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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 35/ मन्त्र 7
    ऋषिः - लुशो धानाकः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    श्रेष्ठं॑ नो अ॒द्य स॑वित॒र्वरे॑ण्यं भा॒गमा सु॑व॒ स हि र॑त्न॒धा असि॑ । रा॒यो जनि॑त्रीं धि॒षणा॒मुप॑ ब्रुवे स्व॒स्त्य१॒॑ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्रेष्ठ॑म् । नः॒ । अ॒द्य । स॒वि॒तः॒ । वरे॑ण्यम् । भा॒गम् । आ । सु॒व॒ । सः । हि । र॒त्न॒ऽधाः । असि॑ । रा॒यः । जनि॑त्रीन् । धि॒षणा॑म् । उप॑ । ब्रु॒वे॒ । स्व॒स्ति । अ॒ग्निम् । स॒म्ऽइ॒धा॒नम् । ई॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्रेष्ठं नो अद्य सवितर्वरेण्यं भागमा सुव स हि रत्नधा असि । रायो जनित्रीं धिषणामुप ब्रुवे स्वस्त्य१ग्निं समिधानमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    श्रेष्ठम् । नः । अद्य । सवितः । वरेण्यम् । भागम् । आ । सुव । सः । हि । रत्नऽधाः । असि । रायः । जनित्रीन् । धिषणाम् । उप । ब्रुवे । स्वस्ति । अग्निम् । सम्ऽइधानम् । ईमहे ॥ १०.३५.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 35; मन्त्र » 7
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सवितः) हे प्रेरक परमात्मन् ! तू (अद्य) इस जन्म में हमारे लिए (नः) श्रेष्ठ करनेवाले योग्य अध्यात्म सुखलाभ मोक्ष को प्राप्त करा (सः-हि रत्नधाः-असि) वह तू ही रमणीय धनों या सुखों का अत्यन्त धारक और देनेवाला है। (रायः जनित्रीं धिषणाम्) रमणीय धन भोग की सम्पन्न करानेवाली वाणी को (उप ब्रुवे) उपासनारूप में प्रस्तुत करता हूँ ॥७॥

    भावार्थ

    परमात्मा की उपासना से वह सर्वश्रेष्ठ मोक्षसुख और सांसारिक सच्चे सुख को ही प्रदान करता है ॥७॥

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    विषय

    ज्ञान व धन का समन्वय

    पदार्थ

    [१] हे (सवितः) = सबके प्रेरक प्रभो! (अद्य) = आज (नः) = हमारे लिये (श्रेष्ठम्) = प्रशस्यतम (वरेण्यम्) = वरणीय- चाहने योग्य (भागम्) = भजनीय सेवनीय धन को (आसुव) = प्रेरित करिये। आपकी कृपा से हमें उत्तम चाहने योग्य धन प्राप्त हो । (स) = वे आप (हि) = निश्चय से (रत्नधाः असि) = रमणीय धनों के धारण करनेवाले हैं । [२] हे प्रभो ! मैं आप से (रायः जनित्रीम्) = ऐश्वर्य को जन्म देनेवाली (धिषणाम्) = बुद्धि को (उपब्रुवे) = भोगता हूँ। मैं उस बुद्धि को प्राप्त करूँ जो मुझे धन कमाने के भी योग्य बनाये। मेरे में 'ज्ञान व धन' दोनों का समन्वय हो । [३] (समिधानं अग्निम्) = अग्निहोत्र में समिद्ध की जाती हुई अग्नि से (स्वस्ति ईमहे) = हम कल्याण की ईमहे याचना करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमें वरणीय धन प्राप्त हो। हमारे जीवन में धन व ज्ञान' का समन्वय हो ।

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    विषय

    प्रभु से ऐश्वर्य की याचना। प्रभु का ऐश्वर्य सम्पादक ज्ञानवाणी, वेद का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (सवितः) सकल जगत् के उत्पादक, हे स्वामिन् ! तू (नः) हमें (अद्य) आज (श्रेष्ठं) सब से उत्तम (वरेण्यम्) वरण करने चाहने योग्य, उत्तम मार्ग में लेजाने वाला (भागम् आ सुव) सेवने योग्य सुख, धन आदि प्राप्त करा। (सः हि) वह तू (रत्न-धाः असि) रमणीय, सुखप्रद पदार्थों को धारण और प्रदान करने वाला है। हे मनुष्यो ! मैं तुम लोगों को (रायः जनित्रीम्) धन के पैदा करने वाली (धिषणाम् उप ब्रुवे) वाणी वा विद्या का उपदेश करता हूं। (अग्निं समिधानं स्वस्ति ईमहे) अग्निवत् ज्ञान-प्रकाश से चमकते हुए गुरु वा प्रभु से हम कल्याण, सुख की याचना करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः- १, ६, ९, ११ विराड्जगती। २ भुरिग् जगती। ३, ७, १०, १२ पादनिचृज्जगती। ४, ८ आर्चीस्वराड् जगती। ५ आर्ची भुरिग् जगती। १३ निचृत् त्रिष्टुप्। १४ विराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सवितः) हे प्रेरयितः परमात्मन् ! त्वम् (अद्य) अस्मिन् जन्मनि (नः) अस्मभ्यम् (श्रेष्ठं वरेण्यं भागम्-आसुव) प्रशस्यतमं वर्तुमर्हमनिवार्यं वरणीयमध्यात्मलाभरूपं भागं प्रापय (सः-हि रत्नधाः-असि) स त्वं हि रमणीयानां धनानां सुखानां वाऽतिशयेन धारको दाता च भवसि (रायः-जनित्रीं घिषणाम्) रमणीयस्य धनस्य प्रादुर्भावयित्रीं वाचम् (उपब्रुवे) उपस्तौमि ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Savita, lord of life and giver of light, create for us the highest of our choice share of life’s joy to our satisfaction and pleasure as you are the treasure hold of the jewels of life. I speak and pray to the voice and omniscience of divinity, universal creator of life’s wealth: May the rising dawn and lighted fire bring us all happiness and well being of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याची उपासना करण्याने तो सर्वश्रेष्ठ मोक्षसुख व सांसारिक खरे सुख प्रदान करतो. ॥७॥

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