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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 11
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शं नो॑ दे॒वा वि॒श्वेदे॑वा भवन्तु॒ शं सर॑स्वती स॒ह धी॒भिर॑स्तु। शम॑भि॒षाचः॒ शमु॑ राति॒षाचः॒ शं नो॑ दि॒व्याः पार्थि॑वाः॒ शं नो॒ अप्याः॑ ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम् । नः॒ । दे॒वाः । वि॒श्वऽदे॑वाः । भ॒व॒न्तु॒ । शम् । सर॑स्वती । स॒ह । धी॒भिः । अ॒स्तु॒ । शम् । अ॒भि॒ऽसाचः॑ । शम् । ऊँ॒ इति॑ । रा॒ति॒ऽसाचः॑ । शम् । नः॒ । दि॒व्याः । पार्थि॑वाः । शम् । नः॒ । अप्याः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नो देवा विश्वेदेवा भवन्तु शं सरस्वती सह धीभिरस्तु। शमभिषाचः शमु रातिषाचः शं नो दिव्याः पार्थिवाः शं नो अप्याः ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। देवाः। विश्वऽदेवाः। भवन्तु। शम्। सरस्वती। सह। धीभिः। अस्तु। शम्। अभिऽसाचः। शम्। ऊँ इति। रातिऽसाचः। शम्। नः। दिव्याः। पार्थिवाः। शम्। नः। अप्याः ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 11
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 30; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः कान् प्राप्नुयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    अस्मच्छुभाचारेण देवा विश्वदेवा नः शं भवन्तु सरस्वती धीभिः सह नः शमस्त्वभिषाचः नः शं भवन्तु रातिषाचोनः शमु भवन्तु दिव्याः पार्थिवाः शमप्याश्च नः शं भवन्तु ॥११॥

    पदार्थः

    (शम्) (नः) (देवाः) विद्यादिशुभगुणानां दातारः (विश्वदेवाः) सर्वे विद्वांसः (भवन्तु) (शम्) (सरस्वती) विद्यासुशिक्षायुक्ता वाक् (सह) (धीभिः) प्रज्ञाभिः सह (अस्तु) (शम्) (अभिषाचः) य आभ्यन्तर आत्मनि सचन्ते सम्बध्नन्ति ते (शम्) (उ) (रातिषाचः) ये रातिं विद्यादिदानं सचन्ते ते (शम्) (नः) (दिव्याः) शुद्धगुणकर्मस्वभावाः (पार्थिवाः) पृथिव्यां विदिता राजानः बहुमूल्याः पदार्था वा (शम्) (नः) (अप्याः) अप्सु भवा नौयायिनो मुक्ताद्याः पदार्था वा ॥११॥

    भावार्थः

    मनुष्यैरीदृशः श्रेष्ठाऽऽचारः कर्त्तव्यो येन सर्वान् सर्वे विद्वांसः शोभना प्रज्ञा वाक् च योगिनो विद्यादातारः राजानः शिल्पिनश्च तथा दिव्याः पदार्थाः प्राप्नुयुः ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य किनको प्राप्त हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हमारे शुभ गुणों के आचार से (देवाः) विद्यादि शुभ गुणों के देनेवाले (विश्वदेवाः) सब विद्वान् जन (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवन्तु) होवें (सरस्वती) विद्या सुशिक्षायुक्त वाणी (धीभिः) उत्तम बुद्धियों के (सह) साथ (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो (अभिषाचः) जो आभ्यन्तर आत्मा में सम्बन्ध करते हैं वे (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप हों और (रातिषाचाः) विद्यादि दान का सम्बन्ध करनेवाले हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (उ) ही होवें तथा (दिव्याः) शुभ गुण-कर्म-स्वभावयुक्त (पार्थिवाः) पृथिवी में विदित राजजन वा बहुमूल्य पदार्थ (शम्) सुखरूप और (अप्याः) जलों में उत्पन्न हुए नौकाओं से जानेवाले वा मोती आदि पदार्थ हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप हों ॥११॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को ऐसा आचार करना चाहिये जिससे सब को सब विद्वान् जन, सुन्दर बुद्धि और वाणी, विद्या देनेवाले योगीजन राजा और शिल्पी जन तथा दिव्य पदार्थ प्राप्त हों ॥११॥

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    विषय

    शान्ति सूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    ( विश्वदेवाः ) समस्त विद्वान् (देवाः ) ज्ञान, ऐश्वर्य के देने वाले होकर ( नः शं भवन्तु ) हमें शान्तिदायक हों। (सरस्वती) विद्या, सुशिक्षायुक्त वाणी, उत्तम २ ( धीभिः ) प्रज्ञाओं (सह ) सहित ( शं अस्तु ) हमें शान्तिदायक हो । ( अभिषाचः शम् ) आभ्यन्तर से सम्बन्ध रखने वाले हमें शान्ति दें । ( रातिषाचः शम् उ ) बाह्य पदार्थों के लेने से सम्बन्ध रखने वाले जन भी हमें शान्ति दें । ( दिव्यः ) दिव्य (पार्थिवाः) और पृथिवीस्थ पदार्थ (नः शम्) हमें सुख दें । और ( अप्याः ) जल में उत्पन्न, मुक्ता और नौका आदि पदार्थ ( नः शं ) हमें सुख दें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    सभी विद्वान् सुखदायक हों

    पदार्थ

    पदार्थ- (विश्वदेवाः) = समस्त विद्वान् (देवाः) = ज्ञान के दाता होकर (नः शं भवन्तु) = शान्तिदायक हों। (सरस्वती) = सुशिक्षायुक्त वाणी (धीभिः) = प्रज्ञाओं (सह) = सहित (शं अस्तु) = शान्तिदायक हो । (अभिषाचः शम्) = आभ्यन्तर से सम्बन्ध रखनेवाले हमें शान्ति दें। (रातिषाचः सम् उ) = बाह्य पदार्थों के लेने से सम्बन्ध रखनेवाले हमें शान्ति दें। (दिव्याः) = दिव्य (पार्थिवाः) = और पृथिवीस्थ पदार्थ (नः शम्) = हमें सुख दें। (अप्या:) = जल में उत्पन्न, मोती आदि (नः शं) = हमें सुख दें।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र के समस्त विद्वान् जन राष्ट्र की प्रजा को ज्ञान प्राप्ति, सुशिक्षा तथा बुद्धिबताकर कृतार्थ करें। अन्तःकरण के शोधन तथा बाहरी पदार्थों की शुद्धि का भी वृद्धि के उपाय उपदेश करें। पृथिवी तथा जल में उत्पन्न होनेवाले पदार्थों का उपयोग बताकर प्रजा का कल्याण करे।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी असे आचरण केले पाहिजे की ज्यामुळे सर्वांना विद्वान माणसे, चांगली बुद्धी व वाणी, विद्या देणारे योगी, राजा व कारागीर मिळाले पाहिजेत. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May the generous divines of the world be good and gracious to us at peace. May Sarasvati, eternal mother knowledge and divine speech with universal intelligence, be for our peace and well being. May the overpowering yajnic energies and all generous tendencies be for our good and peace of well being. And may all the divinities of heaven, earth and ocean give us peace and joy.

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