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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 13
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    विश्वे॑ देवाः शृणु॒तेमं हवं॑ मे॒ ये अ॒न्तरि॑क्षे॒ य उप॒ द्यवि॒ ष्ठ। ये अ॑ग्निजि॒ह्वा उ॒त वा॒ यज॑त्रा आ॒सद्या॒स्मिन्ब॒र्हिषि॑ मादयध्वम् ॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑ । दे॒वाः॒ । शृ॒णु॒त । इ॒मम् । हव॑म् । मे॒ । ये । अ॒न्तरि॑क्षे । ये । उप॑ । द्यवि॑ । स्थ । ये । अ॒ग्नि॒ऽजि॒ह्वाः । उ॒त । वा॒ । यज॑त्राः । आ॒ऽसद्य॑ । अ॒स्मिन् । ब॒र्हिषि॑ । मा॒द॒य॒ध्व॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वे देवाः शृणुतेमं हवं मे ये अन्तरिक्षे य उप द्यवि ष्ठ। ये अग्निजिह्वा उत वा यजत्रा आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयध्वम् ॥१३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे। देवाः। शृणुत। इमम्। हवम्। मे। ये। अन्तरिक्षे। ये। उप। द्यवि। स्थ। ये। अग्निऽजिह्वाः। उत। वा। यजत्राः। आऽसद्य। अस्मिन्। बर्हिषि। मादयध्वम् ॥१३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 13
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः क आहूय सत्कर्त्तव्या इत्याह ॥

    अन्वयः

    हे विश्वे देवा ! येऽन्तरिक्षे ये द्यवि येऽग्निजिह्वा उत वा यजत्राः स्युस्तैः सह म इमं हवमुप शृणुत समीपे च स्थ। अस्मिन् बर्हिष्याऽऽसद्याऽस्मान् मादयध्वम् ॥१३॥

    पदार्थः

    (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः (शृणुत) (इमम्) (हवम्) श्रुताधीतज्ञातविषयम् (मे) मम (ये) (अन्तरिक्षे) अन्तरक्षय आकाशे (ये) (उप) (द्यवि) प्रकाशे (स्थ) (ये) (अग्निजिह्वाः) अग्निना सत्येन सुप्रकाशिता जिह्वा येषान्ते (उत) (वा) (यजत्राः) सङ्गन्तव्याः (आसद्य) स्थित्वा (अस्मिन्) (बर्हिषि) उत्तम आसने स्थाने वा (मादयध्वम्) ॥१३॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः सदैव ये विमानस्था अन्तरिक्षे, ये विद्युद्विद्यायां कुशला ये चाऽध्यापने परीक्षायां च निपुणा धर्मिष्ठा आप्ता विद्वांसः स्युस्तत्सन्निधौ गत्वा तान् स्वसमीपमाहूय सत्कृत्यैतेभ्यः श्रोतव्यं श्रुतं श्राव्यञ्च यतः श्रवणे विज्ञाने वा श्रमो न स्यात् ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को कौन बुला कर सत्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (विश्वे, देवाः) सब विद्वानो ! (ये) जो (अन्तरिक्षे) भीतर अविनाशी आकाश में (ये) जो (द्यवि) प्रकाश में (ये) जो (अग्निजिह्वाः) सत्य से प्रकाशमान जिह्वा जिन की (उत, वा) अथवा (यजत्राः) सङ्ग करने योग्य हों उन सब के साथ (मे) मेरे (इमम्) इस (हवम्) सुने पढ़े और जाने हुए विषय को (उप, शृणुत) समीप में सुनो और समीप में (स्थ) स्थिर होओ तथा (अस्मिन्) इस (बर्हिषि) उत्तम आसन वा स्थान में (आसद्य) बैठ के हम लोगों को (मादयध्वम्) आनन्दित करो ॥१३॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को सदैव जो विमानस्थ, अन्तरिक्ष में, वा जो बिजुली की विद्या में कुशल हैं और जो पढ़ाने वा परीक्षा करने में निपुण, धर्मिष्ठ, आप्त विद्वान् हों उनके निकट जाकर और उनको अपने समीप बुलाकर सत्कार कर इनसे सुनना चाहिये और सुना हुआ सुनाना चाहिये, जिससे सुनने में वा विज्ञान में श्रम न हो ॥१३॥

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    विषय

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    भावार्थ

    (विश्वे देवाः) हे सब विद्वान् वा विद्या के अभिलाषी पुरुषो ! ( ये ) जो ( अन्तरिक्षे ) अन्तरिक्षवत् बीच की भूमि, ( ये च द्यविस्थ ) और जो सूर्यवत् प्रकाशमान ज्ञानमार्ग में विद्यमान हो (ये अग्नि-जिह्वा: ) और जो अग्नि की जिह्वा अर्थात् ज्वाला के समान सब पदार्थों को प्रकाशित करनेवाली वाणी वाले (उत वा) और (यजत्रा) जो ज्ञान देने और सत्संग करने योग्य हैं ये सभी ( मे ) मेरे ( इमं ) इस ( हवं ) देने योग्य, गुरु से ग्रहण करने योग्य ज्ञान को ( शृणुत ) श्रवण करें । और (अस्मिन्) इस ( बर्हिषि ) वृद्धि युक्त, उच्च आसन पर ( मादयध्वम् ) स्वयं प्रसन्न हों अन्यों को भी हर्षित करें ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋजिश्वा ऋषिः ।। विश्वेदेवा देवताः ।। छन्दः – १, ४, १५, १६ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ३, ६, १३, १७ त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पंक्ति: । ७, ८, ११ गायत्री । ९ , १०, १२ निचृद्गायत्री । १४ विराड् जगती ॥

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    विषय

    प्राकृतिक देव व सामाजिक देव

    पदार्थ

    [१] वे (विश्वेदेवाः) = सब देव, (ये) = जो (अन्तरिक्षे) = अन्तरिक्ष में (ष्ठ) = [स्थ] स्थित हैं, ये (उप) = जो यहाँ समीप भूलोक में हैं और जो (द्यवि) = द्युलोक में हैं, वे सब के सब तेंतीस देव (मे) = मेरी (इमं हवम्) = इस पुकार को (शृणुत) = सुनें। सब देव मेरी अनुकूलतावाले हों। [२] (ये) = जो देव (अग्निजिह्वः) =अग्नि के समान तेजोयुक्त जिह्वावाले हैं, (उत वा) = और जो (यजत्राः) = यज्ञों के द्वारा त्राण करनेवाले हैं वे सब (अस्मिन् बर्हिषि) = हमारे वासनाशून्य हृदयों में (आसद्य) = आसीन होकर (मादयध्वम्) = हमारे जीवनों को आनन्दयुक्त करें। इन देवों के लिये हमारे हृदयों में आदर का भाव हो और उनकी पदपद्धति पर चलते हुए हम आनन्द का अनुभव करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- सब सूर्य-चन्द्र- अग्नि आदि देव हमारे अनुकूल हो । तेजस्वी ज्ञान-वाणियोंवाले यज्ञशील देव पुरुषों को हम हृदय से आदर दें, उनका अनुगमन करते हुए आनन्दित हों।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विमान, अंतरिक्ष व विद्युत विद्येत कुशल असतील व जे शिकविण्यात किंवा परीक्षा घेण्यात निपुण धार्मिक विद्वान असतील त्यांच्याजवळ जाऊन व त्यांना आमंत्रित करून माणसांनी सत्कार करावा. त्यांच्याकडे ऐकावे व ऐकलेले ऐकविले पाहिजे. ज्यामुळे ऐकण्यात किंवा विज्ञानात श्रम होता कामा नयेत. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Vishvedevas, leading lights and generous bounties of nature and humanity, listen to this invocation and invitation of ours, you who abide and operate in the middle region and the highest region of light, who have the tongue of fire and light of truth. You are lovable and adorable. Come, sit on this seat of holy grass in this yajna, rejoice and let us rejoice with you.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Who should be invited and honored by men-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    ○ all enlightened men 1 who are travelling in the firmament (through aircraft etc.) who are in the light (of knowledge of electricity), whose tongue is illumined with the fire of truth and who are worthy of association, hear this what has been heard or read by me, by being near me. Be glad and gladden us, being seated on this good place and seat.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should approach and invite those scholars and scientists, who are travelling in the firmament, in the aircraft, who are well-versed in the science of electricity and who are experts in teaching and examining and who are extremely righteous and absolutely truthful enlightened men. Having invited such enlightened persons, they should hear from them, should tell them—what has been heard, so that in hearing and knowing of various subjects there may not be any doubt.

    Foot Notes

    (हवम्) श्रुताधीतज्ञातविषयम् । हु-दानादनयोः आदाने (जु) अत्र आदानर्थ गृहीत्वा व्याख्या। = About what has been heard, read or known. (अग्निजिह्वा:) अग्निना सत्येन सुप्रकाशिता जिह्वा येषान्ते | = Whose tongue is illumined by the fire of truth.

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