ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 12
इ॒मं नो॑ अग्ने अध्व॒रं होत॑र्वयुन॒शो य॑ज। चि॒कि॒त्वान्दैव्यं॒ जन॑म् ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । अ॒ध्व॒रम् । होतः॑ । व॒यु॒न॒ऽशः । य॒ज॒ । चि॒कि॒त्वान् । दैव्य॑म् । जन॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमं नो अग्ने अध्वरं होतर्वयुनशो यज। चिकित्वान्दैव्यं जनम् ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठइमम्। नः। अग्ने। अध्वरम्। होतः। वयुनऽशः। यज। चिकित्वान्। दैव्यम्। जनम् ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 12
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः कीदृशं राजानं कुर्य्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे होतरग्ने ! वयुनशो न इममध्वरं चिकित्वांस्त्वं दैव्यं जनं यज ॥१२॥
पदार्थः
(इमम्) (नः) अस्माकम् (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (अध्वरम्) अहिंसनीयं न्यायव्यवहारम् (होतः) दातः (वयुनशः) प्रज्ञानेन (यज) सङ्गच्छस्व (चिकित्वान्) ज्ञानवान् (दैव्यम्) विद्वद्भिः सत्कृतम् (जनम्) शुभाचरणैः प्रसिद्धम् ॥१२॥
भावार्थः
हे राजप्रजाजन ! त्वं योऽस्माकं मध्ये शुभगुणकर्मस्वभावयुक्तः स्यात्तमेव राज्यकरणे सङ्गतं कुरु ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य कैसे राजा को करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (होतः) देनेवाले (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान राजन् ! आप (वयुनशः) उत्तम ज्ञान से (नः) हमारे (इमम्) इस (अध्वरम्) न नष्ट करने योग्य न्याय व्यवहार को (चिकित्वान्) जाननेवाले आप (दैव्यम्) विद्वानों से सत्कार को प्राप्त हुए (जनम्) शुभाचरणों से प्रसिद्ध जन को (यज) अच्छे प्रकार प्राप्त हों ॥१२॥
भावार्थ
हे राजा प्रजाजन ! आप जो हमारे बीच शुभ गुणकर्मस्वभावयुक्त हो, उसी को राज्य करने में अच्छे प्रकार युक्त करो ॥१२॥
विषय
missing
भावार्थ
हे ( होतः ) ज्ञान के देने वाले ! ( अग्ने ) अग्नि के समान तेजस्विन् आचार्य ! प्रभो ! आप ( चिकित्वान् ) ज्ञानवान् हो । आप ( नः ) हमारे बीच में से ( अध्वरं ) न हिंसा करने योग्य, अपीड़नीय, वा अविनाशी, अध्ययनादि ज्ञान यज्ञ को ( वयुनशः ) उनके ज्ञान शक्ति के अनुसार ( यज ) कर और हमें भी ज्ञान प्रदान कर। और तू दैव्यं ) देव, अर्थात् ज्ञान के इच्छुक (जनम् ) जन, शिष्य को भी ( यज ) अपने संगति में रख । इसी प्रकार हे (अग्ने ) तेजस्विन्, प्रतापिन् ! राजन् ! आप (अध्वरं चिकित्वान्) अहिंसनीय, स्थायी, प्रजापालन रूप यज्ञ को जानते हुए ( वयुनशः ) प्रजाजन को उनके ज्ञान और कर्म सामर्थ्य के अनुसार ( देव्यं जनम् ) देव अर्थात् राजा के उचित सेवक जन रूप में ( यज ) प्राप्त करो और उनको पद पर लगाओ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋजिश्वा ऋषिः ।। विश्वेदेवा देवताः ।। छन्दः – १, ४, १५, १६ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ३, ६, १३, १७ त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पंक्ति: । ७, ८, ११ गायत्री । ९ , १०, १२ निचृद्गायत्री । १४ विराड् जगती ॥
विषय
यज्ञशीलता व देवत्व
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (होत:) = [हुदाने] सब आवश्यक उपकरणों को प्राप्त करानेवाले प्रभो ! आप (नः) = हमारे (इमं अध्वरम्) = इस यज्ञ को (वयुनशः) = ज्ञान के क्रम से यज हमारे साथ संगत करिये। जितना-जितना ज्ञान अधिक हो, उतना-उतना हमारा जीवन यज्ञमय बनता चले । [२] हे प्रभो! आप इस (दैव्यं जनम्) = [ देव एव दैव्यः] देव वृत्तिवाले पुरुष को (चिकित्वान्) = [जानन्] जाननेवाले होइये, अर्थात् इसका पूरा ध्यान करिये। यह आप से रक्षित हुआ हुआ अपने देवत्व को अधिक विकसित करनेवाला बने ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ज्ञान देते हुए हमें यज्ञशील बनायें। हमारा रक्षण करते हुए हमें देवत्व के विकास में समर्थ करें।
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा प्रजाजनांनो ! जो आमच्यामध्ये शुभ, गुण, कर्म स्वभावयुक्त असेल त्यालाच राज्य करण्यासाठी युक्त करा. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, leading light and majestic ruler, generous giver and highpriest of the yajnic order of humanity approved and honoured by enlightened people, you know the enlightened people and the peaceful non violent order. Pray take over, rule and administer this order of ours according to the people’s performance and the law.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What sort of man should be made a ruler - is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O donor and purifier like the fire ! knowing this inviolable just dealing with your admirable wisdom, associate with an enlightened person, honored by great scholars and famous on account of good character and conduct.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men and officers of the State ! appoint that man for the administration of the State, who among us may be the person endowed with the best virtues, actions and temperament.
Foot Notes
(अध्वरम्) अहिंसनीय न्यायव्यवहारम् । ध्वरति हिंसा कर्मा तत्प्रतिषेधः (NKT 1, 3, 8)। = Inviolable just dealing. (वयुनशः) प्रज्ञामेन । वयुनमिति प्रज्ञानाम (NG 3, 9) वयुनमिति प्रशस्यनाम (NG 3, 8)। = With wisdom. (चिकित्वान्) ज्ञानवान् । कित-ज्ञाने (काशवृत्स्नधातुपाठे 2, 74 ) । = Endowed with knowledge. (जनम्) शुभाचरणै: प्रसिद्धम् । जनी-प्रादुर्भावे (दिवा.) = Famous on account of good character and good conduct.
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