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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 84 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 84/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - इन्द्र: छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    क॒दा मर्त॑मरा॒धसं॑ प॒दा क्षुम्प॑मिव स्फुरत्। क॒दा नः॑ शुश्रव॒द्गिर॒ इन्द्रो॑ अ॒ङ्ग ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒दा । मर्त॑म् । अ॒रा॒धस॑म् । प॒दा । क्षुम्प॑म्ऽइव । स्फु॒र॒त् । क॒दा । नः॒ । शु॒श्र॒व॒त् । गिरः॑ । इन्द्रः॑ । अ॒ङ्ग ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कदा मर्तमराधसं पदा क्षुम्पमिव स्फुरत्। कदा नः शुश्रवद्गिर इन्द्रो अङ्ग ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कदा। मर्तम्। अराधसम्। पदा। क्षुम्पम्ऽइव। स्फुरत्। कदा। नः। शुश्रवत्। गिरः। इन्द्रः। अङ्ग ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 84; मन्त्र » 8
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

    अन्वयः

    हे अङ्ग क्षिप्रकारिन्निन्द्रो ! भवान् पदा क्षुम्पमिवाराधसं मर्त्तं कदा स्फुरत् कदा नोऽस्मान् पदा क्षुम्पमिव स्फुरत् कदा नोऽस्माकं गिरः शुश्रवदिति वयमाशास्महे ॥ ८ ॥

    पदार्थः

    (कदा) कस्मिन् काले (मर्त्तम्) मनुष्यम् (अराधसम्) धनरहितम् (पदा) पदार्थप्राप्त्या (क्षुम्पमिव) यथा सर्प्पः फणम् (स्फुरत्) संचालयेत् (कदा) (नः) अस्माकम् (शुश्रवत्) श्रुत्वा श्रावयेत् (गिरः) वाणीः (इन्द्रः) सभाद्यध्यक्षः (अङ्ग) शीघ्रकारी। यास्कमुनिरिमं मन्त्रमेवं समाचष्टे। क्षुम्पमहिच्छत्रकं भवति यत् क्षुभ्यते कदा मर्त्तमनाराधयन्तं पादेन क्षुम्पमिवावस्फुरिष्यति। कदा नः श्रोष्यति गिर इन्द्रो अङ्ग। अङ्गेति क्षिप्रनाम । (निरु०५.१६) ॥ ८ ॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यूयं यो दरिद्रानपि धनाढ्यानलसान् पुरुषार्थयुक्तानश्रुतान् बहुश्रुतांश्च कुर्यात्, तमेव सभाध्यक्षं कुरुत । कदायमस्मद्वार्त्तां श्रोष्यति कदा वयमेतस्य वार्त्तां श्रोष्याम इत्थमाशास्महे ॥ ८ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

    पदार्थ

    (अङ्ग) शीघ्रकर्त्ता (इन्द्रः) सभा आदि का अध्यक्ष (पदा) विज्ञान वा धन की प्राप्ति से (क्षुम्पमिव) जैसे सर्प्प फण को (स्फुरत्) चलाता है, वैसे (अराधसम्) धनरहित (मर्त्तम्) मनुष्य को (कदा) किस काल में चलावोगे (कदा) किस काल में (नः) हमको उक्त प्रकार से अर्थात् विज्ञान वा धन की प्राप्ति से जैसे सर्प्प फण को चलाता है, वैसे (गिरः) वाणियों को (शुश्रवत्) सुन कर सुनावोगे ॥ ८ ॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! तुम लोग में से जो दरिद्रों को भी धनयुक्त, आलसियों को पुरुषार्थी और श्रवणरहितों को श्रवणयुक्त करे, उस पुरुष ही को सभा आदि का अध्यक्ष करो। कब यहाँ हमारी बात को सुनोगे और हम कब आपकी बात को सुनेंगे, ऐसी आशा हम करते हैं ॥ ८ ॥

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    विषय

    समूलस्तु विनश्यति

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार प्रभु ही 'ईशान्' है, वे 'अप्रतिष्कुत' है । उनके साम्राज्य में एक व्यक्ति अयज्ञशील, आसुर लोगों को पनपता हुआ और धार्मिकों को क्लिष्ट होता हुआ देखकर कह उठता है कि (कदा) = कब वे प्रभु (अराधसम्) = यज्ञादि कर्मों को सिद्ध न करनेवाले अयज्ञीय (मर्तम्) = पुरुष को (अवस्फुरत्) = पूर्णरूपेण नष्ट करेंगे ? उसी प्रकार (इव) = जैसेकि (पदा क्षुम्पम्) = पैर से खम्ब को समाप्त कर दिया जाता है । खुम्ब में कोई शक्ति नहीं, वह पाँव छूते ही अनायास समाप्त हो जाता है । इसी प्रकार आसुरी सम्पत्तिवाले लोग उस प्रभु द्वारा अनायास ही समाप्त कर दिये जाते हैं । दो दिन पहले वे बड़े चमक रहे होते हैं और अगले दिन उनके नामो - निशान का भी पता नहीं रहता । २. (कदा) = कब (इन्द्रः) = वे प्रभु (नः) = हम आस्तिकभाव से चलनेवाले लोगों को (गिरः) = इन प्रार्थनोपासना की वाणियों को (शुश्रवत्) = सुनते है ? (अङ्ग) = [अङ्ग इति क्षिप्रम्] मेरी तो यही कामना है कि हमारी ये वाणियाँ शीघ्र ही सुनी जाएँ । हमारे धैर्य की उतनी ही परीक्षा हो जितना कि हममें सामर्थ्य है । कही असुरों को फूलता - फलता व धार्मिकों को पीड़ित होता हुआ देखकर हमारी मति डांवाडोल न हो जाए ।

    भावार्थ

    भावार्थ = अन्ततः अधार्मिक उसी प्रकार नष्ट होता है जैसेकि पादप्रहार से खुम्ब नष्ट हो जाता है और आस्तिक की प्रार्थना अवश्य ही सुनी जाती है ।

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    विषय

    शक्तिमान् ।

    भावार्थ

    ( अङ्ग ) हे विद्वान् पुरुषो ! ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान् राजा (कदा ) न जाने कब (अराधसं मर्त्तम्) वश न आने वाले, दुःसाध्य, या धनहीन, या बलहीन शत्रु पुरुष को (पदाक्षुम्पम् इव) पैर से अहिच्छत्र के समान (स्फुरत्) उछाल दे, नष्ट कर दे और वह (नः गिरः) हमारी वाणियां (कदा शुश्रवत्) न जाने कब सुन ले । ‘क्षुम्पम्’—अहिच्छत्रकं भवति । इति यास्कः । अहिच्छत्तक को भाषा में ‘पदबहेड़ा’ कहते हैं जो बरसात में पड़े काठ पर गोल २ छतरी सी पैदा हो जाती है जिसे ‘सांप की छतरी’ या पंजाबी में ‘खुम्ब’ कहाते हैं । ( क्षुम्प = खुम्ब ) वह पैर के थोड़े से धक्के से ही उखड़ कर नष्ट हो जाती है । इसी प्रकार राजा ( अराधसं ) न वश आने वाले उद्दण्ड निर्बल या निर्धन, कोश रहित या भयभीत राजा को न जाने कब नष्ट कर दे । उसको वह कभी भी नष्ट कर सकता है। इसी प्रकार प्रजा की कामनाओं को भी वह कभी अनायास ही पूर्ण कर सकता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो राहूगण ऋषिः । इन्द्रो देवता । छन्दः—१, ३–५ निचृदनुष्टुप् । २ विराड् नुष्टुप् । ६ भुरिगुष्णिक् । ७-६ उष्णिक् । १०, १२ विराडास्तारपंक्तिः । ११ आस्तारपंक्तिः । २० पंक्तिः । १३-१५ निचृद्गायत्री । १६ निचृत् त्रिष्टुप् । १७ विराट् त्रिष्टुप्। १८ त्रिष्टुप् । १९ आर्ची त्रिष्टुप् । विंशत्यृचं सूक्तम् ।

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    विषय

    विषय (भाषा)- फिर वह सभा आदि का अध्यक्ष कैसा है, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है ॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- *हे अङ्ग क्षिप्रकारिन् इन्द्रः ! भवान् पदा क्षुम्पम् इव अराधसं मर्त्तं कदा स्फुरत् कदा नः अस्मान् च नः अस्माकं गिरः शुश्रवत् इति वयम् आशास्महे ॥८॥

    पदार्थ

    पदार्थः- हे (अङ्ग) क्षिप्रकारिन् शीघ्रकारी=कार्यों को शीघ्र करनेवाले, (इन्द्रः) सभाद्यध्यक्षः=सभा आदि के अध्यक्ष ! (भवान्)=आप, (पदा) पदार्थप्राप्त्या=पदार्थों की प्राप्ति के लिये, (क्षुम्पमिव) यथा सर्प्पः फणम्=साँप के फन के, (इव)=समान, (अराधसम्) धनरहितम्=धन से रहित, (मर्त्तम्) मनुष्यम्=मनुष्य, (कदा)=कब, (स्फुरत्) संचालयेत्= गतिमान् करोगे, (कदा) कस्मिन् काले=कब, (नः) अस्मान्=हमे, (च)=भी, (नः) अस्माकम्=हमारे लिये, (गिरः) वाणीः= वाणी को, (शुश्रवत्) श्रुत्वा श्रावयेत्=सुनकर सुनायेगा, (इति)=ऐसी, (वयम्)=हम, (आशास्महे)= आशा करते हैं ॥८॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (अङ्ग) कार्यों को शीघ्र करनेवाले (इन्द्रः) सभा आदि के अध्यक्ष ! (भवान्) आप (पदा) पदार्थों की प्राप्ति के लिये, (क्षुम्पमिव) साँप के फण के (इव) समान, (अराधसम्) धन से रहित (मर्त्तम्) मनुष्य को (कदा) कब (स्फुरत्) गतिमान् करोगे? (कदा) कब (नः) हमे (च) भी, (नः) हमारे लिये (गिरः) वाणी को (शुश्रवत्) सुन करके सुनाओगे? (इति) ऐसी (वयम्) हम (आशास्महे) आशा करते हैं ॥८॥

    विशेष

    अनुवादक की टिप्पणी-* पुस्तक में दिये गये अन्वय में लिपिकीय त्रुटि से कुछ पदों की पुनरावृत्ति हो जाने से सटीक पदार्थ नहीं बनता है। अनुवादक ने महर्षि के पदार्थ के आधार पर अर्थ किया है। आँग्ल भाषा के अनुवादक स्मृतिशेष आचार्य धर्मदेव मार्तण्ड द्वारा भी संशोधित अन्वय के आधार पर ही अनुवाद किया गया है।

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- हे मनुष्यों ! जो दरिद्रों, धनवानों और आलसियों को भी पुरुषार्थ से युक्त करता है और जिन्होंने सुना नहीं है, उन्हें बहुत सुना हुआ बनाता है, तुम उसे सभा का अध्यक्ष बनाओ। कब यह हमारी बात सुनेगा? कब इसकी बात सुनेंगे? इस प्रकार की हम आशा करते हैं ॥८॥

    संस्कृत भाग

    क॒दा । मर्त॑म् । अ॒रा॒धस॑म् । प॒दा । क्षुम्प॑म्ऽइव । स्फु॒र॒त् । क॒दा । नः॒ । शु॒श्र॒व॒त् । गिरः॑ । इन्द्रः॑ । अ॒ङ्ग ॥ विषयः- पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- हे मनुष्या ! यूयं यो दरिद्रानपि धनाढ्यानलसान् पुरुषार्थयुक्तानश्रुतान् बहुश्रुतांश्च कुर्यात्, तमेव सभाध्यक्षं कुरुत । कदायमस्मद्वार्त्तां श्रोष्यति कदा वयमेतस्य वार्त्तां श्रोष्याम इत्थमाशास्महे ॥८॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! तुम्ही गरीब लोकांना श्रीमंत करील, आळशांना पुरुषार्थी करील व न ऐकणाऱ्यांना ऐकावयास लावील अशा पुरुषाला सभा इत्यादीचा अध्यक्ष करा. तुम्ही आमची गोष्ट ऐकावी अशी आशा आम्ही करतो. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Dear friend, when would Indra, lord of wealth, power and justice, shake the miserly, uncreative, ungenerous and selfish person like a weed? Who knows? And would he listen to our prayers? Any time!

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is Indra is taught further in the 8th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O active President or Commander of an army of the State when will you trample with your foot upon a Goldless wicked person devoid of the wealth of devotion, as if upon a coiled up snake ? When will you listen to our praises and requests ?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (क्षुम्पम् इव ) यथा सर्पफरणम् = As a snake shakes its coil. (अंग) क्षिप्रारी अंगेति क्षिप्रनाम (निरुते ५/१६)

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    as the President Omen, you should elect him of the State who can turn the poor into rich, the lazy into industrious, un-educated into educated learned persons. When shall he listen to our requests and when shall we listen to his words of wisdom is what we eagerly wait for.

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    Subject of the mantra

    Then, what kind of President of that Assembly etc. is? this subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (aṅga)= who gets the work done quickly, (indraḥ) =President of the Assembly etc., (bhavān) =you, (padā)=to acquire things, (kṣumpamiva) =the expanded hood or neck of the snake, (iva)= like, (arādhasam)=devoid of wealth, (marttam) =to a person, (kadā) =when, (sphurat) =will set in motion, (kadā) =when, (naḥ) =to us, (ca) =also, (naḥ) =for us, (giraḥ) =to speech, (śuśravat)= listen and recite, (iti) aisī (vayam) =we, (āśāsmahe)= hope so.

    English Translation (K.K.V.)

    O President of the Assembly etc. who gets the work done quickly! Like the expanded hood or neck of the snake, devoid of wealth, move forward to acquire things? When will you set in motion a person, who is without money? When will you listen and recite for us the speech as well? We hope so.

    Footnote

    O humans! The one who equips the poor, the rich and the lazy with efforts and makes those who have not listened, much listened, you should make him the President of the Assembly. When will it listen to us? When will we listen him? This is what we hope for.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    O humans! The one who equips the poor, the rich and the lazy with efforts and makes those who have not listened, much listened, you should make him the President of the Assembly. When will it listen to us? When will we listen him? This is what we hope for.

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