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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 68/ मन्त्र 9
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्रावरुणौ छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    प्र स॒म्राजे॑ बृह॒ते मन्म॒ नु प्रि॒यमर्च॑ दे॒वाय॒ वरु॑णाय स॒प्रथः॑। अ॒यं य उ॒र्वी म॑हि॒ना महि॑व्रतः॒ क्रत्वा॑ वि॒भात्य॒जरो॒ न शो॒चिषा॑ ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । स॒म्ऽराजे॑ । बृ॒ह॒ते । मन्म॑ । नु । प्रि॒यम् । अर्च॑ । दे॒वाय॑ । वरु॑णाय । स॒ऽप्रथः॑ । अ॒यम् । यः । उ॒र्वी इति॑ । म॒हि॒ना । महि॑ऽव्रतः । क्रत्वा॑ । वि॒ऽभाति॑ । अ॒जरः॑ । न । शो॒चिषा॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सम्राजे बृहते मन्म नु प्रियमर्च देवाय वरुणाय सप्रथः। अयं य उर्वी महिना महिव्रतः क्रत्वा विभात्यजरो न शोचिषा ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। सम्ऽराजे। बृहते। मन्म। नु। प्रियम्। अर्च। देवाय। वरुणाय। सऽप्रथः। अयम्। यः। उर्वी इति। महिना। महिऽव्रतः। क्रत्वा। विऽभाति। अजरः। न। शोचिषा ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 68; मन्त्र » 9
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा कीदृशोऽस्मै किमुपदेष्टव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! योऽयं सप्रथो महिव्रतः क्रत्वा महिना शोचिषाऽजरो नोर्वी विभाति तस्मै वरुणाय देवाय बृहते सम्राजे प्रियं मन्म त्वं नु प्रार्च ॥९॥

    पदार्थः

    (प्र) (सम्राजे) यः सम्यक्सूर्यवद्विद्याविनयाभ्यां राजते तस्मै (बृहते) महते (मन्म) विज्ञानम् (नु) सद्यः (प्रियम्) प्रीतिकरम् (अर्च) सत्कुर्याः (देवाय) अभयदात्रे (वरुणाय) सर्वोत्कृष्टाय (सप्रथः) सत्कीर्त्या प्रख्यातः (अयम्) (यः) (उर्वी) द्यावापृथिव्यौ (महिना) महिम्ना (महिव्रतः) महान्ति व्रतानि धर्म्याणि कर्माणि यस्य सः (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्मणा वा (विभाति) (अजरः) जरारोगरहितः सूर्य्यो जीवात्मा परमात्मा वा (न) इव (शोचिषा) स्वप्रकाशेन ॥९॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। हे विद्वांसः ! सूर्यवज्जीववत्परमात्मवच्छुभगुणकर्मस्वभावैर्देदीप्यमानो यो विद्याविनयावृतः प्रयत्नेन वाङ्मनःशरीरैः पितृवत्प्रजाः पालयितुं प्रयतते तस्मै चक्रवर्त्तिने सर्वोत्कृष्टाय विदुषे सत्कर्त्तव्याय राज्ञे राज्ये प्रतिदिनं सत्यां नीतिं भवन्तो बोधयन्तु येनाऽयं सर्वत्र धर्मयशा भवेत् ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा कैसा है और उसके लिये क्या उपदेश देना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (यः) जो (अयम्) यह (सप्रथः) सत्कीर्ति से विख्यात और (महिव्रतः) बड़े-बड़े धर्मयुक्त कर्म जिसके विद्यमान वह (क्रत्वा) प्रज्ञा वा कर्म से (महिना) और महिमा वा (शोचिषा) अपने प्रकाश से (अजरः) वृद्धावस्थारूपी रोग से रहित सूर्य जीवात्मा वा परमात्मा के (न) समान (उर्वी) सूर्यमण्डल और पृथिवी को (विभाति) प्रकाशित करता है उस (वरुणाय) सब से उत्तम (देवाय) अभय देनेवाले (बृहते) बड़े (सम्राजे) अच्छे सूर्य के समान विद्या और नम्रता से प्रकाशमान के लिये (प्रियम्) प्रीति करनेवाले (मन्म) विज्ञान को आप (नु) शीघ्र (प्र, अर्च) सत्कार देवें ॥९॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे विद्वान्जनो ! जो सूर्य के तुल्य, जीव के तुल्य वा परमात्मा के तुल्य शुभ गुण कर्म स्वभावों से देदीप्यमान, विद्या और विनय से युक्त, उत्तम यत्न के साथ वाणी मन और शरीर से पिता के समान प्रजाजनों की पालना करने को प्रयत्न करता है, उस चक्रवर्ती, सर्वोत्कृष्ट, विद्वान् और सत्कार करने योग्य राजा के लिये राज्य में सत्य नीति को आप लोग समझावें, जिससे यह सर्वत्र धर्मयुक्त यशवाला हो ॥९॥

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    विषय

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    भावार्थ

    ( यः ) जो ( महिना ) अपने महान् सामर्थ्य से, ( उर्वी ) विशाल भूमि और आकाश दोनों को ( शोचिषा न) दीप्ति से सूर्य के समान राजा और प्रजा वर्ग को ( विभाति ) प्रकाशित करता है वह ( महिव्रतः ) बड़े २ कर्म करने वाला, ( सप्रथः ) उत्तम ख्याति से युक्त (अजराः) सदा युवा, जरारहित, अविनाशी ( क्रत्वा ) उत्तम बुद्धि और कर्मसामर्थ्य से सम्पन्न है उस ( बृहते सम्राजे ) बड़े सम्राट् ( देवाय ) दानशील ( वरुणाय ) सर्वश्रेष्ठ परम पुरुष की ( प्रियम् मन्म ) प्रिय, उत्तम मननयोग्य ज्ञान और स्तुति का ( प्र अर्च ) सेवन कर ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रावरुणौ देवते । छन्दः - १, ४, ११ त्रिष्टुप् । । ६ निचृत्त्रिष्टुप् । २ भुरिक पंक्ति: । ३, ७, ८ स्वराट् पंक्तिः । ५ पंक्तिः । ९ , १० निचृज्जगती ।। दशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    सम्राट् वरुण का स्तवन

    पदार्थ

    [१] (सम्राजे) = सम्यग् देदीप्यमान (बृहते) = वृद्धि को प्राप्त हुए (देवाय) = दिव्यस्वरूप वरुणाय वरुण के लिये (सप्रथ:) = [सर्वतः पृथु] सब दृष्टिकोणों से विशाल (प्रियम्) = प्रीतिजनक मन्म स्तोत्र का (नु) = अब (प्र अर्च) = प्रकर्षेण उच्चारण कर। सब संसार को नियम के बन्धन में बाँधनेवाले प्रभु का स्तवन कर। ये प्रभु सब गुणों के दृष्टिकोण से बढ़े हैं, सम्राट् हैं, बृहत् हैं, देव हैं। [२] (अयं यः) = जो वरुण हैं, (महिव्रत:) = महान् व्रतोंवाले हैं, (न) [ च ] = और महिना = अपनी महिमा से (अजरः) = कभी न जीर्ण होनेवाले हैं। ये वरुण (उर्वी) = इन विशाल द्यावापृथिवी को (कृत्वा) = शक्ति से तथा (शोचिषा) = दीप्ति से (विभाति) = विभासित करते हैं। हमारे मस्तिष्करूप द्युलोकों को दीप्तिमय बनाते हैं और शरीर रूप पृथिवीलोक को शक्ति सम्पन्न करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम सम्राट् वरुण का स्तवन करें। हमारे लिये ये दीप्ति मस्तिष्क व शक्ति सम्पन्न शरीर को प्राप्त करायेंगे।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! जो सूर्यासारखा जीवासारखा, परमात्म्यासारखा शुभ गुण, कर्म, स्वभावाने देदीप्यमान, विद्या व विनयाने युक्त, उत्तम वाणी, मन, शरीराने पित्यासारखा प्रजाजनांचे पालन करण्याचा प्रयत्न करतो, त्या चक्रवर्ती, सर्वोत्कृष्ट, विद्वान व सत्कार करण्यायोग्य राजासाठी राज्यात सत्य नीती तुम्ही सर्वांना समजावून सांगा. ज्यामुळे तो सर्वत्र धार्मिक यशस्वी व्हावा. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Offer the dearest homage and sincere adoration in full self-knowledge and awareness to the refulgent, generous and mighty benevolent ruler of the world, this lord Varuna who is vast as earth and shines by his glory and universal law, and illuminates the world by his holy action and light of glory blazing as refulgence beyond the rule and order of time and age.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is that king and what sermon should be given to him-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O highly learned person! utter sweet words of good knowledge and honor that great king who shines well with knowledge and humility like the sun, who is renowned with good reputation, whose vows or righteous actions are great, who illuminates by his light (knowledge) like the sun or God. who is free from old age and shines well by good intellect or actions.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There is Upamalankara or simile used in the mantra. O enlightened persons! enlighten that great sovereign on the true policy, who endowed with good merits, actions and temperament shines like the sun, the soul or God; endowed with knowledge and humility tries to nourish his subjects by speech, mind and body, so that his reputation may spread every where.

    Foot Notes

    (मन्म) विज्ञानम् । मनु-अबोधने (तना.) । = Scientific knowledge.

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