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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 35/ मन्त्र 8
    ऋषिः - लुशो धानाकः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - स्वराडार्चीजगती स्वरः - निषादः

    पिप॑र्तु मा॒ तदृ॒तस्य॑ प्र॒वाच॑नं दे॒वानां॒ यन्म॑नु॒ष्या॒३॒॑ अम॑न्महि । विश्वा॒ इदु॒स्राः स्पळुदे॑ति॒ सूर्य॑: स्व॒स्त्य१॒॑ग्निं स॑मिधा॒नमी॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पिप॑र्तु । मा॒ । तत् । ऋ॒तस्य॑ । प्र॒ऽवाच॑नम् । दे॒वाना॑म् । यत् । म॒नु॒ष्याः॑ । अम॑न्महि । विश्वाः॑ । इत् । उ॒स्राः । स्पट् । उत् । ए॒ति॒ । सूर्यः॑ । स्व॒स्ति । अ॒ग्निम् । स॒म्ऽइ॒धा॒नम् । ई॒म॒हे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पिपर्तु मा तदृतस्य प्रवाचनं देवानां यन्मनुष्या३ अमन्महि । विश्वा इदुस्राः स्पळुदेति सूर्य: स्वस्त्य१ग्निं समिधानमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पिपर्तु । मा । तत् । ऋतस्य । प्रऽवाचनम् । देवानाम् । यत् । मनुष्याः । अमन्महि । विश्वाः । इत् । उस्राः । स्पट् । उत् । एति । सूर्यः । स्वस्ति । अग्निम् । सम्ऽइधानम् । ईमहे ॥ १०.३५.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 35; मन्त्र » 8
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (देवानां यत्-ऋतस्य प्रवाचनम्) सृष्टि के आदि में अग्नि आदि परम ऋषियों का जो प्रवचन करने योग्य वेदज्ञान जिसका है, उन ऋषियों द्वारा उनका प्रवचन परमात्मा कराता है (मनुष्याः-अमन्महि) हम मनुष्य चाहते हैं (तत्-मा पिपर्तु) वह मेरी रक्षा करे (सूर्यः) वह विद्यासूर्य परमात्मा (विश्वाः-उस्राः-इत् स्पट्-उदेति) सारी विद्या-धाराओं को ही जानता हुआ ऋषियों के अन्दर साक्षात् होता है ॥८॥

    भावार्थ

    समस्तविद्याप्रकाशक परमात्मा सृष्टि के आरम्भ में अग्नि आदि परम ऋषियों को उनके अन्दर साक्षात् वेदज्ञान का उपदेश मनुष्यों के कल्याणार्थ देता है ॥८॥

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    विषय

    ऋत का प्रवाचन

    पदार्थ

    [१] (यत्) = जब (मनुष्याः) = मननपूर्वक कर्मों को करनेवाले हम (देवानाम्) = सूर्य, चन्द्र आदि देवों का (अमन्महि) = ज्ञान प्राप्त करते हैं और इनकी गतियों में ऋत का दर्शन करते, अपनी इन्द्रियों से भी ऋतस्य (प्रवाचनम्) = ऋत का ही उच्चारण करवाते हैं, अर्थात् सब इन्द्रियों से सब कार्यों को बड़ी नियमितता से करते हैं, तो (तत्) = वह ऋत का प्रवाचन सब कार्यों का समय पर करना (मा पिपर्तु) = मेरा पालन व पूरण करे। ऋत के पालन से मेरा शरीर रोगों से आक्रान्त न हो और मेरे मन में किसी प्रकार की न्यूनता न आ जाये। वस्तुतः 'स्वस्ति पन्थामनुचरेम सूर्याचन्द्रमसाविव'=सूर्य व चन्द्रमा की तरह हम बड़े नियम से अपने मार्ग का आक्रमण करें, इसी में कल्याण है। [२] इस ऋत के पालन के होने पर (विश्वाः) = सब (उस्त्रा:) = प्रकाशों को (स्पट्) = स्पर्श करता हुआ (सूर्य:) = ज्ञान का सूर्य (इत् उदेति) = निश्चित ही हमारे जीवन के आकाश में उदित होता है। ऋत का पालन ज्ञान के प्रकाश की अभिवृद्धि का कारण हो जाता है । [३] हम प्रतिदिन (समिधानं अग्निम्) = समिद्ध की जाती हुई अग्नि से (स्वस्ति ईमहे) = कल्याम की याचना करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम सूर्यादि देवों का मनन करते हुए अपने जीवन में ऋत का पालन करें। यह ऋत हमारे जीवन को प्रकाशमय बनाये ।

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    विषय

    ज्ञानी के उदय और ज्ञान प्राप्ति की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हम (मनुष्याः) मनुष्य, विचारशील लोग (यत् अमन्महि) जिसका मनन, ज्ञान करते हैं (देवानां) विद्वान् जनों के (ऋतस्य) सत्य ज्ञान, वेद, और यज्ञादि का (तत् प्र-वाचनम्) वह उत्तम उपदेश और अध्यापन आदि (मा पिपर्तु) मुझे पालन और ज्ञान से पूर्ण करे। (सूर्यः) सूर्य के समान ज्ञान का प्रकाश करने वाला (विश्वाः उस्राः स्पट्) समस्त किरणों के तुल्य, ऊपर उठने वाली वाणियों को प्रकाशित करता हुआ (उत् ऐति) उदय को प्राप्त हो। ऐसे (समिधानम् अग्निम् स्वस्ति ईमहे) प्रकाश करने वाले अग्निवत् ज्ञानी से हम कल्याण और सुख की प्रार्थना करें, और ऐसे तेजस्वी ज्ञानी को प्राप्त करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लुशो धानाक ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः- १, ६, ९, ११ विराड्जगती। २ भुरिग् जगती। ३, ७, १०, १२ पादनिचृज्जगती। ४, ८ आर्चीस्वराड् जगती। ५ आर्ची भुरिग् जगती। १३ निचृत् त्रिष्टुप्। १४ विराट् त्रिष्टुप्॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (देवानाम्-यत्-ऋतस्य प्रवाचनम्) सृष्ट्यादौ खल्वग्निप्रभृतीनां परमर्षीणां यत् प्रवाचनमृतं वेदज्ञानं यस्य तैर्ऋषिभिः प्रवचनं कारयति परमात्मा ‘ऋतस्ये’ति षष्ठी व्यत्ययेन (मनुष्याः-अमन्महि) वयं मनुष्या याचामहे “मन्महे याच्ञाकर्मा” [निघ०३।१९] (तत् मा पिपर्तु) तदस्मान् रक्षतु यतः (सूर्यः) स विद्यासूर्यः परमात्मा (विश्वाः उस्राः इत्-स्पट् उदेति) सर्वान् विद्यारश्मीन् हि स्पृशन् जानन् हि “स्पश स्पर्शने” तेषु साक्षाद् भवति ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May that original voice of divinities, which revealed the nature and laws of existence at the beginning of human creation and which we humans honour, adore and pray for, protect and promote us with fulfilment. The sun rises, the same one, and illuminates all the dawns. We pray may the lighted fire and rising dawn bless us with felicity and total fulfilment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    संपूर्ण विद्याप्रकाशक परमात्मा सृष्टीच्या आरंभी अग्नी इत्यादी परम ऋषींनी त्यांच्यात साक्षात् वेदज्ञानाचा उपदेश माणसांच्या कल्याणासाठी देतो. ॥८॥

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