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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 27/ मन्त्र 9
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    धि॒या च॑क्रे॒ वरे॑ण्यो भू॒तानां॒ गर्भ॒मा द॑धे। दक्ष॑स्य पि॒तरं॒ तना॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धि॒या । च॒क्रे॒ । वरे॑ण्यः । भू॒ताना॑म् । गर्भ॑म् । आ । द॒धे॒ । दक्ष॑स्य । पि॒तर॑म् । तना॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धिया चक्रे वरेण्यो भूतानां गर्भमा दधे। दक्षस्य पितरं तना॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धिया। चक्रे। वरेण्यः। भूतानाम्। गर्भम्। आ। दधे। दक्षस्य। पितरम्। तना॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 27; मन्त्र » 9
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यो वरेण्यस्तना धिया दक्षस्य पितरं भूतानां गर्भमादधे विद्यावृद्धिं चक्रे तमात्मवत्सेवध्वम् ॥९॥

    पदार्थः

    (धिया) श्रेष्ठया प्रज्ञया शिक्षया वा (चक्रे) कुर्य्यात् (वरेण्यः) वरितुमर्होऽतिश्रेष्ठः (भूतानाम्) प्राणिनाम् (गर्भम्) विद्यादिसद्गुणस्थापनाख्यम् (आ) समन्तात् (दधे) दधेत (दक्षस्य) चतुरस्य विद्यार्थिनः (पितरम्) पितृवत्पालकम् (तना) विस्तृतया ॥९॥

    भावार्थः

    यथा पतिः पत्न्यां गर्भं धारयित्वोत्तमान्यपत्यान्युत्पादयति तथैव विद्वांसो मनुष्याणां बुद्धौ विद्यागर्भं स्थापयित्वोत्तमान् व्यवहारान् जनयेयुः ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (वरेण्यः) आदर करने योग्य अति श्रेष्ठ पुरुष (तना) विस्तारयुक्त (धिया) श्रेष्ठ बुद्धि वा शिक्षा से (दक्षस्य) चतुर विद्यार्थीपुरुष के (पितरम्) पिता के सदृश पालनकर्त्ता (भूतानाम्) प्राणियों के (गर्भम्) विद्या आदि उत्तम गुणों को स्थिति करने रूप गर्भ को (आ) (दधे) सब प्रकार धारण करे और विद्यासम्बन्धी वृद्धि को (चक्रे) करे तो उसकी अपने आत्मा के सदृश सेवा करो ॥९॥

    भावार्थ

    जैसे पति अपनी स्त्री में गर्भ को धारण करके श्रेष्ठ सन्तानों को उत्पन्न करता है, वैसे ही विद्वान् लोग मनुष्यों की बुद्धि में विद्यासम्बन्धी गर्भ की स्थिति करके उत्तम व्यवहारों को उत्पन्न करें ॥९॥

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    विषय

    बुद्धिपूर्वक कर्मों द्वारा प्रभु का उपासन

    पदार्थ

    [१] वह प्रभु (धिया) = ज्ञानपूर्वक कर्मों द्वारा (चक्रे) = [कृतः अभूत्] हृदयों में स्थापित किया जाता है। यह प्रभु ही (वरेण्यः) = वरणीय व श्रेष्ठ है। सब (भूतानाम्) = भूतों के (गर्भम्) = गर्भ को (आदधे) = धारण करता है । 'मम यो निर्महद् ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्, संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत' महत् तत्त्ववाली प्रकृति में प्रभु ही गर्भ को धारण करते हैं और उससे सब भूतों का जन्म होता है। [२] वे प्रभु ही (दक्षस्य पितरम्) = [दक्ष = Growth] उन्नति के रक्षक पुरुष को (तना) = शक्तियों के विस्तार द्वारा धारण करते हैं। जो भी व्यक्ति अपने जीवन में उन्नति व विकास के लिये यत्नशील होता है, प्रभु उसकी शक्तियों का विस्तार करते हैं और इस प्रकार उसको धारण करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- बुद्धिपूर्वक कर्मों द्वारा प्रभु का उपासन होता है। ये प्रभु ही सब भूतों को उत्पन्न करते हैं और उन्नतिशील जीवों की शक्तियों का विस्तार करते हैं।

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    विषय

    विद्वान् प्रधान नेता, और स्वामी के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (वरेण्यः) वरण करने योग्य, अतिश्रेष्ठ, गुरु जन (तना धिया) अपनी विस्तृत श्रेष्ठ बुद्धि और ज्ञान आधान करने वाली शिक्षा से (भूतानां) सभी प्राणियों की (गर्भम्) गर्भ के समान रक्षा करने वाले और (दक्षस्य) चतुर विद्यार्थी जन के (पितरं) पिता के तुल्य पालन करने वाले, ज्ञान, सद्गुण स्थापनादि ग्रहणयोग्य शिक्षण (आदधे) प्रदान करे। और (चक्रे) तदनुसार आचरण करे। (२) (वरेण्यः) सूर्य (दक्षस्य = क्षदस्य तना) अन्न को विस्तृत करने वाली भूमि में (भूतानां) उत्पन्न होने योग्य प्राणियों के (गर्भम्) रक्षक, उत्पादक और पालक अग्नि को धारण सामर्थ्य से उत्पन्न करता और अन्तरिक्ष को जल से गर्भित करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ १ ऋतवोऽग्निर्वा। २–१५ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ७, १०, १४, १५ निचृद्गायत्री। २, ३, ६, ११, १२ गायत्री। ४, ५, १३ विराड् गायत्री। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा पती आपल्या स्त्रीत गर्भ धारण करून श्रेष्ठ संतानांना उत्पन्न करतो, तसेच विद्वान लोकांनी मनुष्याच्या बुद्धीमध्ये विद्यारूपी गर्भ निर्माण करून उत्तम व्यवहार उत्पन्न करावा. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, lord of our love and choice, as parent and teacher, bears the natural child, seed of evolving humanity, in protective and educational custody and, with expansive intelligence, completes the growth and accomplishment of the child to the future protector and promoter of human expertise and perfection through educational rebirth, into the full man as a ‘dvija’.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should the enlightened persons do is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! serve that great scholar like your own self, who being most acceptable establishes his extensive wisdom among the intelligent and wise pupils. In fact, those enlightened persons sow a seed (in the form of establishing knowledge and other virtues) which is protector of all beings like a father and which develops knowledge ever more.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As a husband inseminates and impregnates his wife and thus produce good children, in the same manner, the enlightened persons should put the seed of wisdom among the intellectual pupils and accomplish thus good dealings.

    Foot Notes

    (गर्भम् ) विद्यादिसग्दुणस्थापनाख्यम् । गर्भो गृर्भे गृणातितयदर्थे गिरत्यर्थानिति वा । (N.R.T. 10, 2, 23) = The seed embryo in the form of the establishing wisdom and other virtues. (तना) विस्तृतया। = Extensive or vast.

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