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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 35/ मन्त्र 12
    ऋषिः - लुशो धानाकः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    तन्नो॑ देवा यच्छत सुप्रवाच॒नं छ॒र्दिरा॑दित्याः सु॒भरं॑ नृ॒पाय्य॑म् । पश्वे॑ तो॒काय॒ तन॑याय जी॒वसे॑ स्व॒स्त्य१॒॑ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । नः॒ । दे॒वाः॒ । य॒च्छ॒त॒ । सु॒ऽप्र॒वा॒च॒नम् । छ॒र्दिः । आ॒दि॒त्याः॒ । सु॒ऽभर॑म् । नृ॒ऽपाय्य॑म् । पश्वे॑ । तो॒काय॑ । तन॑याय । जी॒वसे॑ । स्व॒स्ति । अ॒ग्निम् । स॒म्ऽइ॒धा॒नम् । ई॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तन्नो देवा यच्छत सुप्रवाचनं छर्दिरादित्याः सुभरं नृपाय्यम् । पश्वे तोकाय तनयाय जीवसे स्वस्त्य१ग्निं समिधानमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । नः । देवाः । यच्छत । सुऽप्रवाचनम् । छर्दिः । आदित्याः । सुऽभरम् । नृऽपाय्यम् । पश्वे । तोकाय । तनयाय । जीवसे । स्वस्ति । अग्निम् । सम्ऽइधानम् । ईमहे ॥ १०.३५.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 35; मन्त्र » 12
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (आदित्याः-देवाः) हे आदि में होनेवाले विद्वानो ! (तत्) उस इश्वरोक्त (सुप्रवाचनम्) प्रवचनयोग्य वेदज्ञान को (नः) हमारे लिये (यच्छत) देवो-प्रदान करो (छर्दिः सुभरं नृपाय्यम्) वह प्रकाशमान सम्यक् धारण करने योग्य मनुष्यों का रक्षक (पश्वे तोकाय तनयाय जीवसे) ज्ञानवाले पुत्र-पौत्र के लिये और स्वजीवन के लिये कल्याणकारी होता है, आगे पूर्ववत् ॥१२॥

    भावार्थ

    आदि सृष्टि के विद्वान् इश्वरोक्त वेदज्ञान का उपदेश जो मनुष्यों के लिये कल्याणकर है, उसका उपदेश दिया करते हैं। उसका अध्ययन प्रत्येक परिवार को करना हितकर है ॥१२॥

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    विषय

    'सुप्रवाचन - सुभर- नृपाय्य' घर .

    पदार्थ

    [१] हे (देवाः) = गत मन्त्रों में वर्णित देवो! (आदित्या:) = आप सब ज्ञानों व उत्तमताओं का आदान करनेवाले हो आप (नः) = हमें (तत् छर्दिः) = वह घर यच्छता दीजिये । जो [क] (सुप्रवाचनम्) = प्रभु के गुणों के उत्तम प्रवचनवाला है। जिसमें प्रभु के गुणों का गान होता है अथवा जिसमें सदा शुभ ही शब्द बोले जाते हैं। [ख] (सुभरम्) = जो उत्तम भरण व पोषणवाला है, जो समृद्ध है, जिसमें खान-पान की किसी भी प्रकार से कमी नहीं है। [ग] (नृपाय्यम्) = जो घरों- नरों का रक्षण करनेवाला है, जिस घर में नरों का वास है, उनका जो [नृ नये] निरन्तर अपने को आगे ले-चल रहे हैं । [२] ऐसे घर में निवास करते हुए हम (पश्वे) = अपने गौ आदि पशुओं के लिये, (तोकाय) = अपने सन्तानों के लिये (तनयाय) = पौत्रों के लिये तथा जीवसे उत्तम दीर्घ जीवन के लिये (समिधानं अग्निम्) = समिद्ध की जाती हुई अग्नि से (स्वस्ति ईमहे) = कल्याण की याचना करते हैं । 'सुप्रवाचन - सुभर - नृपाय्य' घर में हम नियमपूर्वक अग्निहोत्र करें। इस अग्निहोत्र से वायुमण्डल की शुद्धि होकर उस घर में सभी स्वस्थ हों। हमारे पशुओं की स्थिति भी उत्तम हो, हमारे पुत्र-पौत्र अच्छे हों और हमारा जीवन भी दीर्घ हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- देव कृपा से हम 'सुप्रवाचन- सुभर नृपाय्य' घर को प्राप्त करें। उस घर में हम नियम से अग्निहोत्र करें।

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    विषय

    विद्वानों से ज्ञानोपदेश की याचना।

    भावार्थ

    हे (देवाः) विद्वान् ज्ञानदाता गुरुजनो ! आप लोग (नः) हमें (तत्) वह उत्तम २ (सु-प्रवाचनं यच्छत) सुखदायक, उत्तम उत्कृष्ट वचनोपदेश, प्रदान करो। हे (आदित्याः) तेजस्वी, ज्ञानवान् पुरुषो ! आप लोग (नृ-पाय्यम्) सब मनुष्यों के पालन करने में समर्थ (सु-भरं) उत्तम रीति से पालन पोषण करने में समर्थ (छर्दिः) गृह, शरण (यच्छत) प्रदान करो। (पश्वे) पशु, (तोकाय) पुत्र, (तनयाय) पौत्र इनके (जीवसे) जीवन और (स्वस्ति) कल्याण के लिये हम (अग्निं समिधानम्) तेजस्वी, ज्ञानप्रकाशक आचार्य वा प्रभु से (ईमहे) याचना करते हैं उसको प्राप्त कर उसे ज्ञान, प्रकाश और आशीष प्राप्त करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः- १, ६, ९, ११ विराड्जगती। २ भुरिग् जगती। ३, ७, १०, १२ पादनिचृज्जगती। ४, ८ आर्चीस्वराड् जगती। ५ आर्ची भुरिग् जगती। १३ निचृत् त्रिष्टुप्। १४ विराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (आदित्याः-देवाः) आदौ भवा हे विद्वांसः ! (तत्) ईश्वरोक्तम् (सुप्रवाचनम्) प्रवचनीयं वेदज्ञानम् (नः) अस्मभ्यम् (यच्छत) प्रयच्छत-दत्त (छर्दिः सुभरं नृपाय्यम्) यत्प्रकाशमानं “छृदी सन्दीपने” [चुरादि०] सम्यग्धारणयोग्यं नृणां रक्षकमस्ति (पश्वे तोकाय तनयाय जीवसे) तज्ज्ञानं कल्याणकरं पशवे ज्ञानवते पुत्राय स्वजीवनाय च भवति, अग्रे पूर्ववत् ॥१२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May the Adityas, divine harbingers of the light of omniscient divinity at the dawn of humanity, give us that universal word of knowledge and that peaceful settlement in life which holds all abundant power and prosperity for the protection and advancement of our human family, the animals, our children and grand children for our good health and full life of joy. We pray may the lighted fire and the rising dawn bring us all felicity and total fulfilment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आदि सृष्टीचे विद्वान ईश्वरोक्त वेदज्ञानाचा उपदेश माणसांच्या कल्याणासाठी करतात. त्याचे अध्ययन प्रत्येक परिवाराने करणे हितकारक आहे. ॥१२॥

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