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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 52 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    वि॒श्व॒दानीं॑ सु॒मन॑सः स्याम॒ पश्ये॑म॒ नु सूर्य॑मु॒च्चर॑न्तम्। तथा॑ कर॒द्वसु॑पति॒र्वसू॑नां दे॒वाँ ओहा॒नोऽव॒साग॑मिष्ठः ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्व॒ऽदानी॑म् । सु॒ऽमन॑सः । स्या॒म॒ । पश्ये॑म । नु । सूर्य॑म् । उ॒च्चर॑न्तम् । तथा॑ । क॒र॒त् । वसु॑ऽपतिः । वसू॑नाम् । दे॒वान् । ओहा॑नः । अव॑सा । आऽग॑मिष्ठः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वदानीं सुमनसः स्याम पश्येम नु सूर्यमुच्चरन्तम्। तथा करद्वसुपतिर्वसूनां देवाँ ओहानोऽवसागमिष्ठः ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वऽदानीम्। सुऽमनसः। स्याम। पश्येम। नु। सूर्यम्। उच्चरन्तम्। तथा। करत्। वसुऽपतिः। वसूनाम्। देवान्। ओहानः। अवसा। आऽगमिष्ठः ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 5
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन्नवसाऽऽगमिष्ठो वसूनां वसुपतिरोहानो भवान् यथाऽस्मान् देवान् करत् तथा वयं विश्वदानीं सूर्य्यमुच्चरन्तं पश्येम नु सुमनसः स्याम ॥५॥

    पदार्थः

    (विश्वदानीम्) सर्वदा (सुमनसः) प्रसन्नचित्ताः (स्याम) (पश्येम) (नु) सद्यः (सूर्य्यम्) (उच्चरन्तम्) ऊर्ध्वं प्राप्नुवन्तम् (तथा) (करत्) कुर्यात् (वसुपतिः) वसूनां पदार्थानां पालकः (वसूनाम्) (देवान्) विदुषः (ओहानः) रक्षकः (अवसा) रक्षणादिना (आगमिष्ठः) अतिशयेनाऽऽगन्ता ॥५॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा प्रीत्याऽध्यापकोपदेशका विद्यार्थिनः श्रोतॄंश्च विदुषः कृत्वा सुखिनः कुर्वन्ति तथैवाऽध्येतृभिः श्रोतृभिश्च विद्वांसो भूत्वाप्येते सदा सत्करणीयाः ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (अवसा) रक्षा आदि के साथ (आगमिष्ठः) अतीव आने और (वसूनाम्) वसुओं के बीच (वसुपतिः) पदार्थों की पालना करनेवाले और (ओहानः) रक्षक आप जैसे हम लोगों को (देवान्) विद्वान् (करत्) करें (तथा) वैसे हम लोग (विश्वदानीम्) सर्वदा (सूर्य्यम्) सूर्यमण्डल जो (उच्चरन्तम्) ऊपर को चढ़ता है उसे (पश्येम) देखें और (नु) शीघ्र (सुमनसः) प्रसन्नचित्त (स्याम) होवें ॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे प्रीति से अध्यापक और उपदेशक विद्यार्थियों को और उपदेश सुननेवालों को विद्वान् करके सुखी करते हैं, वैसे ही पढ़नेवालों और उपदेश सुननेवालों को चाहिये कि विद्वान् होकर भी इनका सदा सत्कार करें ॥५॥

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    ( विश्व-दानीम् ) सदा ही हम सब लोग ( सु-मनसः ) शुभ चित्त वाले ( स्याम) रहा करें । हम लोग ( सूर्यम् नु ) सूर्य को ही ( उत् चरन्तम् ) ऊपर आते हुए देखें, जिस प्रकार वह ( देवान् ओहानः अवसा आगमिष्ठः ) समस्त किरणों को धारण करता हुआ अपने तेजसहित आने वालों में सब से उत्तम है ( तथा ) उसी प्रकार ( देवान् ओहान:) शुभ गुणों को धारण करने वाला और विद्वान् जनों वा विद्या की कामना करने वाले शिष्यों का पालन करता हुआ प्रधान पुरुष भी ( अवसा ) अपने रक्षा और ज्ञानसामर्थ्य से ( आगमिष्ठ: ) आने वालों में सर्वश्रेष्ठ हो, और वह ( वसूनां ) बसे प्रजाजनों वा शिष्यों के बीच ( वसु-पतिः ) सब प्रजाजनों और वसु, ब्रह्मचारियों का स्वामी होकर ( तथा करत्) सूर्य के समान ही तेजस्वी, ज्ञानी होकर राजा और के आचार्य तेज और ज्ञान का प्रदान करें ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋजिश्वा ऋषिः ।। विश्वेदेवा देवताः ।। छन्दः – १, ४, १५, १६ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ३, ६, १३, १७ त्रिष्टुप् । ५ भुरिक् पंक्ति: । ७, ८, ११ गायत्री । ९ , १०, १२ निचृद्गायत्री । १४ विराड् जगती ॥

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    विषय

    सुमनसः स्याम

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र के अनुसार पितरों से पवित्र जीवनवाले बनाये जाते हुए हम (विश्वदानीम्) = सदा (सुमनसः) = उत्तम मनवाले स्याम हों। हम सदा (उच्चरन्तम्) = उदय होते हुए (सूर्यम्) = सूर्य को (नु) = निश्चय से (पश्येम) = देखें। इस उदय होते हुए सूर्य की किरणों के सेवन से जहाँ रोगकृमियों के आक्रमण से अपने को बचाएँ, वहाँ इस सूर्य से निरन्तर गतिशीलता की प्रेरणा लेकर दीप्त जीवनवाले बनें । [२] (वसूनां वसुपतिः) = सब वसुओं के [धनों के] पति प्रभु तथा (करद्) = वैसी हैं। कृपा करें कि (देवान्) = दिव्यगुणों को प्राप्त कराते हुए (ओहान:) = विद्या की कामनावाले शिष्यों का पालन करते हुये वे प्रभु (अवसा) = रक्षण के हेतु से (आगमिष्ठः) = हमें अधिक से अधिक समीपता से प्राप्त होनेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ– हम सदा प्रसन्न मनवाले हों। उदय होते हुए सूर्य से गतिशीलता व दीप्ति की प्रेरणा लें। प्रभु के अनुग्रह से दिव्यगुणों को प्राप्त करें तथा प्रभु से रक्षणीय हों ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे अध्यापक व उपदेशक प्रेमाने विद्यार्थ्यांना व उपदेश ऐकणाऱ्यांना विद्वान करून सुखी करतात तसे शिकणाऱ्यांनी व उपदेश ऐकणाऱ्यांनी विद्वान बनून त्यांचा सत्कार करावा. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May we always be happy at heart and see the sun rise and sojourn in space higher and higher. May the lord protector of health and wealth and honour come with all modes of protection and progress, call upon us to rise and raise us to the heights of brilliance and generosity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Duties of men-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened person ! you who come to us with protective power and preserve wealth and all other objects, making us highly learned also. Let us see the sun rising for a long time and be always cheerful.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the teachers and preachers make all their pupils and bearers happy by making them enlightened, in the same manner ; the students and bearers should honor them well after becoming scholars.

    Foot Notes

    (विश्वदानीम्) सर्वदा । = For ever. (ओहान:) रक्षकः। = Protector.

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