ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 8
यो वो॑ देवा घृ॒तस्नु॑ना ह॒व्येन॑ प्रति॒भूष॑ति। तं विश्व॒ उप॑ गच्छथ ॥८॥
स्वर सहित पद पाठयः । वः॒ । दे॒वाः॒ । घृ॒तऽस्नु॑ना । ह॒व्येन॑ । प्र॒ति॒ऽभूष॑ति । तम् । विश्वे॑ । उप॑ । ग॒च्छ॒थ॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वो देवा घृतस्नुना हव्येन प्रतिभूषति। तं विश्व उप गच्छथ ॥८॥
स्वर रहित पद पाठयः। वः। देवाः। घृतऽस्नुना। हव्येन। प्रतिऽभूषति। तम्। विश्वे। उप। गच्छथ ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 8
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरध्यापकाऽध्येतारः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे देवा ! यो घृतस्नुना हव्येन वः प्रतिभूषति तं विश्वे यूयमुप गच्छथ ॥८॥
पदार्थः
(यः) (वः) युष्मान् (देवाः) अध्यापकोपदेष्टारः (घृतस्नुना) घृतमिव शुद्धेन (हव्येन) आदातुं दातुमर्हेण प्रशंसितेनाऽध्ययनेन श्रवणेन वा (प्रतिभूषति) प्रत्यक्षतयाऽलङ्करोति (तम्) (विश्वे) सर्वे (उप) (गच्छथ) ॥८॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यः सत्येन विद्यादानेन सर्वान् युष्मान् भूषयति तं यूयं प्रतिभूषत ॥८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर अध्यापक और अध्ययन करनेवाले परस्पर कैसे वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (देवाः) पढ़ाने और उपदेश करनेवाले विद्वानो ! (यः) जो (घृतस्नुना) घृत के समान शुद्ध (हव्येन) लेने-देने योग्य वा प्रशंसित पढ़ने और सुनने से (वः) तुम लोगों को (प्रतिभूषति) प्रत्यक्षता से सुभूषित करता है (तम्) उसके (विश्वे) सब तुम लोग (उप, गच्छथ) समीप प्राप्त होओ ॥८॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो सत्य विद्यादान से सब तुम लोगों को सुभूषित करता है, उसे तुम सब प्रतिभूषित करो अर्थात् बदले में सुशोभित करो ॥८॥
विषय
सूर्य पर्जन्यवत् पिता और आचार्यं ।
भावार्थ
हे ( देवाः ) विद्वान् लोगो ! ( घृत-स्नुना हव्येन ) घृत से युक्त अन्न से जैसे विद्वानों की स्निग्ध भोजनादि से सेवा आदर आदि किया जाता है उसी प्रकार हे ( देवाः ) विद्या की कामना करने वाले विद्यार्थी जनो ! ( यः ) जो (घृत-स्नुना ) स्नेह से द्रवीभूत, वा स्नेह से हृदय से निकलने वाले, ( हव्येन ) ग्राह्य ज्ञान से ( वः ) आप लोगों को अलंकृत करता है ( तम् ) उस विद्वान् गुरु को ( विश्वे) आप सब लोग (उप गच्छथ) प्राप्त होओ और उसी की उपासना वा सेवा करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋजिश्वा ऋषिः ।। विश्वेदेवा देवताः ।। छन्दः – १, ४, १५, १६ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ३, ६, १३, १७ त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पंक्ति: । ७, ८, ११ गायत्री । ९ , १०, १२ निचृद्गायत्री । १४ विराड् जगती ॥
विषय
सात्त्विक भोजन, ज्ञान व दिव्यगुणों की प्राप्ति
पदार्थ
[१] हे (देवाः) = दिव्य गुणो ! (यः) = जो (वः) = आपको (घृतस्नुना) = ज्ञानदीप्ति को जीवन में क्षरित करनेवाले (हव्येन) = हव्य पदार्थों के सेवन से प्रतिभूषति अपने अन्दर अलंकृत करना चाहता है, (तम्) = उसको (विश्वे) = आप सब (उपगच्छथ) = प्राप्त होते हो। [२] आहार की शुद्धि के होने पर सत्व [अन्तःकरण] की शुद्धि होती है। इस शुद्ध अन्तःकरण में ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है। ज्ञान के प्रकाश में सब दिव्यगुणों की प्राप्ति होती है। इसीलिए यहाँ हव्य को, सात्त्विक यज्ञशेषरूप में सेवित अन्न को घृतस्नु कहा है, ज्ञान को प्राप्त करानेवाला।
भावार्थ
भावार्थ- हम हव्य पदार्थों का सेवन करें, उससे ज्ञान दीप्ति प्राप्त होगी और हम सब दिव्य गुणों के अधिष्ठान बन पायेंगे।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जो सत्य विद्येने तुम्हाला विभूषित करतो त्याला तुम्ही प्रतिभूषित करा. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O generous and brilliant scholars and leading lights of the world, whoever the person that invites you and honours you with homage of yajna seasoned and refined with fragrant materials overflowing with ghrta, come to him and bless him with light, sweetness and advancement in knowledge, honour and wealth of life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should the teachers and the taught deal with one another-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O teachers and preachers ! you all go to that man, who adorns you with admirable and butter like pure reading and hearing which is worth accepting and worth giving.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! he, who adorns you with the gift of true knowledge, adorn or honor him well (to express your gratefulness to him.)
Foot Notes
(घृतस्नुना) घृतमिव शुद्ध ेन । ष्णा-शोचे (अदा.) । = Pure like the butter. (हन्येन) आदातु दातुमर्हेण प्रशंसितेनाऽध्ययनेन श्रवणेन वा । हु-दादादनयो: आदानेच (जु.) । = With admirable reading or hearing which is worth accepting or worth giving. (देवाः) अध्यापकोपदेष्टारः । विद्वासो हि देवाः (S. B. 3, 7, 3, 1 ) अपहृतपाप्मानो देवा: (J. V. B. 3,154) सत्यसंहिता वे देवा (A. B. 1, 6) सत्यमयान देवा: (कौषी 2, 8)। = Teachers and preachers.
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