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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 27/ मन्त्र 8
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    वा॒जी वाजे॑षु धीयतेऽध्व॒रेषु॒ प्र णी॑यते। विप्रो॑ य॒ज्ञस्य॒ साध॑नः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒जी । वाजे॑षु । धी॒य॒ते॒ । अ॒ध्व॒रेषु॑ । प्र । नी॒य॒ते॒ । विप्रः॑ । य॒ज्ञस्य॑ । साध॑नः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वाजी वाजेषु धीयतेऽध्वरेषु प्र णीयते। विप्रो यज्ञस्य साधनः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वाजी। वाजेषु। धीयते। अध्वरेषु। प्र। नीयते। विप्रः। यज्ञस्य। साधनः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 27; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वदितरे किं कुर्युरित्याह।

    अन्वयः

    हे जिज्ञासवो यथर्त्विग्भिर्वाजेष्वध्वरेषु यज्ञस्य साधनो वाजी वेगयुक्तोऽग्निर्धीयते तथा विप्रः प्रणीयते ॥८॥

    पदार्थः

    (वाजी) वेगवान् वह्निः (वाजेषु) विज्ञानक्रियामयेषु (धीयते) ध्रियते (अध्वरेषु) मित्रत्वादिगुणयुक्तव्यवहारेषु विधियज्ञेषु वा (प्र) (नीयते) प्राप्यते (विप्रः) मेधावी (यज्ञस्य) सद्व्यवहारस्य (साधनः) यः साध्नोति सः ॥८॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या यथाऽग्निहोत्रादिक्रियामयेषु यज्ञेषु प्राधान्येनाऽग्निराश्रीयते तथैव विद्याविनयसुशिक्षाव्यवहारेषु विद्वानाश्रयितव्यः ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वानों से भिन्न जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे धर्म आदि की जिज्ञासा करनेवाले पुरुषो ! जैसे ऋत्विजों से (वाजेषु) विज्ञान और क्रियास्वरूप (अध्वरेषु) मित्रता आदि गुणयुक्त व्यवहारों वा यज्ञों में (यज्ञस्य) उत्तम व्यवहार का (साधनः) सिद्धिकर्त्ता (वाजी) वेगयुक्त अग्नि (धीयते) धारण किया जाता है वैसे (विप्रः) बुद्धिमान् (प्र) (नीयते) प्राप्त किया जाता है ॥८॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे अग्निहोत्र आदि क्रियास्वरूप यज्ञों में मुख्यभाव से अग्नि का आश्रय किया जाता है, वैसे ही विद्या विनय और उत्तम शिक्षा के व्यवहारों में विद्वान् का आश्रय करना चाहिये ॥८॥

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    विषय

    युद्ध व यज्ञ

    पदार्थ

    [१] (वाजी) = वह सर्वशक्तिमान् प्रभु (वाजेषु) = संग्रामों में (धीयते) = धारण किया जाता है, अर्थात् जब हम काम-क्रोध-लोभ आदि आन्तर हेय-वृत्तियों से संग्राम करते हैं, तो इस संग्राम में विजय के लिए प्रभु को ही आगे स्थापित करते हैं। प्रभु ने ही इन काम आदि को पराजित करना होता है। [२] (अध्वरेषु) = यज्ञों में भी वे प्रभु प्रणीयते प्राप्त कराए जाते हैं। सब यज्ञों को भी तो प्रभु ने ही पूर्ण करना होता है। प्रभु ही (वि-प्र:) = विशेषरूप से यज्ञों को पूरण करनेवाले हैं। (यज्ञस्य साधनः) = सब यज्ञों को सिद्ध करनेवाले हैं। वस्तुतः इन अध्यात्म-संग्रामों व यज्ञों द्वारा ही प्रभु का पूजन होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - सब संग्रामों में विजय तथा यज्ञों में सफलता प्रभुकृपा से ही प्राप्त होती है।

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    विषय

    विद्वान् प्रधान नेता, और स्वामी के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (यज्ञस्य साधनः वाजी यथा वाजेषु प्रणीयते) संग्राम करने का साधन और संग्राम का विजय करने वाला जिस प्रकार अश्व और अश्व नाम सेनाङ्ग संग्रामों में आगे २ बढ़ाया जाता है उसी प्रकार (अध्वरेषु) हिंसादि दोषों से रहित (वाजेषु) ज्ञानों और वलों के कार्यों में (यज्ञस्य) परस्पर सत्संग में भी भाव और विद्यादि दान की साधना करने वाला, उत्तम रीति से निभाने वाला (विप्रः) विविध विद्याओं से पूर्ण करने वाला पुरुष ही (प्रधीयते) प्रधान पद पर स्थापित किया जाता और (प्रणीयते) आगे, अग्रासन पर सब कामों में आगे किया जाता है। (२) इसी प्रकार परमेश्वर सब ऐश्वर्यों के प्राप्तयर्थ सब यज्ञों में सबसे प्रथम स्तुति किया जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ १ ऋतवोऽग्निर्वा। २–१५ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ७, १०, १४, १५ निचृद्गायत्री। २, ३, ६, ११, १२ गायत्री। ४, ५, १३ विराड् गायत्री। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जसे अग्निहोत्र इत्यादी क्रियास्वरूप यज्ञामध्ये मुख्य भावाने अग्नीचा आश्रय घेतला जातो, तसेच विद्या, विनय व उत्तम शिक्षणाच्या व्यवहारात विद्वानांचा आश्रय घेतला पाहिजे. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, tempestuous power and vibrant accomplisher of yajnic creation, is adopted, lighted and accelerated in top gear in scientific and technological programmes of friendly and cooperative nature.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should others do like the enlightened persons.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O seekers of truth! as the priests place impetuous fire for all Yajnas (non-violent sacrifices, full of knowledge) and all noble dealings), so in the same manner, a wise person is chosen as leader for all philanthropic noble works.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! as the fire is principally resorted to in Agnihotra and other Yajnas of ritual type, so in all dealings of true knowledge, humility and good education in the enlightened persons should be approached to lead the deliberations.

    Foot Notes

    (वाजी) वेगवान् वह्निः | वीर्यं वै वाजा:। ( Stph 3, 3, 4, 7 ) वाज इति बलनाम ( N. G. 2, 9 ) = Impetuous fire. (अध्वरेषु ) मित्रत्वादिगुणयुक्तव्यवहारेषु विधियज्ञेषु वा । अध्वर इति यज्ञनाम ध्वरति हिंसाकर्मा तत्प्रतिषेष: N.R.T. 1, 8) = In all non-violent dealings promoting friendship or in Yajnas of formal type.

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