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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 142 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 142/ मन्त्र 9
    ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः देवता - सरस्वतीळाभारत्यः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    शुचि॑र्दे॒वेष्वर्पि॑ता॒ होत्रा॑ म॒रुत्सु॒ भार॑ती। इळा॒ सर॑स्वती म॒ही ब॒र्हिः सी॑दन्तु य॒ज्ञिया॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शुचिः॑ । दे॒वेषु॑ । अर्पि॑ता । होत्रा॑ । म॒रुत्ऽसु॑ । भार॑ती । इळा॑ । सर॑स्वती । म॒ही ब॒र्हिः । सी॒द॒न्तु॒ । य॒ज्ञियाः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुचिर्देवेष्वर्पिता होत्रा मरुत्सु भारती। इळा सरस्वती मही बर्हिः सीदन्तु यज्ञिया: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुचिः। देवेषु। अर्पिता। होत्रा। मरुत्ऽसु। भारती। इळा। सरस्वती। मही बर्हिः। सीदन्तु। यज्ञियाः ॥ १.१४२.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 142; मन्त्र » 9
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    या देवेष्वर्पिता होत्रा मरुत्सु भारती शुचिरिळा सरस्वती मही च यज्ञिया बर्हिः सीदन्तु ताः सर्वे विद्यार्थिनः प्राप्नुवन्तु ॥ ९ ॥

    पदार्थः

    (शुचिः) पवित्रा (देवेषु) विद्वत्सु (अर्पिता) समर्पिता (होता) दातुमादातुमर्हा (मरुत्सु) स्तावकेषु (भारती) धारणपोषणकर्त्री (इळा) प्रशंसितुं योग्या (सरस्वती) प्रशस्तविज्ञानसम्बधिनी (मही) पूजितुं सत्कर्त्तुमर्हा (बर्हीः) उपगतं वृद्धम् (सीदन्तु) प्राप्नुवन्तु (यज्ञियाः) यज्ञसाधनाऽर्हाः ॥ ९ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्यार्थिभिरेवमाशंसितव्यं या विद्वत्सु विद्या वाणी वर्त्तते साऽस्मान्प्राप्नोतु ॥ ९ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    जो (देवेषु) विद्वानों में (अर्पिता) समर्पण की हुई (होत्रा) देने-लेने योग्य क्रिया वा (मरुत्सु) स्तुति करनेवालों में (भारती) धारण-पोषण करनेवाली (शुचिः) पवित्र (इळा) प्रशंसा के योग्य (सरस्वती) प्रशंसित विज्ञान का सम्बन्ध रखनेवाली (मही) और बड़ी (यज्ञियाः) यज्ञ सिद्ध कराने के योग्य क्रिया (बर्हिः) समीप प्राप्त बढ़े हुए व्यवहार को (सीदन्तु) प्राप्त होवे उनको समस्त विद्यार्थी प्राप्त होवें ॥ ९ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्यार्थियों को ऐसी इच्छा करनी चाहिये कि जो विद्वानों में विद्या वा वाणी वर्त्तमान है, वह हमको प्राप्त होवे ॥ ९ ॥

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    विषय

    'भारती, इळा, सरस्वती, मही'

    पदार्थ

    १. (शुचिः) = शुद्ध, (देवेषु) = अर्पिता सृष्टि के आरम्भ में 'अग्नि, वायु, आदित्य व अङ्गिरा' नामक देवताओं में स्थापित की गई (होत्रा) = यह वेदवाणी (मरुत्सु) = प्राणसाधक पुरुषों में (भारती) = भरण करनेवाली होती है। वेदवाणी में किसी प्रकार की ग़लती न होने से वह शुद्ध है। प्रभु इसे अग्नि आदि को प्राप्त कराते हैं। प्राणसाधना करनेवाले पुरुष इसके द्वारा पोषित होते हैं। २. ऋग्वेद में इस वाणी का नाम [क] 'भारती' है, क्योंकि यह प्रकृति का ज्ञान देती हुई उचित प्रकार से हमारा भरण करती है, [ख] यही वाणी यजुर्वेद में 'इळा' कहलाती है [इळा-food, the earth] यजुर्वेद में प्रतिपादित यज्ञों के द्वारा यह पृथिवी में अन्नोत्पत्ति का कारण बनती है, [ग] सामवेद में यह 'सरस्वती' है। ब्रह्मा की पत्नी के रूप में यह हमें ब्रह्म का ज्ञान देनेवाली होकर ब्रह्म में यह 'सरस्वती' है। ब्रह्मा की पत्नी के रूप में यह हमें ब्रह्म का ज्ञान देनेवाली होकर ब्रह्म की ओर ले चलती है, [घ] अथर्ववेद में यह वाणी 'मही' हो जाती है— रोगों व युद्धों से बचाकर यह हमारी उन्नति का कारण बनती है[मह to grow, increase]। ३. 'भारती, इळा, सरस्वती, मही' – ये सब वाणियाँ (यज्ञियाः) = संगतिकरण योग्य हैं। ये (बर्हिः सीदन्तु) = हमारे हृदयान्तरिक्ष में निवास करें। इस वेदवाणी के लिए हमारे हृदय में आदर का भाव हो। इसके अध्ययन को हम पवित्र कार्य समझते हुए प्रतिदिन करनेवाले बनें। इसके अध्ययन में हम कभी प्रमाद न करें। अवकाश में इसका अध्ययन और भी अधिक पुण्यमय समझा जाए।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम वेदवाणी को अपनाते हुए अपने जीवन को शुद्ध बनाएँ।

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    विषय

    भारती, इळा, सरस्वती, और होत्रा का वर्णन ।

    भावार्थ

    जो ( देवेषु ) विद्वानों और व्यवहारज्ञ और ज्ञानप्रद गुरु जनों में ( अर्पिता ) गुरु परम्परा से प्राप्त (शुचिः) शुद्ध ( होत्रा ) शिष्य परम्परा से प्राप्त करने योग्य विद्यामयी वाणी है और जो ( मरुत्सु ) विद्वान् और वीर प्रजाजनों में ( भारती ) प्रजापालक राजाओं की वाणी है और जो ( इळा ) पूज्य ईश्वरोपासना योग्य और ( सरस्वती ) प्रशस्त ज्ञान वाली ( मही ) बड़ी भारी दानयोग्य उत्तम वेद वाणी हैं वे सब ( यज्ञियाः ) यज्ञ, अर्थात् परमेश्वर, और श्रेष्ठ कर्म तथा उपासनादि के योग्य हैं । वे सब ( बर्हिः ) वृद्धिशील पुरुष और विद्यार्थी जन में (सीदन्तु) विराजें। अथवा होत्रा—ऋग्वेद, भारती यजुर्वेद, इळा सामवेद, सरस्वती अथर्ववेद ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    दीर्घतमा ऋषिः ॥ देवता—१, २, ३, ४ अग्निः । ५ बर्हिः । ६ देव्यो द्वारः । ७ उषासानक्ता । ८ दैव्यौ होतारौ । ६ सरस्वतीडाभारत्यः । १० त्वष्टा । ११ वनस्पतिः । १२ स्वाहाकृतिः । १३ इन्द्रश्च ॥ छन्दः—१, २, ५, ६, ८,९ निचृदनुष्टुप् । ४ स्वराडनुष्टुप् । ३, ७, १०, ११, १२ अनुष्टुप् । १३ भुरिगुष्णिक् ॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्यार्थ्यांनी अशी इच्छा बाळगली पाहिजे, की विद्वानांजवळ असलेली विद्या व वाणी आम्हाला प्राप्त व्हावी. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Bright and pure, delivered and entrusted to the divine visionaries and dynamic Maruts, vibrations of universal mind and brilliant teachers, holy media of communication between the divine and human, Bharati, mother speech of the nation for sustenance, Ila, divine articulation of Omniscience, Sarasvati, everflowing Word of the Veda, and Mahi, mother spirit of the earth, all these, we pray, may grace our house of yajna for honour and adoration and for mutual discourse.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Duties of the pupils defined.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    All students should try to achieve that wisdom and speech which is dedicated to the enlightened truthful devotees. It should be pure, acceptable qualitative and should uphold and sustain admirable and adorable true knowledge. May such wisdom and speech which are helpful in the performance of YAJNA, be achieved in all our important dealings.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The students should always intensely desire to acquire splendid wisdom and the noble speech like that of the enlightened persons.

    Foot Notes

    ( होत्ना ) दातुमादातुमर्हा = Worth giving and acceptable. (मरुत्सु) स्तावकेषु = Among the devotees or performers of the Yajna. (भारती) धारणपोषणकर्त्री = Upholder and sustainer. ( इड़ ) प्रशंसितुं योग्या = Admirable. (सरस्वती) प्रशस्त विज्ञानसंबंधिनी = Belonging to or full of true knowledge. (बर्हि:) उपगतं वृद्धम् (व्यवहारम् ) = Great dealing.

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