादन करते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—१,२,६-२० इन्द्रमरुतः, ३-५ मरुतः॥ छन्दः—गायत्री॥

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