ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 27/ मन्त्र 7
होता॑ दे॒वो अम॑र्त्यः पु॒रस्ता॑देति मा॒यया॑। वि॒दथा॑नि प्रचो॒दय॑न्॥
स्वर सहित पद पाठहोता॑ । दे॒वः । अम॑र्त्यः । पु॒रस्ता॑त् । ए॒ति॒ । मा॒यया॑ । वि॒दथा॑नि । प्र॒ऽचो॒दय॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
होता देवो अमर्त्यः पुरस्तादेति मायया। विदथानि प्रचोदयन्॥
स्वर रहित पद पाठहोता। देवः। अमर्त्यः। पुरस्तात्। एति। मायया। विदथानि। प्रऽचोदयन्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 27; मन्त्र » 7
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 2
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्यार्थिनः किं कुर्युरित्याह।
अन्वयः
हे जिज्ञासवो यथाऽमर्त्यो होता देवः पुरस्तान्मायया सह विदथानि प्रचोदयन् युष्मानेति तथैतं यूयमपि प्राप्नुत ॥७॥
पदार्थः
(होता) दाता (देवः) दिव्यगुणकर्मस्वभावः (अमर्त्यः) मरणधर्मरहितः (पुरस्तात्) प्रथमतः (एति) गच्छति (मायया) प्रज्ञया (विदथानि) विज्ञानानि (प्रचोदयन्) प्रज्ञापयन् ॥७॥
भावार्थः
हे विद्यार्थिनो योऽध्यापको युष्मभ्यं निष्कपटतया विद्यादिशुभगुणान् प्रदाय सुशिक्षयेत्तं यूयमप्यात्मवत्सेवध्वम् ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्यार्थी क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे धर्म आदि को जानने की इच्छा करनेवाले पुरुषो ! जैसे (अमर्त्यः) मरणधर्म से रहित (होता) देनेवाला (देवः) उत्तम गुण कर्म स्वभावयुक्त पुरुष (पुरस्तात्) पहिले से (मायया) उत्तम बुद्धि के साथ (विदथानि) विज्ञानों का (प्रचोदयन्) प्रचार करता हुआ आप लोगों को (एति) प्राप्त होता है, वैसे उसको आप लोग भी प्राप्त होइये ॥७॥
भावार्थ
हे विद्यार्थी जनो ! जो अध्यापक पुरुष आप लोगों के लिये कपट त्याग के विद्या आदि उत्तम गुणों को देकर उत्तम शिक्षा देवे, उसकी आप लोग भी अपने आत्मा के तुल्य सेवा करो ॥७॥
विषय
रक्षण का प्रकार
पदार्थ
[१] वे प्रभु (होता) = हमारे लिए सब आवश्यक पदार्थों को देनेवाले हैं। (देवः) = प्रकाशमय हैंहमारे जीवनों को प्रकाशमय बनाते हैं। आवश्यक पदार्थों को प्राप्त कराके तथा प्रकाश देकर (अमर्त्यः) = वे प्रभु हमें मृत्यु से बचाते हैं। [२] वे प्रभु (मायया) = ज्ञान के साथ (पुरस्ताद् एति) = हमारे सामने आते हैं और (विदथानि) = ज्ञानों को (प्रचोदयन्) = हमारे अन्त:करणों में प्रेरित करते हैं। वस्तुतः इन ज्ञान की प्रेरणाओं से ही ठीक मार्ग को दिखलाते हुए वे हमारा रक्षण करते हैं। पदार्थ व प्रकाश को प्राप्त कराते हैं। हमारे अन्तःकरणों में ज्ञान
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु हमें आवश्यक को प्रेरित करते हैं ।
विषय
विद्वान् प्रधान नेता, और स्वामी के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(होता) दानशील (देवः) विजिगीषु राजा, नायक (विदथानि) प्राप्त करने योग्य ऐश्वर्यों को (प्रचोदयन्) उत्तम रीति से देता हुआ (मायया) अपने बुद्धि और आज्ञा के बल से (पुरस्तात् एति) सबके आगे चलता है। (२) (देवः होता) विद्वान् ज्ञान प्रकाशक ज्ञानदाता गुरु (विदथानि प्रचोदयन्) ज्ञानों का उपदेश करता हुआ (मायया) बुद्धि के बल से आगे चलता है और पीछे २ शिष्य उसका अनुगमन करते हैं। (३) परमेश्वर (विदथानि प्रचोदयन्) उत्तम ज्ञानों को प्रेरणा करता हुआ (मायया) जीव की निजी बुद्धि शक्ति से ही (पुरस्तात् एति) उसके आगे साक्षात् ज्ञान का विषय होता है। वह (देवः) सब सुखों का दाता प्रकाशस्वरूप है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ १ ऋतवोऽग्निर्वा। २–१५ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ७, १०, १४, १५ निचृद्गायत्री। २, ३, ६, ११, १२ गायत्री। ४, ५, १३ विराड् गायत्री। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्यार्थ्यांनो! जे अध्यापक तुमच्यासाठी कपटाचा त्याग करून विद्या इत्यादी उत्तम गुणांना देऊन सुशिक्षण देतात त्याची तुम्ही आपल्या आत्म्याप्रमाणे सेवा करा. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The brilliant performers of yajna, immortal and indestructible, goes forward with his innate power and intelligence, inspiring, advancing and accelerating yajnic programmes of creative and productive corporate action.
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