ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 27/ मन्त्र 4
स॒मि॒ध्यमा॑नो अध्व॒रे॒३॒॑ग्निः पा॑व॒क ईड्यः॑। शो॒चिष्के॑श॒स्तमी॑महे॥
स्वर सहित पद पाठस॒म्ऽइ॒ध्यमा॑नः । अ॒ध्व॒रे । अ॒ग्निः । पा॒व॒कः । ईड्यः॑ । शो॒चिःऽके॑शः । तम् । ई॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
समिध्यमानो अध्वरे३ग्निः पावक ईड्यः। शोचिष्केशस्तमीमहे॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽइध्यमानः। अध्वरे। अग्निः। पावकः। ईड्यः। शोचिःऽकेशः। तम्। ईमहे॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 27; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे मनुष्या योऽध्वरे समिध्यमानः शोचिष्केशः पावकोऽग्निरिवेड्यो भवेत्तं वयमीमहे यूयमप्येतं सेवध्वम् ॥४॥
पदार्थः
(समिध्यमानः) सम्यक्प्रदीप्यमानः (अध्वरे) अहिंसामये यज्ञे (अग्निः) विद्युदिव (पावकः) पवित्रकर्त्ता (ईड्यः) स्तोतुमर्हः (शोचिष्केशः) शोचींषि तेजांसि केशा इव यस्य सः (तम्) (ईमहे) याचामहे ॥४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽस्मिन् जगत्यग्निरेव सर्वेभ्यो महानत एतद्विद्या याचनीयास्ति तथैव विद्वांसः सर्वेषु महान्तश्चैतद्विद्याप्राप्तये याचनीयाः सन्ति ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (अध्वरे) अहिंसारूप यज्ञ में (समिध्यमानः) उत्तम रीति से प्रकाशमान (शोचिष्केशः) केशों के सदृश तेजों से युक्त (पावकः) पवित्र करनेवाला (अग्निः) बिजुली के सदृश (ईड्यः) स्तुति करने योग्य होवे (तम्) उसकी हम लोग (ईमहे) याचना करते हैं, आप लोग भी इसका सेवन करिये ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इस संसार में अग्निरूप पदार्थ ही सम्पूर्ण पदार्थों से श्रेष्ठ है, इसलिये इस अग्निविषयिणी विद्या की प्रार्थना करनी योग्य है, वैसे ही विद्वान् लोग सम्पूर्ण मनुष्यों में श्रेष्ठ और उनकी विद्याप्राप्ति के लिये प्रार्थना करनी चाहिये ॥४॥
विषय
अग्निः पावकः
पदार्थ
[१] (अध्वरे) = इस जीवनयज्ञ में (समिध्यमानः) = दीप्त किए जाते हुए वे प्रभु (अग्निः) = हमारे आगे ले चलनेवाले होते हैं। हम प्रभु का ध्यान करते हैं। यह प्रभुस्मरण हमें उन्नतिपथ पर ले चलता है। (पावकः) = वे प्रभु हमें पवित्र करते हैं । उन्नतिपथ पर ले चलने का यही तो मार्ग है। प्रभु हमारी मलिनताओं को दूर करते हैं। इसीलिए वे प्रभु (ईड्यः) = स्तुत्य हैं। यदि स्तुति से हमारा जीवन पवित्र न बने, तो वह स्तुति किस काम की ? [२] वे प्रभु (शोचिष्केशः) = दीप्तज्ञान-रश्मियोंवाले हैं। (तं ईमहे) = उस प्रभु को हम उपासित करते हैं। इसकी उपासना हमें उन दीप्तज्ञान-रश्मियों में स्नान कराती है। यह स्नान हमारे जीवन को पवित्र करता है। पवित्रता द्वारा हम उन्नत होते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का उपासन हमें ज्ञान से धो डालता है। हम पवित्र होकर आगे बढ़ते हैं।
विषय
विद्वान् प्रधान नेता, और स्वामी के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(अध्वरे समिध्यमानः) यज्ञ में प्रज्वलित होते हुए (अग्निः) अग्नि के समान (अध्वरे) हिंसारहित कार्य, प्रजापालन, अध्यापन आदि कार्य में (समिध्यमानः) अच्छी प्रकार प्रकाशित होता हुआ (अग्निः) ज्ञानवान् पुरुष (पावकः) अग्नि के समान ही सबके हृदयों को पवित्र करता हुआ (ईड्यः) स्तुति योग्य और सबके चाहने योग्य होता है। वही (शोचिष्केशः) दीप्तियुक्त किरणों को केशों के समान धारण करने वाले अग्नि के समान तेजोमय किरणों से युक्त तेजस्वी होता है। (तम्) उससे ही हम (ईमहे) ज्ञानोपदेश और ऐश्वर्य की याचना करें। (२) परमेश्वर (अध्वरे) अहिंसनीय, अमृत, अविनाशी पद पर विराजता हुआ परमपावन, परमस्तुत्य तेजोमय है उसी की प्रार्थनोपासना करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ १ ऋतवोऽग्निर्वा । २–१५ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ७, १०, १४, १५ निचृद्गायत्री। २, ३, ६, ११, १२ गायत्री। ४, ५, १३ विराड् गायत्री। पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अग्नीरूप पदार्थच संपूर्ण पदार्थात श्रेष्ठ आहेत. त्यासाठी या अग्निविषयक विद्येची प्रार्थना करणे योग्य आहे, तसेच विद्वान लोकांनी संपूर्ण माणसातील श्रेष्ठ लोकांकडून विद्याप्राप्तीसाठी प्रार्थना करावी. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Kindled, raised and rising in flames in the yajna of love and non-violence, Agni is lord of light and fire, adorable. Mighty and flaming are his locks of fire, and we praise and pray to him in words of homage.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of fire are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men! we desire the admirable person. He is purifier like the fire which is kindled in the Yajna (non-violent sacrifice,. Its' flames are like its hairs. You should also serve such a wise and learned man.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The Agni ( fire sun electricity ) is in this world the greatest of all and its knowledge is to be sought after. Likewise, the scholars are the greatest, and they should be requested for the acquisition of this science.
Foot Notes
(शोचिष्केश:) शोचींषि तेजांसि केशा इव केशाः यस्य सः । शोचिरीति ज्वलतो नाम (N.G. 1, 17) = Whose flames are like its hair. (ईमहे) याचामहे | ईमहे इति याञ्च्याकर्मा (N.G. 3, 19) = Beg, implore.
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