ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 142/ मन्त्र 7
ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यः
देवता - उषासानक्ता
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
आ भन्द॑माने॒ उपा॑के॒ नक्तो॒षासा॑ सु॒पेश॑सा। य॒ह्वी ऋ॒तस्य॑ मा॒तरा॒ सीद॑तां ब॒र्हिरा सु॒मत् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । भन्द॑माने॒ इति॑ । उपा॑के॒ इति॑ । नक्तो॒षसा॑ । सु॒ऽपेष॑सा । य॒ह्वी इति॑ । ऋ॒तस्य॑ । मा॒तरा॑ । सीद॑ताम् । ब॒र्हिः । आ । सु॒ऽमत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ भन्दमाने उपाके नक्तोषासा सुपेशसा। यह्वी ऋतस्य मातरा सीदतां बर्हिरा सुमत् ॥
स्वर रहित पद पाठआ। भन्दमाने इति। उपाके इति। नक्तोषसा। सुऽपेषसा। यह्वी इति। ऋतस्य। मातरा। सीदताम्। बर्हिः। आ। सुऽमत् ॥ १.१४२.७
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 142; मन्त्र » 7
अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे मनुष्या भवन्तो यथा ऋतस्य मातरा यह्वी उपाके सुपेशसा भन्दमाने नक्तोषासा आसीदतां तद्वदासुमदबर्हिः प्राप्नुवन्तु ॥ ७ ॥
पदार्थः
(आ) (भन्दमाने) कल्याणकारके (उपाके) परस्परमसन्निहितवर्त्तमाने (नक्तोषासा) रात्रिदिने (सुपेशसा) सुरूपे। अत्र सर्वत्र विभक्तेराकारादेशः। (यह्वी) कारणसूनू (ऋतस्य) सत्यस्य (मातरा) मानयित्र्यौ (सीदताम्) प्राप्नुतः (बर्हिः) उत्तमं गृहम् (आ) (सुमत्) सुष्ठु माद्यन्ति हृष्यन्ति यस्मिन् तत् ॥ ७ ॥
भावार्थः
यथाऽहोरात्रः सर्वान् प्राण्यप्राणिनो नियमेन स्वस्वक्रियासु प्रवर्त्तयति तथा सर्वैर्विद्वद्भिः सर्वे मनुष्याः सत्क्रियासु प्रवर्त्तनीयाः ॥ ७ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! आप जैसे (ऋतस्य) सत्य व्यवहार का (मातरा) मान करानेवाली (यह्वी) कारण से उत्पन्न हुई (उपाके) एक दूसरे के साथ वर्त्तमान (सुपेशसा) उत्तम रूपयुक्त और (भन्दमाने) कल्याण करनेवाली (नक्तोषसा) रात्रि और प्रभात वेला (आ, सीदताम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होवें वैसे (आ, सुमत्) जिसमें बहुत आनन्द को प्राप्त होते हैं उस (बर्हिः) उत्तम घर को प्राप्त होओ ॥ ७ ॥
भावार्थ
जैसे दिन-रात्रि समस्त प्राणी-अप्राणी को नियम से अपनी-अपनी क्रियाओं में प्रवृत्त कराता है, वैसे सब विद्वानों को सर्वसाधारण मनुष्य उत्तम क्रियाओं में प्रवृत्त करने चाहिये ॥ ७ ॥
विषय
दिन-रात
पदार्थ
१. (नक्तोषासा) = रात और दिन (सुमत्) = स्वयमेव (बर्हिः) = हमारे हृदयों में (आसीदताम्) = आसीन हों । कैसे रात्रि और दिन ? [क] (भन्दमाने) = कल्याण व सुख प्राप्त करानेवाले, [ख] (उपाके) = [उप+अजू] प्रभु के समीप गति करनेवाले, अर्थात् प्रभु की उपासनावाले, [ग] (सुपेशसा) = सदा उत्तम कर्मों का निर्माण करनेवाले, [घ] (यह्वी) = महान् अथवा [यातश्च हूतश्च] प्रभु की ओर जाने व उसे पुकारनेवाले, [ङ] ऋतस्य मातरा यज्ञ व सत्य का निर्माण करनेवाले । २. हमारे हृदयों में सदा यह भावना हो कि ये दिन-रात कल्याण करनेवाले, प्रभु की उपासनवाले, उत्तम कार्यों को करनेवाले, महत्त्वपूर्ण व यज्ञों को सिद्ध करनेवाले हों। ये स्वयं ही ऐसे हों [सुमत्], अर्थात् ऐसे दिन हमारे लिए स्वाभाविक हो जाएँ। हम स्वभावतः ऐसे दिनों को बितानेवाले हों।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे दिन-रात कल्याणकारक कार्यों को करनेवाले व प्रभुपूजन की भावनावाले हों ।
विषय
रात दिन के समान माता पिता का वर्णन ।
भावार्थ
( नक्तोषासा ) रात और दिन जिस प्रकार ( भन्दमाने ) सबको सुख देने वाले ( सुपेशसा ) उत्तम रूप वाले हैं उसी प्रकार ( भन्दमाने ) सबके कल्याणकारक, एक दूसरे को सुख देने हारे, ( नक्तोषासा ) रात्रि और उषा काल के समान एक दूसरे के अति समीप रहते हुए ( सुपेशसा ) सुन्दर रूप और अंगों वाले ( ऋतस्य ) सत्य ज्ञान के ( मातरा ) जानने वाले माता पिता, स्त्री पुरुष ( यह्वी ) पड़े पूज्य होकर ( उपाके ) सदा समीप आवें और ( सुमत् ) उत्तम हर्षदायक ( बर्हिः ) वृद्धिकारी गृह और प्रजाजन, उत्तम आसन पर (आसीदतां ) विराजें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
दीर्घतमा ऋषिः ॥ देवता—१, २, ३, ४ अग्निः । ५ बर्हिः । ६ देव्यो द्वारः । ७ उषासानक्ता । ८ दैव्यौ होतारौ । ६ सरस्वतीडाभारत्यः । १० त्वष्टा । ११ वनस्पतिः । १२ स्वाहाकृतिः । १३ इन्द्रश्च ॥ छन्दः—१, २, ५, ६, ८,९ निचृदनुष्टुप् । ४ स्वराडनुष्टुप् । ३, ७, १०, ११, १२ अनुष्टुप् । १३ भुरिगुष्णिक् ॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जसे दिवस व रात्र प्राणी आणि अप्राणी यांना नियमाने आपापल्या क्रियेत प्रवृत्त करतात तसे सर्व विद्वानांनी सर्व माणसांना सत्कर्मात प्रवृत्त केले पाहिजे. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Bright and blissful cyclic sisters, night and day, both beautiful, moving majestic, mothers of love and faith in Truth Divine may, we pray, come and grace our great house rejoicing, and bless our yajna with dignity and devotion.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The learned should exhort common man to make his home life decent.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men and women ! you should have a decent home life where you are joyous and have nice accommodation. Like day and night, the learned should preach all to lead truthful and well-knit life in the homes.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As day and night urge all beings to do their duties and functions, likewise, the enlightened persons should urge upon all human beings to perform their duties.
Foot Notes
(मन्दमाने) कल्याणकारके: = Bestowing happiness or causing delight. (उपाके) परस्परं सन्निहितवर्तमाने = Clearly associated. (सुपेशसा:) सुरूपे = Beautiful. (बर्हि:) उत्तमं गृहम् = Good house. (सुमत् ) सुष्ठु माद्यन्ति हृष्यन्ति यस्मिन् तत् = Where men will enjoy happiness.
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