ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 27/ मन्त्र 13
ई॒ळेन्यो॑ नम॒स्य॑स्ति॒रस्तमां॑सि दर्श॒तः। सम॒ग्निरि॑ध्यते॒ वृषा॑॥
स्वर सहित पद पाठई॒ळेन्यः॑ । न॒म॒स्यः॑ । ति॒रः । तमां॑सि । द॒र्श॒तः । सम् । अ॒ग्निः । इ॒ध्य॒ते॒ । वृषा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ईळेन्यो नमस्यस्तिरस्तमांसि दर्शतः। समग्निरिध्यते वृषा॥
स्वर रहित पद पाठईळेन्यः। नमस्यः। तिरः। तमांसि। दर्शतः। सम्। अग्निः। इध्यते। वृषा॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 27; मन्त्र » 13
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्यास्तमांसि तिरः तिरस्कुर्वन्नग्निरिव वृषा दर्शत ईळेन्यो नमस्यः समिध्यते तं यूयं सततं भजत ॥१३॥
पदार्थः
(ईळेन्यः) ईळितुं स्तोतुमर्हः (नमस्यः) सत्कर्त्तुं योग्यः (तिरः) तिरस्कुर्वन् (तमांसि) रात्रीः (दर्शतः) द्रष्टुं योग्यः (सम्) सम्यक् (अग्निः) अग्निरिव प्रकाशमानः (इध्यते) प्रदीप्यते (वृषा) वर्षकः ॥१३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यस्तमो निहत्य प्रकाशं जनयति तथैवाप्ता विद्वांसोऽविद्यां हत्वा विद्यां प्रकाशयन्ति ॥१३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (तमांसि) रात्रियों के (तिरः) तिरस्कार करनेवाले (अग्निः) अग्नि के सदृश प्रकाशमान (वृषा) वृष्टिकर्त्ता (दर्शतः) देखने (ईडेन्यः) स्तुति करने और (नमस्यः) सत्कार करने योग्य पुरुष (सम्) उत्तम प्रकार (इध्यते) प्रकाशित किया जाता है, उसका आप निरन्तर आदर करो ॥१३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य अन्धकार को दूर कर प्रकाश उत्पन्न करता है, वैसे ही यथार्थवक्ता विद्वान् लोग अविद्या का नाश और विद्या का प्रकाश करते हैं ॥१३॥
विषय
ईडेन्य व नमस्य
पदार्थ
[१] ये प्रभु (ईडेन्य:) = स्तुति-योग्य हैं, (नमस्यः) = नमस्कार योग्य हैं। (तमांसि तिरः) = सब अन्धकारों को तिरोभूत करनेवाले हैं और (दर्शत:) = दर्शनीय हैं। प्रभु का हम स्तवन करते हैं, तो प्रभु हमारे अज्ञानान्धकार को विनष्ट करते हैं। [२] ये (वृषा) = शक्तिशाली (अग्निः) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले प्रभु (सं इध्यते) = स्तवन व नमन द्वारा हृदयों में समिद्ध किये जाते हैं। प्रभु का दर्शन उन्हीं को होता है जो कि शक्ति का सम्पादन करें [वृषा] तथा उन्नतिपथ पर आगे बढ़ने का प्रयत्न करें [अग्नि] ।
भावार्थ
भावार्थ- स्तवन व नमन से प्रीत प्रभु हमारे अज्ञानान्धकार को विनष्ट करते हैं। हमें उन्नतिपथ पर ले चलते हैं और शक्तिशाली बनाते हैं -
विषय
यन्त्रचालकाग्निवत् नियन्ता के कर्त्तव्य।
भावार्थ
जिस प्रकार (अग्निः) आग (तमांसि तिरः समिध्यते) अन्धकारों का नाश करके स्वयं प्रकाशित होता है उसी प्रकार (वृषा) बलवान् और राज्य प्रबन्ध करने में चतुर राजा और व्रत-बन्ध करने में चतुर विद्वान् (ईडेन्यः) सबके स्तुति करने योग्य, (नमस्यः) सबके द्वारा नमस्कार करने योग्य, (दर्शतः) सबसे दर्शन करने योग्य हो और वह (तमांसि तिरः) सब प्रकार के शोक, दुःखों और शत्रुरूप तिमिरों और अज्ञानान्धाकारों को दूर करता हुआ (सम् इध्यते) अच्छी प्रकार ज्ञान और तेज से प्रकाशित होता है। (२) परमेश्वर स्तुत्य,नमस्य, सबका द्रष्टा है वह हृदय से अज्ञानों को दूर करता हृदय में सुखानन्दों की वर्षा करता हुआ हृदय में प्रकाश करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ १ ऋतवोऽग्निर्वा। २–१५ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ७, १०, १४, १५ निचृद्गायत्री। २, ३, ६, ११, १२ गायत्री। ४, ५, १३ विराड् गायत्री। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य अंधकार दूर करून प्रकाश उत्पन्न करतो, तसेच आप्त विद्वान लोक अविद्येचा नाश करून विद्येचा प्रकाश करतात. ॥ १३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, worthy of worship, worthy of reverence and salutations, virile and generous, is beautiful, it conquers the darkness of the world and is lighted and raised in yajnas.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
More tips for the enlightened persons.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men you should always serve the enlightened persons who dispel the darkness (of ignorance) like the fire. In fact, such a person showers happiness and peace, is handsome, praise-worthy and worthy of honor with salutations. He is manifested (kindled) like the purifying fire.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
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Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the sun dispels darkness of night and creates light, in the same manner, absolutely truthful enlightened persons remove ignorance and manifest knowledge.
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