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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 142 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 142/ मन्त्र 2
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - अग्निः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    घृ॒तव॑न्त॒मुप॑ मासि॒ मधु॑मन्तं तनूनपात्। य॒ज्ञं विप्र॑स्य॒ माव॑तः शशमा॒नस्य॑ दा॒शुष॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    घृ॒तऽव॑न्तम् । उप॑ । मा॒सि॒ । मधु॑ऽमन्तम् । त॒नू॒ऽन॒पा॒त् । य॒ज्ञम् । विप्र॑स्य । माऽव॑तः । श॒श॒मा॒नस्य॑ । दा॒शुषः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    घृतवन्तमुप मासि मधुमन्तं तनूनपात्। यज्ञं विप्रस्य मावतः शशमानस्य दाशुष: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    घृतऽवन्तम्। उप। मासि। मधुऽमन्तम्। तनूऽनपात्। यज्ञम्। विप्रस्य। माऽवतः। शशमानस्य। दाशुषः ॥ १.१४२.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 142; मन्त्र » 2
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे तनूनपाद्विद्वँस्त्वं मावतो दाशुषः शशमानस्य विप्रस्य घृतवन्तं मधुमन्तं यज्ञमुपमासि ॥ २ ॥

    पदार्थः

    (घृतवन्तम्) बहुघृतयुक्तम् (उप) (मासि) परिमिमीषे (मधुमन्तम्) प्रशस्तमधुरादिगुणयुक्तम् (तनूनपात्) यस्तनूं शरीरं न पातयति तत्सम्बुद्धौ (यज्ञम्) (विप्रस्य) मेधाविनः (मावतः) मत्सदृशस्य (शशमानस्य) दुःखमुल्लङ्घतः (दाशुषः) दातुः ॥ २ ॥

    भावार्थः

    विद्यार्थिभिर्विदुषां संगतिं कृत्वा विद्वदुपमया भवितव्यम् ॥ २ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (तनूनपात्) शरीर को नष्ट न करनेवाले विद्वन् ! आप (मावतः) मेरे सदृश (दाशुषः) दानशील (शशमानस्य) और दुःख उल्लंघन किये (विप्रस्य) मेधावी जन के (घृतवन्तम्) बहुत घृत और (मधुमन्तम्) प्रशंसित मधुरादि गुणों से युक्त (यज्ञम्) यज्ञ का (उप, मासि) परिमाण करनेवाले हो ॥ २ ॥

    भावार्थ

    विद्यार्थियों को विद्वानों की सङ्गति कर विद्वानों के सदृश होना चाहिये ॥ २ ॥

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    विषय

    'स्वस्थ, दीप्त, मधुर' जीवन

    पदार्थ

    १. हे (तनूनपात्) = हमारे शरीरों को न गिरने देनेवाले प्रभो! आप (यज्ञम्) = जीवनयज्ञ को (घृतवन्तम्) = मलों के क्षरण द्वारा स्वस्थ शरीरवाला तथा ज्ञानदीप्तिवाला, (मधुमन्तम्) = और माधुर्यवाला, (उप मासि) = समीप रहते हुए बनाते हैं। उस तनूनपात् प्रभु की कृपा से हमारा जीवन शरीर में स्वास्थ्यवाला, मस्तिष्क में ज्ञानदीप्तिवाला तथा हृदय में माधुर्यवाला होता है। २. प्रभु ऐसा जीवन यज्ञ किसका बनाते हैं? उसका जो [क] (विप्रस्य) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाला है, [ख] (मा वत:) = जो मा प्रमा ज्ञानलक्ष्मीवाला है, [ग] (शशमानस्य) = [शंसमानस्य - निरु०] जो प्रभु का शंसन करता है अथवा जो प्लुतगतिवाला है, आलस्यशून्य, क्रियाशील है, [घ] (दाशुषः) = दाश्वान् है, देनेवाला अथवा प्रभु के प्रति अर्पण करनेवाला है। इस प्रकार 'विप्र, मावान्, शशमान व दाश्वान्' बनने पर हमारा जीवनयज्ञ स्वस्थ, दीप्त व माधुर्यवाला बनता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभुकृपा से हमारा जीवन 'स्वस्थ, दीप्त व मधुर' हो ।

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    विषय

    तनूनपात् का रहस्य ।

    भावार्थ

    ( तनूनपात् ) देह को न गिरने देने से जाठर अग्नि ‘तनूनपात्’ है । तनू अर्थात् सूक्ष्म ‘आपः’ उनसे ओषधि काष्ठादि और काष्ठों से अग्नि इस प्रकार जलों का नपात् अर्थात् नाती भौतिक अग्नि है । वह जिस प्रकार स्तुतिशील हविदाता पुरुष के ( घृतवन्तं मधुमन्तं यज्ञं ) घृत और व्रीहि आदि अन्न से युक्त यज्ञ को सम्पादित करता है उसी प्रकार हे ( तनूनपात् ) प्रजा के शरीरों और विस्तृत राष्ट्र को न गिरने देने वाले विद्वन् ! और राजन् ! तू ( शशमानस्य ) कष्टों को पार करने वाले ( दाशुषः ) अपने को तेरे प्रति आत्मसमर्पण कर देने वाले (मावतः) मेरे जैसे ( विप्रस्य ) मेधावी बुद्धिमान् जन के (घृतवन्तं) जल से पूर्ण, और ( मधुमन्तं ) अन्न से समृद्ध ( यज्ञं ) उत्तम प्रजापालक राष्ट्र को ( उपमासि ) सम्पादन कर, उसको संचालित कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ देवता—१, २, ३, ४ अग्निः । ५ बर्हिः । ६ देव्यो द्वारः । ७ उषासानक्ता । ८ दैव्यौ होतारौ । ६ सरस्वतीडाभारत्यः । १० त्वष्टा । ११ वनस्पतिः । १२ स्वाहाकृतिः । १३ इन्द्रश्च ॥ छन्दः—१, २, ५, ६, ८,९ निचृदनुष्टुप् । ४ स्वराडनुष्टुप् । ३, ७, १०, ११, १२ अनुष्टुप् । १३ भुरिगुष्णिक् ॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्यार्थ्यांनी विद्वानांची संगती करून विद्वानांसारखे बनावे. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, light and spirit of yajna, protector and preserver of the body, you are the measure of yajna and with your presence bless the ghrta-sprinkled honey- sweet fragrant yajna of the adoring generous sagely yajamana faithful like me.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The pupils should emulate their teachers (Gurus).

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    An ideal pupil does not allow his body to become weak and waste his energy. Such persons come and participate with Yajna performed by the intelligent persons. Likewise I make an attempt to rise above all kinds of miseries and grief and liberally donate for this cause.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The pupils should become like enlightened ones and they should have association with wise and intellectual persons.

    Foot Notes

    (तनूनपात्) यः तनूं शरीरं न पातयति तत्सम्बुद्धौ = He who does not allow his body to fall down or who does not waste his energy. (श्वशमानस्य) दुःखमुल्लेघत: = Rising above miseries.

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