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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 35/ मन्त्र 13
    ऋषिः - लुशो धानाकः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    विश्वे॑ अ॒द्य म॒रुतो॒ विश्व॑ ऊ॒ती विश्वे॑ भवन्त्व॒ग्नय॒: समि॑द्धाः । विश्वे॑ नो दे॒वा अव॒सा ग॑मन्तु॒ विश्व॑मस्तु॒ द्रवि॑णं॒ वाजो॑ अ॒स्मे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑ । अ॒द्य । म॒रुतः॑ । विश्वे॑ । ऊ॒ती । विश्वे॑ । भ॒व॒न्तु॒ । अ॒ग्नयः॑ । सम्ऽइ॑द्धाः । विश्वे॑ । नः॒ । दे॒वाः । अ॒व॒सा । आ । ग॒म॒न्तु॒ । विश्व॑म् । अ॒स्तु॒ । द्रवि॑णम् । वाजः॑ । अ॒स्मे इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वे अद्य मरुतो विश्व ऊती विश्वे भवन्त्वग्नय: समिद्धाः । विश्वे नो देवा अवसा गमन्तु विश्वमस्तु द्रविणं वाजो अस्मे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे । अद्य । मरुतः । विश्वे । ऊती । विश्वे । भवन्तु । अग्नयः । सम्ऽइद्धाः । विश्वे । नः । देवाः । अवसा । आ । गमन्तु । विश्वम् । अस्तु । द्रविणम् । वाजः । अस्मे इति ॥ १०.३५.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 35; मन्त्र » 13
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अद्य) इस जीवन में या जन्म में (विश्वे मरुतः) सारे प्राण (विश्वे) सारे शरीराङ्ग (विश्वे समिद्धाः-अग्नयः) सब सम्यक् प्रकाशमान सूर्यादि पदार्थ (ऊती भवन्तु) रक्षा के लिये हों (विश्वे देवाः-नः-अवसा-आ गमन्तु) सब विद्वान् हमारे रक्षण के हेतु आवें-प्राप्त होवें (विश्वं द्रविणं वाजः-अस्मे-अस्तु) सब विद्यादि धन और बल हमारे लिये उपयुक्त हों ॥१३॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने प्राण और शरीर के अन्य अङ्ग तथा सूर्यादि प्रकाशमान पदार्थ जीवनरक्षा के लिये प्रदान किये हैं। विद्वान् जन भी हमारी रक्षा करते हैं। विद्यादि धन और बल हमारे उपयोग के लिये हैं ॥१३॥

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    विषय

    [१] (अद्य) = आज (विश्वे) = सब (मरुतः) = प्राण (समिद्धा:) = दीप्त (भवन्तु) = हों और (विश्वे) = ये सब प्राण (ऊती) = रक्षण के लिये (भवन्तु) = हों। हमारे घरों में (विश्वे अग्नयः) = सब यज्ञों की अग्नियाँ (समिद्धाः भवन्तु) = समिद्ध हों। वे यज्ञाग्नियाँ कभी बुझे नहीं। हम प्राणायाम के द्वारा प्राणसाधना को करनेवाले हों और अग्निहोत्र के द्वारा घर के वायुमण्डल का शोधन करें। (२) ऐसा करने पर, अर्थात् प्राणायाम व अग्निहोत्र के अपनाने पर (विश्वे) = सब (देवः) = देव (नः) = हमें (अवसा) = रक्षण के हेतु से (गमन्तु) = प्राप्त हों । प्राणसाधना व अग्निहोत्र से सब आन्तर व बाह्य देवों का आनुकूल्य प्राप्त होता है और ये देव हमारा रक्षण करनेवाले होते हैं। (३) देवों के रक्षण के परिणामस्वरूप (विश्वं द्रविणम्) = सम्पूर्ण धन व (वाजः) = शक्ति व ज्ञान (अस्ये) = हमारे में (अस्तु) = हो । शक्ति व ज्ञान हमारी आन्तर सम्पत्ति हो और धन हमारी बाह्य समृद्धि का कारण बने। इस प्रकार हम प्राणायाम से शक्ति व ज्ञान की सम्पत्ति का लाभ प्राप्त करें तो अग्निहोत्र से उचित वर्षण के द्वारा अन्नादि की समृद्धिवाले हों ।

    पदार्थ

    भावार्थ- प्राणायाम हमें 'शक्ति व ज्ञान' रूप आन्तर सम्पत्ति को प्राप्त कराये तथा अग्निहोत्र हमें आद्य अन्नों को प्राप्त कराता हुआ समृद्ध करनेवाला हो ।

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    विषय

    बलवानों और सम्पन्नों से रक्षा-याचना। ज्ञानियों से ज्ञानी की याचना।

    भावार्थ

    (विश्वे मरुतः) बलवान् और शत्रुनाशक और वैश्य मनुष्य, (अद्य) आज (नः ऊती भवन्तु) हमारी रक्षा के लिये हों। और (विश्वे) सभी प्राणी (नः ऊतये भवन्तु) हमारी रक्षा और प्रीति के लिये हों। (विश्वे अग्नयः) समस्त ज्ञानी, अग्रणी जन (ऊतये) रक्षा, ज्ञान, प्रीति सत्संगादि के लिये तु (सम्-इद्वाः) अच्छी प्रकार तेजस्वी, अग्निवत् ज्ञान के प्रकाशक (उती भवन्तु) हमारी ज्ञानवृद्धि के लिये हों। (विश्वे देवाः) समस्त दानशील तेजस्वी जन (अवसा) ज्ञान और रक्षा और प्रेम सहित (नः आगमन्तु) हमें प्राप्त हों। और (अस्मे) हमें (विश्वम्) सब प्रकार का (द्रविणम्) धन-ऐश्वर्य, वीर्य और (वाजः अस्तु) ज्ञान और बल प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः- १, ६, ९, ११ विराड्जगती। २ भुरिग् जगती। ३, ७, १०, १२ पादनिचृज्जगती। ४, ८ आर्चीस्वराड् जगती। ५ आर्ची भुरिग् जगती। १३ निचृत् त्रिष्टुप्। १४ विराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अद्य) अस्मिन् जीवने जन्मनि वा (विश्वे मरुतः) सर्वे प्राणाः “मरुतः प्राणादयः” [ऋ०१।५२।९ दयानन्दः] (विश्वे) सर्वे शरीरावयवाः (विश्वे समिद्धाः-अग्नयः) सर्वे सम्यक् प्रकाशमानसूर्यादयः पदार्थाः (ऊती भवन्तु) ऊत्यै रक्षणाय भवन्तु (विश्वे देवाः नः-अवसा-आ गमन्तु) सर्वे विद्वांसश्चास्माकं रक्षणहेतुनाऽऽगच्छन्तु-प्राप्ता भवन्तु (विश्वं द्रविणं वाजः-अस्मे-अस्तु) सर्वं विद्यादिधनं बलं चास्मभ्यमुपयुक्तं भवतु ॥१३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Today in this life of ours, may all the winds and pranic energies and all lighted fires of the world bring us all protections and promotions. May all divine powers of nature and humanity in the world come with all protection, power and progress. May all wealth, honour and excellence of the world, all speed, success and victory be our common human heritage, good fortune and universal victory.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याने प्राण व शरीराचे इतर अंग व सूर्य इत्यादी प्रकाशमान पदार्थ जीवनरक्षणासाठी प्रदान केलेले आहेत. विद्वान लोकही आमचे रक्षण करतात. विद्या इत्यादी धन व बल आमच्या उपयोगासाठी आहे. ॥१३॥

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