Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 99 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 99/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वम्रो वैखानसः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स हि द्यु॒ता वि॒द्युता॒ वेति॒ साम॑ पृ॒थुं योनि॑मसुर॒त्वा स॑साद । स सनी॑ळेभिः प्रसहा॒नो अ॑स्य॒ भ्रातु॒र्न ऋ॒ते स॒प्तथ॑स्य मा॒याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । हि । द्यु॒ता । वि॒ऽद्युता॑ । वेति॑ । साम॑ । पृ॒थुम् । योनि॑म् । अ॒सु॒र॒ऽत्वा । स॒सा॒द॒ । सः । सऽनी॑ळेभिः । प्र॒ऽस॒हा॒नः । अ॒स्य॒ । भ्रातुः॑ । न । ऋ॒ते । स॒प्तथ॑स्य । मा॒याः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स हि द्युता विद्युता वेति साम पृथुं योनिमसुरत्वा ससाद । स सनीळेभिः प्रसहानो अस्य भ्रातुर्न ऋते सप्तथस्य मायाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । हि । द्युता । विऽद्युता । वेति । साम । पृथुम् । योनिम् । असुरऽत्वा । ससाद । सः । सऽनीळेभिः । प्रऽसहानः । अस्य । भ्रातुः । न । ऋते । सप्तथस्य । मायाः ॥ १०.९९.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 99; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (सः-हि) वह ही परमात्मा (विद्युता द्युता) विशेष दीप्ति से तेजस्विता से (पृथुम्) प्रथनशील विस्तृत (साम) शान्तिपद-मोक्ष को प्राप्त कराता है, वह मोक्ष में (असुरत्व) प्राणप्रदरूप से अत्यन्त आयुप्रदरूप से (सः) वह परमात्मा (सनीळेभिः) समान गृहवासी उपासक आत्माओं के द्वारा (प्रसहानः) धार्यमाण-ध्यान में आया हुआ, उपासना में आया हुआ (योनिं ससाद) उन उपासक आत्माओं के हृदयगृह को प्राप्त होता है-साक्षात् होता है (अस्य भ्रातुः) इस भरणकर्त्ता पोषणकर्त्ता (सप्तथस्य) सप्तस्थ-भूः, भुवः, आदि सप्तलोक में स्थित की (मायाः) प्रज्ञाएँ-बुद्धिकौशल (न) इस समय (ऋते) जगत् में उपादानकारण प्रकृति में वर्त्तमान हैं ॥२॥

    भावार्थ

    आत्मा की विशेष दीप्तिमत्ता और तेजस्विता से परमात्मा विस्तृत शान्तिपद मोक्ष को प्राप्त कराता है, वह मोक्ष में लम्बी आयु को प्रदान करता है, उपासकों द्वारा उपासित हुआ परमात्मा उनके हृदय में साक्षात् होता है, भूः, भुवः, आदि सप्तलोकों में स्थित परमात्मा के बुद्धिकौशल उपादान-कारण प्रकृति में वर्त्तमान होकर जगत् में दृष्टिगोचर होते हैं ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सः-हि) स एव परमात्मा (विद्युता-द्युता) विशिष्टदीप्त्या तेजस्वितया (पृथुं साम वेति) प्रथनशीलं शान्तिपदं प्रापयति “अन्तर्गतणिजर्थः” तत्र मोक्षे (असुरत्वा) प्राणप्रदत्वेन-अतिशयितायुप्रदत्वेन (सः सनीडेभिः प्रसहानः) सः परमात्मा समानगृहवासिभिः “नीळं गृहनाम” [निघ० ३।४] उपासकात्मभिः प्रसहमानो धार्यमाणः (योनिं ससाद) तेषां हृदयगृहम् “योनिर्गृहनाम” [निघ० ३।४] सीदति, साक्षाद्भवति (अस्य भ्रातुः) अस्य भरणकर्त्तुः परमात्मनः (सप्तथस्य मायाः) सप्तस्थस्य भूरित्येवमादिषु सप्तलोकेषु स्थितस्य “सकारलोपश्छान्दसः” प्रज्ञाः-कौशलानि वा (न-ऋते) सम्प्रति न सम्प्रत्यर्थे [निरु० ६।८] उपादानकारणे प्रकृत्याख्ये-प्रवर्त्तन्ते ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    He, challenger of adversaries and destroyer of suffering and violence, goes on with light and lightning, pervades the vast space, and rules and breaks the mighty clouds with his kindred Maruts. Such is the power and splendour of the ruler and sustainer of the highest heavens.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    आत्म्याच्या विशेष दीप्तिमत्तेने व तेजस्वितेने परमात्मा आत्म्याला विस्तृत शांतिपद मोक्ष प्रदान करतो. मोक्षात दीर्घ आयू प्रदान करतो. उपासकांद्वारे उपासित परमात्मा त्यांच्या हृदयात साक्षात होतो. भू: भुव: इत्यादी सप्तलोकात स्थित परमात्म्याचे बुद्धिकौशल्य उपादान कारण प्रकृतीमध्ये वर्तमान असून, जगात दृष्टिगोचर होते. ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top