ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 27/ मन्त्र 10
नि त्वा॑ दधे॒ वरे॑ण्यं॒ दक्ष॑स्ये॒ळा स॑हस्कृत। अग्ने॑ सुदी॒तिमु॒शिज॑म्॥
स्वर सहित पद पाठनि । त्वा॒ । द॒धे॒ । वरे॑ण्यम् । दक्ष॑स्य । इ॒ळा । स॒हः॒ऽकृ॒त॒ । अग्ने॑ । सु॒ऽदी॒तिम् । उ॒शिज॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नि त्वा दधे वरेण्यं दक्षस्येळा सहस्कृत। अग्ने सुदीतिमुशिजम्॥
स्वर रहित पद पाठनि। त्वा। दधे। वरेण्यम्। दक्षस्य। इळा। सहःऽकृत। अग्ने। सुऽदीतिम्। उशिजम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 27; मन्त्र » 10
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे सहस्कृताऽग्ने ! यथाऽहमिळा दक्षस्य वरेण्यं सुदीतिमुशिजं त्वा निदधे तथैव त्वं मां विद्यानिधिं सम्पादय ॥१०॥
पदार्थः
(नि) निश्चये (त्वा) त्वाम् (दधे) दधेय (वरेण्यम्) स्वीकर्त्तुं योग्यम् (दक्षस्य) बलस्य (इळा) प्रशंसितेनोपदेशेन सुसंस्कृतेनाऽन्नादिना वा (सहस्कृत) सहो बलं कृतं येन तत्सम्बुद्धौ (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (सुदीतिम्) सुष्ठुविज्ञानप्रकाशयुक्तम् (उशिजम्) सद्गुणप्रचारं कामयमानम् ॥१०॥
भावार्थः
यथा विद्यार्थिनोऽध्यापकानामिच्छानुकूलानि कर्माणि कृत्वा प्रसन्नान्रक्षन्ति तथैवाऽध्यापका विद्यार्थिनामिच्छानुकूलाञ्छुभान्गुणान्दत्वा प्रसादयन्तु ॥१०॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (सहस्कृत) बलकारक (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजयुक्त पुरुष ! जैसे मैं (इळा) उत्तम उपदेश वा उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्न आदि से (दक्षस्य) पराक्रम के (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य (सुदीतिम्) उत्तम विज्ञान के प्रकाश से युक्त (उशिजम्) उत्तम गुणों के प्रचार की कामना करनेवाले (त्वा) आपको (नि) निश्चय से (दधे) धारण करूँ, वैसे ही आप मुझको विद्या का पात्र करो ॥१०॥
भावार्थ
जैसे विद्यार्थी जन अध्यापक लोगों की इच्छा के अनुसार कर्म्मों को कर प्रसन्न रखते हैं, वैसे ही अध्यापक लोग विद्यार्थियों की इच्छा के अनुकूल उत्तम गुणों को देकर प्रसन्न करें ॥१०॥
विषय
शक्तिशालिता
पदार्थ
[१] हे (सहस्कृत) = शक्ति द्वारा किए जानेवाले, अर्थात् शक्ति द्वारा उपासित होनेवाले प्रभो ! हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (त्वा) = आपको (दक्षस्य) = उन्नतिशील पुरुष की (इडा) = वाणी (निदधे) = अपने हृदय में स्थापित करती है। जो भी व्यक्ति दक्ष बनता है, कार्यों को कुशलता से करता हुआ आगे बढ़ता है, उस पुरुष से उच्चरित स्तुति- वाणी प्रभु को प्रिय लगती है, उसी के हृदय में प्रभु का वास होता है। [२] उस प्रभु का जो कि (वरेण्यम्) = वरणीय है। प्रकृति का वरण न करके प्रभु का वरण करना ही ठीक है। (सुदीतिम्) = शोभन दीप्तियुक्त हैं, और (उशिजम्) = [कामयमानं] हमारे हित की कामनावाले हैं। प्रभु को हृदयों में धारण करने से हमारा जीवन श्रेष्ठ दीप्तियुक्त बनता है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु शक्ति के सम्पादन तथा कुशलता से कार्यों को करते हुए स्तवन द्वारा प्राप्त होते हैं। प्रभुप्राप्ति हमारे जीवनों को दीप्त बनाती है ।
विषय
विद्वान् प्रधान नेता, और स्वामी के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (सहस्कृत) बल के द्वारा उत्पन्न अग्नि के समान (सहःकृत) शत्रु पराजयकारी बल से सम्पन्न, एवं प्रसिद्ध राजन् ! (अग्ने) अग्रणी तेजस्विन् ! विद्वन् ! एवं नायक ! (दक्षस्य इडा) दक्ष अर्थात् विद्योपार्जन और धनोपार्जन, सेनासञ्चालन में चतुर, एवं शत्रुपक्ष को भस्म करने वाले पुरुष की (इडा) वाणी, भूमिवासिनी प्रजा, और सर्वोपरि इच्छा (वरेण्यम्) वरण करने योग्य (सुदीतिम्) उत्तम दीप्ति से युक्त, (उशिजम्) शिष्यों को हृदय से चाहने वाले, तेजस्वी (त्वा) तुझको (निदधे) स्थापित करूं। (२) पापदहन करने में समर्थ पुरुष दक्ष है। उसकी स्वाभाविक मानसी प्रवृत्ति मनोभूमि इला है वह उस परम वरणीय तेजोमय, कान्तिमय सर्वप्रिय को भीतर धारण करे। इत्येकोनविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ १ ऋतवोऽग्निर्वा। २–१५ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ७, १०, १४, १५ निचृद्गायत्री। २, ३, ६, ११, १२ गायत्री। ४, ५, १३ विराड् गायत्री। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जसे विद्यार्थी अध्यापकाच्या इच्छेनुसार काम करून त्यांना प्रसन्न ठेवतात, तसेच अध्यापकांनीसुद्धा विद्यार्थ्यांना इच्छेनुकूल उत्तम गुण देऊन प्रसन्न करावे. ॥ १० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, child of omnipotence, brilliant with intelligence, and passionate for action, home-coming graduate, darling of our love and choice, just as the Lord’s earth holds the divine heat of life, just as the vedi holds the sacred fire for growth to blazing heights of flame, so does Ila, divine word of the Lord, expertise of the fatherly teacher, mother earth, the cow, and the mother teacher of the school, these bear you upto your accomplishment and perfection to full humanity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
More about the enlightened persons.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O powerful and purifier like the fire ! I honor and uphold you, who are mighty on account of taking well-cooked and nourishing good food. You are most acceptable (noble) blessed with the light of good knowledge and desirous of the extension of good virtues. You should also make me the lord of the treasure of knowledge and wisdom.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the pupils please their teachers by doing good deeds as they desired or according to their desire, in the same manner, teachers also should satisfy their pupils by giving them (the knowledge of) good virtues as desired by their pupils.
Foot Notes
(इला ) प्रशंसितेनोपदेशेन सुसंस्कृतेनाऽन्नादिना वा । इलेति अन्ननाम (N.G. 2, 7) = By admirable teaching or well cooked good food. (सुदीतिम्) सुष्ठुविज्ञान प्रकाशयुक्तम् । दीदयति ज्वलतिकर्मा (N.G. 1, (34) 16) = Blessed with the light of good knowledge.(उशिजम्) सद् णप्रचारं कामायमानम्, उशिजम् | वश कान्तौ (अदा० ) वश: कित् (उणादि 2, 72 ) = Desiring the spread of good virtues.
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