ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 7
विश्वे॑ देवास॒ आ ग॑त शृणु॒ता म॑ इ॒मं हव॑म्। एदं ब॒र्हिर्नि षी॑दत ॥७॥
स्वर सहित पद पाठविश्वे॑ । दे॒वा॒सः॒ । आ । ग॒त॒ । शृ॒णु॒त । मे॒ । इ॒मम् । हव॑म् । आ । इ॒दम् । ब॒र्हिः । नि । सी॒द॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वे देवास आ गत शृणुता म इमं हवम्। एदं बर्हिर्नि षीदत ॥७॥
स्वर रहित पद पाठविश्वे। देवासः। आ। गत। शृणुत। मे। इमम्। हवम्। आ। इदम्। बर्हिः। नि। सीदत ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 7
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरध्येतृभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे विश्वे देवासो ! यूयमस्माकं नेदिष्ठमा गत, इदं बर्हिर्निषीदत म इमं हवमा शृणुता ॥७॥
पदार्थः
(विश्वे) सर्वे (देवासः) विद्वांसः (आ) (गत) आगच्छत (शृणुता) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (मे) मम विद्यार्थिनः (इमम्) वर्त्तमाने पठितम् (हवम्) श्रुताधीतविषयम् (आ) (इदम्) वर्त्तमानम् (बर्हिः) उत्तमासनम् (नि) नितराम् (सीदत) आसीना भवत ॥७॥
भावार्थः
अत्र नेदिष्ठमितिपदं पूर्वमन्त्रादनुवर्त्तते। विद्यार्थिभिः परीक्षकान् विदुषः प्रार्थ्य परीक्षायां नियोज्यः सर्वः श्रुताऽधीतविषयस्तत्समीपे निवेदनीयस्ते च सम्यक् परीक्ष्य गुणदोषानुपदिशेयुरेवं कृते सत्यध्ययनं निर्दोषं स्यात् ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर पढ़नेवालों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (विश्वे, देवासः) सब विद्वानो ! तुम हमारे अति समीप (आ, गत) आओ तथा (इदम्) इस (बर्हिः) उत्तम आसन पर (नि, सीदत) निरन्तर स्थिर होओ तथा (मे) मुझ विद्यार्थी के (इमम्) इस (हवम्) सुने पढ़े विषय को (आ, शृणुता) अच्छे प्रकार सुनो ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में नेदिष्ठम् यह पद पिछले मन्त्र से अनुवृत्ति में आता है। विद्यार्थियों को चाहिये कि परीक्षा करनेवाले विद्वानों की प्रार्थना कर परीक्षा में सुनाने योग्य समस्त सुना और पढ़ा विषय उनके समीप में निवेदन करें तथा वे परीक्षक भी अच्छे प्रकार परीक्षा कर गुण और दोषों का उपदेश दें, ऐसा करने पर पढ़ना निर्दोष हो ॥७॥
विषय
विद्वानों की अर्चना । उनसे निवेदन ।
भावार्थ
हे ( विश्वे देवासः ) समस्त विद्वान् लोगो ! (आ गत) आप लोग आओ । ( मे ) मेरे ( इमं ) इस ( हवं ) गुरु से ग्रहण करने योग्य अधीत ज्ञान को ( शृणुत ) श्रवण करो और आप लोग ( इदं बर्हिः ) इस उत्तम पद, वृद्धि योग्य आसन पर (आ नि सीदत ) आकर विराजो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋजिश्वा ऋषिः ।। विश्वेदेवा देवताः ।। छन्दः – १, ४, १५, १६ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ३, ६, १३, १७ त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पंक्ति: । ७, ८, ११ गायत्री । ९ , १०, १२ निचृद्गायत्री । १४ विराड् जगती ॥
विषय
विश्वे देवासः
पदार्थ
[१] (विश्वे देवास:) = हे सब देवो! आप (आगत) = आवो । सब दिव्यगुण मेरी ओर आनेवाले हों। (मे) = मेरी (इमं हवम्) = इस पुकार को (शृणुत) = सुनो । मेरी यह प्रार्थना अवश्य सुनी जाये कि मुझे दिव्य गुणों की प्राप्ति हो। [२] (इदम्) = इस (बर्हिः) = वासनाशून्य हृदय में (आनिषीदत) = समन्तात् आसीन होइये। मेरा यह वासनाशून्य हृदय दिव्यगुणों का अधिष्ठान बने ।
भावार्थ
भावार्थ- सब दिव्यगुण मेरे से प्रार्थनीय होकर मेरे वासनाशून्य हृदय में स्थित हों।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात ‘नेदिष्ठम’ हे पद मागच्या मंत्रातून अनुवृत्तीने आलेले आहे. विद्यार्थ्यांनी विद्वान परीक्षकांची प्रार्थना करून परीक्षेमध्ये जे ऐकवावयाचे ते ऐकवून त्यांच्यासमोर शिकलेल्या विषयाचे प्रकटन करावे व परीक्षकानेही चांगल्या प्रकारे परीक्षा करून गुण-दोषांचे विवेचन करावे. यामुळे शिकणे निर्दोष होते. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O eminent brilliancies of the world, learned and generous presences, come, listen to this invocation of mine and grace this holy seat of our yajnic programme of study and development.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should the students do-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O all enlightened men! please come close to us. Please take this seat for teaching us and hear what we have so far read.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Students should request the enlightened persons to examine, what they have read and having tested them they should tell them the merits and demerits. By so doing the study may become flawless.
Foot Notes
(हवम्) श्रुताधीतविषयम् । हु-दानादनयोः आदाने च (जुहो.) अत्र आदानार्थमादाय गृहीतं श्रुतं वा ज्ञानं गृह्यते । = What has been heard and studied. (बर्हिः) उत्तमासनम् । बर्हिः शब्द आसनार्थे सुप्रसिद्धः सर्वत्र । बर्हिषि इति महन्नाम (NG 3, 3) महत् उत्तम वां आसनं महतामुपवेशनाय ! = Good seat.
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