ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 68/ मन्त्र 2
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्रावरुणौ
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
ता हि श्रेष्ठा॑ दे॒वता॑ता तु॒जा शूरा॑णां॒ शवि॑ष्ठा॒ ता हि भू॒तम्। म॒घोनां॒ मंहि॑ष्ठा तुवि॒शुष्म॑ ऋ॒तेन॑ वृत्र॒तुरा॒ सर्व॑सेना ॥२॥
स्वर सहित पद पाठता । हि । श्रेष्ठा॑ । दे॒वऽता॑ता । तु॒जा । शूरा॑णाम् । शवि॑ष्ठा । ता । हि । भू॒तम् । म॒घोना॑म् । मंहि॑ष्ठा । तु॒वि॒ऽशुष्मा॑ । ऋ॒तेन॑ । वृ॒त्र॒ऽतुरा॑ । सर्व॑ऽसेना ॥
स्वर रहित मन्त्र
ता हि श्रेष्ठा देवताता तुजा शूराणां शविष्ठा ता हि भूतम्। मघोनां मंहिष्ठा तुविशुष्म ऋतेन वृत्रतुरा सर्वसेना ॥२॥
स्वर रहित पद पाठता। हि। श्रेष्ठा। देवऽताता। तुजा। शूराणाम्। शविष्ठा। ता। हि। भूतम्। मघोनाम्। मंहिष्ठा। तुविऽशुष्मा। ऋतेन। वृत्रऽतुरा। सर्वऽसेना ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 68; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः केऽत्र राजजना उत्तमाः पूजनीयाश्चेत्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यौ हि देवताता श्रेष्ठा तुजा शूराणां शविष्ठा भूतं यौ हि मघोनां मध्ये मंहिष्ठा ऋतेन तुविशुष्मा वृत्रतुरा सर्वसेना सभासेनेशौ वर्त्तेते ता सत्कर्त्तव्यौ ता ह्युत्तमाधिकारे स्थापनीयौ ॥२॥
पदार्थः
(ता) तौ (हि) यतः (श्रेष्ठा) उत्तमौ (देवताता) देवतातौ सत्ये व्यवहारे यज्ञे (तुजा) दुष्टानां हिंसकौ (शूराणाम्) निर्भयानाम् (शविष्ठा) अतिशयेन बलवन्तौ (ता) तौ (हि) खलु (भूतम्) भवतः (मघोनाम्) धनाढ्यानाम् (मंहिष्ठा) अतिशयेन पूजनीयौ (तुविशुष्मा) बहुबलसेनायुक्तौ (ऋतेन) सत्याचरणेन (वृत्रतुरा) यौ वृत्राणां मेघवदुन्नतानां शत्रूणां तुरौ हिंसकौ (सर्वसेना) समग्राः सेना ययोस्तौ ॥२॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! ये सत्येन न्यायेन प्रजापालने प्रयतमानाः सर्वविद्याः सर्वोत्तमसेना दुष्टानां हिंसनेन श्रेष्ठानां धनाढ्यानां वीरपुरुषाणां च रक्षकाः स्युस्ते धन्यवादार्हाः सन्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर कौन यहाँ राजजन उत्तम और सत्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! जो (हि) ही (देवताता) सत्यव्यवहार यज्ञ में (श्रेष्ठा) उत्तम (तुजा) दुष्टों की हिंसा करनेवाले (शूराणाम्) निर्भय जनों में (शविष्ठा) अतीव बलवान् (भूतम्) होते हैं और जो (हि) निश्चय के साथ (मघोनाम्) धनाढ्यों के बीच (मंहिष्ठा) अतीव सत्कार करने योग्य (ऋतेन) सत्य आचरण से (तुविशुष्मा) बहुत बल और सेना से युक्त (वृत्रतुरा) जो मेघ के समान बढ़े हुए शत्रुओं का विनाश करनेवाले (सर्वसेना) समग्र सेनाओं से युक्त सभा और सेनाधीश वर्त्तमान हैं (ता) वे सत्कार करने योग्य हैं और (ता) वे ही उत्तम अधिकार में स्थापन करने योग्य हैं ॥२॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो सत्य न्याय से प्रजा की पालना करने में प्रयत्न करते हुए, सब प्रकार की विद्या और सर्वोत्तम सेनाओं से युक्त, दुष्टों की हिंसा से श्रेष्ठ, धनाढ्य और वीर-पुरुषों की रक्षा करनेवाले होवें, वे धन्यवाद के योग्य हैं ॥२॥
विषय
इन्द्र वरुण, युगल प्रमुख पुरुषों के कर्तव्य ।
भावार्थ
( ता ) वे इन्द्र और वरुण, ऐश्वर्यवान्, शत्रुनाशक और श्रेष्ठ, शत्रुवारक दोनों प्रकार के प्रमुख पुरुष ( हि ) निश्चय से, (देवताता) के उत्तम विद्वान्, व्यवहारवान् मनुष्यों के बीच में ( श्रेष्ठा ) सबसे उत्तम, ( शूराणां तुजा ) शूर वीर पुरुषों के पालक और शत्रु के वीरों के नाशक हों । ( ता) वे दोनों ( हि ) निश्चयपूर्वक ( शविष्ठा भूतम् ) सब से अधिक बलशाली होवें । वे दोनों ( मघोनां मंहिष्ठां ) उत्तम धनसम्पन्न पुरुषों के बीच अति दानशील, पूजनीय, और ( तुवि-शुष्मा ) बहुत से बलों से सम्पन्न, और (ऋतेन ) सत्य ज्ञान, न्यायव्यवहार और धन-बल से ( वृत्र-तुरा ) मेघवत् बढ़ते शत्रु और विघ्नों का नाश करने वाले और ( सर्व-सेना ) सब सेनाओं के स्वामी ( भूतम् ) हों । आधिदैविक में इन्द्र और वरुण, सूर्य मेघ, वा विद्युत् और जल ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रावरुणौ देवते । छन्दः - १, ४, ११ त्रिष्टुप् । । ६ निचृत्त्रिष्टुप् । २ भुरिक पंक्ति: । ३, ७, ८ स्वराट् पंक्तिः । ५ पंक्तिः । ९ , १० निचृज्जगती ।। दशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
'इन्द्र और वरुण' की श्रेष्ठता
पदार्थ
[१] (ता) = वे इन्द्र और वरुण, जितेन्द्रियता व निर्देषता के भाव (हि) = ही (श्रेष्ठा) = प्रशस्ततम हैं। (देवताता) = यज्ञ में ये (तुजा) = विघ्नकारी शत्रुओं के संहारक हैं। इनके द्वारा जीवनयज्ञ सुचारुरूपेण चलता है। (ता) = वे (हि) = ही (शूराणां शविष्ठा) = शूरों में सर्वाधिक बलवाले (भूतम्) = होते हैं । [२] ये इन्द्र और वरुण (मघोनाम्) = दाताओं में (मंहिष्ठा) = दातृतम हैं। तुविशुष्मा महान् बलवाले हैं। (ऋतेन) = ॠत के द्वारा (वृत्रतुरा) = ज्ञान की आवरणभूत वासना का विनाश करनेवाले हैं। (सर्वसेना) = ये इन्द्र और वरुण पूर्ण सेनावाले होते हैं । इन्द्रियाँ, प्राण, मन व बुद्धि आदि ही वे सैनिक हैं जिनसे कि इस जीवन संग्राम को हमने लड़ना है। इन्द्र और वरुण के द्वारा ये सैनिक बड़े ठीक बने रहते हैं।
भावार्थ
भावार्थ– जितेन्द्रियता व निर्देषता ही हमें श्रेष्ठ जीवनवाला, सबल व शत्रुसंहार समर्थ बनाते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जे खऱ्या न्यायाने प्रजेचे पालन करण्याचा प्रयत्न करतात, सर्व प्रकारच्या विद्या व सेनेने युक्त होऊन दुष्टांची हिंसा व श्रेष्ठ, धनवान, वीर पुरुषांचे रक्षक असतात ते धन्यवादास पात्र असतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
You are the best and holiest, dedicated to the divine scheme of evolution, development and progress, being most vigorous, bravest of the brave, commanding highest power and excellence among the excellent and powerful, most high spirited by dedication to truth and the law of truth, breakers of the darkest clouds for showers of vitality. Indeed you are the leaders and commanders of the total forces of nature and humanity on the paths of universal progress.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Who are very good and venerable officers of the state-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! those President of the Council of Ministers and Commander-in-Chief of the army, who are the best in the Yajna performed in the form of truthful dealing, slayers of the wicked, who are the mightiest among the fearless heroes, are most venerable among the well-to-do persons, endowed with much strength and strong army on account of truthful conduct destroyers of the foes, who are even exalted like the clouds, masters of the complete army, should be honored and be established in a very high position.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! those persons are worthy of thanks who are always trying to guard the people with truth and justice, who are well-versed in all sciences, are possessors of the best army, protectors of the good, the wealthy and brave persons by destroying the wicked.
Foot Notes
(देवताता) देवतासौ सत्ये व्यवहारे यज्ञे । देवताता इति यज्ञनाम (NG3,17) देवान्नं दिवागुणानां सत्यादीनां तति:- विस्तरो यत्न, सदेवताता सत्यवहार 'रूपो तात्मयज्ञ: सत्य संहिता वै देवाः (ऐतरेय ब्राह्मणो 1, 6 ) = In the Yajna consisting of truthful conduct. (तुजा) दुष्टानां हिसको तुज हिसायाम् (भ्वा.) तुज इति बहुनाम (NG 3, 11 ) = Slayers of the wicked. (तुविशुष्मा) बहुबल सेनायुक्तौ । शुष्मम् इति बलनाम (NG 2, 9)। = Endowed with much strength and strong army.
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