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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शं नो॒ भगः॒ शमु॑ नः॒ शंसो॑ अस्तु॒ शं नः॒ पुरं॑धिः॒ शमु॑ सन्तु॒ रायः॑। शं नः॑ स॒त्यस्य॑ सु॒यम॑स्य॒ शंसः॒ शं नो॑ अर्य॒मा पु॑रुजा॒तो अ॑स्तु ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम् । नः॒ । भगः॒ । शम् । ऊँ॒ इति॑ । नः॒ । शंसः॑ । अ॒स्तु॒ । शम् । नः॒ । पुर॑म्ऽधिः । शम् । ऊँ॒ इति॑ । स॒न्तु॒ । रायः॑ । शम् । नः॒ । स॒त्यस्य॑ । सु॒ऽयम॑स्य । शंसः॑ । शम् । नः॒ । अ॒र्य॒मा । पु॒रु॒ऽजा॒तः । अ॒स्तु॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नो भगः शमु नः शंसो अस्तु शं नः पुरंधिः शमु सन्तु रायः। शं नः सत्यस्य सुयमस्य शंसः शं नो अर्यमा पुरुजातो अस्तु ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। भगः। शम्। ऊँ इति। नः। शंसः। अस्तु। शम्। नः। पुरम्ऽधिः। शम्। ऊँ इति। सन्तु। रायः। शम्। नः। सत्यस्य। सुऽयमस्य। शंसः। शम्। नः। अर्यमा। पुरुऽजातः। अस्तु ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैर्यथैश्वर्यादीनि सुखकराणि स्युस्तथा विधेयमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यथा नो भगः शं नः शंसः शमु पुरन्धिः शमस्तु नः रायः शमु सन्तु नः सत्यस्य सुयमस्य शंसः शं पुरुजातोऽर्यमा नः शमस्तु तथा वयं प्रयतेमहि ॥२॥

    पदार्थः

    (शम्) सुखकरः (नः) अस्मभ्यम् (भगः) ऐश्वर्यम् (शम्) सुखकरः (उ) वितर्के (नः) अस्मभ्यम् (शंसः) अनुशासनं प्रशंसा वा (अस्तु) भवतु (शम्) सुखकरः (नः) अस्मभ्यम् (पुरन्धिः) पुरवः बहवः पदार्था ध्रियन्ते यस्मिन् स आकाशः (शम्) सुखकराः (उ) (सन्तु) (रायः) धनानि (शम्) सुखप्रदः (नः) अस्मभ्यम् (सत्यस्य) यथार्थस्य धर्मस्य परमेश्वरस्य (सुयमस्य) सुष्ठु नियमेन प्रापणीयस्य (शंसः) प्रशंसा (शम्) आनन्दकरः (नः) अस्मभ्यम् (अर्यमा) न्यायकारी (पुरुजातः) पुरुषु बहुषु नरेषु प्रसिद्धः (अस्तु) भवतु ॥२॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! यूयं यथैश्वर्यं पुण्या कीर्तिरवकाशो धनानि धर्मो योगः न्यायाधीशश्च सुखकराः स्युस्तथाऽनुतिष्ठत ॥२॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्यों को जैसे ऐश्वर्य आदि सुख करनेवाले हों, वैसे विधान करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जैसे (नः) हम लोगों के लिये (भगः) ऐश्वर्य (शम्) सुख करनेवाला (नः) हम लोगों के लिये (शंसः) शिक्षा वा प्रशंसा (शम्) सुख करनेवाली (उ) और (पुरन्धिः) बहुत पदार्थ जिस में रक्खे जाते हैं वह आकाश (शम्) सुख करनेवाला (अस्तु) हो (नः) हम लोगों के लिये (रायः) धन (शम्) सुख करनेवाले (उ) ही (सन्तु) हों (नः) हम लोगों के लिये (सत्यस्य) यथार्थ धर्म वा परमेश्वर की (सुयमस्य) सुन्दर नियम से प्राप्त करने योग्य व्यवहार की (शंसः) प्रशंसा (शम्) सुख देनेवाली और (पुरुजातः) बहुत मनुष्यों में प्रसिद्ध (अर्यमा) न्यायकारी (नः) हमारे लिये (शम्) आनन्द देनेवाला (अस्तु) होवे, वैसा हम लोग प्रयत्न करें ॥२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! तुम जैसे ऐश्वर्य, पुण्यकीर्त्ति, अवकाश, धन, धर्म, योग और न्यायाधीश सुख करनेवाले हों, वैसा अनुष्ठान करो ॥३॥

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    विषय

    प्रार्थनाविषयः

    व्याखान

    हे ईश्वर ! (भगः) आप और आपका दिया हुआ ऐश्वर्य (शं नः) हमारे लिए सुखकारक हो और (शमु, नः, शंसो अस्तु) आपकी कृपा से हमारी सुखकारक प्रशंसा सदैव हो। (पुरन्धिः, शमु, सन्तु, राय:)  संसार के धारण करनेवाले आप तथा वायु, प्राण और सब धन आपकी कृपा से आनन्दायक हों । (शन्नः, सत्यस्य सुयमस्य शंसः) सत्य, यथार्थ धर्म, सुसंयम और जितेन्द्रियतादिलक्षणयुक्त की जो प्रशंसा (पुण्यस्तुति) सब संसार में प्रसिद्ध है वह परमानन्द और शान्तियुक्त हमारे लिए हो । (शं नो, अर्यमा) न्यायकारी आप (पुरुजात: ) अनन्तसामर्थ्ययुक्त हमारे कल्याणकारक (अस्तु) होओ ॥ २५ ॥

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    विषय

    शान्तिसूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    ( भगः नः शम्) ऐश्वर्य हमें सुखकारी हो । ( शंसः नः शम् उ ) उपदेश, अनुशासन, स्तुति, और उपदेष्टा जन हमें अवश्य शान्ति सुख दें । ( पुरन्धिः) बहुत से पदार्थों का धारक आकाश, देहधारक बुद्धि, पुरधारक, राजा, आदि (नः शम्) हमें शान्तिदायक हों । (रायः शम् उ सन्तु ) ऐश्वर्य, नाना धन हमें शान्ति दें । ( सु-यमस्य ) उत्तम नियन्ता, शासक, और ( सत्यस्य शंसः ) सत्य का उपदेष्टा ( नः शम् ) हमें सुखकर हो । ( पुरु-जातः ) बहुतों में प्रसिद्ध ( अर्थमा ) न्यायकारी पुरुष ( नः शं अस्तु ) हमें शान्ति सुख का देने वाला हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    न्यायकारी पुरुष शान्तिदायक हों

    पदार्थ

    पदार्थ- (भगः नः शम्) = ऐश्वर्य हमें सुखकारी हो । (शंसः नः शम् उ) = अनुशासन और उपदेष्टा हमें शान्ति दें। (पुरन्धिः) = पुरधारक राजा (नः शम्) = हमें शान्तिदायक हो। (रायः शम् उ सन्तु) = नाना ऐश्वर्य हमें शान्ति दें। (सु-यमस्य) = उत्तम नियन्ता और (सत्यस्य शंसः) = सत्य का उपदेष्टा (नः शम्) = हमें सुखकर हो । (पुरु जातः) = बहुतों में प्रसिद्ध (अर्यमा) = न्यायकारी पुरुष (नः शं अस्तु) = हमें शान्ति दे।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा न्यायव्यवस्था द्वारा जनप्रिय होकर अनुशासन को बनावे। विद्वानों की नियुक्ति द्वारा सत्य उपदेश, बुद्धि वृद्धि स्वास्थ्य शिक्षा, सुख के साधन एवं पर्यावरण संरक्षण की व्यवस्था का ज्ञान कराकर प्रजा का कल्याण करे।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जसे ऐश्वर्य, पुण्यकीर्ती, अवकाश, धन, धर्म, योग व न्यायाधीश सुखकारक असतात तसे तुम्हीही वागा. ॥ २ ॥

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    विषय

    प्रार्थना

    व्याखान

    हे ईश्वरा! (भगः) तू आणि तू दिलेले ऐश्वर्य (शं नः) आम्हाला सुखकारक ठरो. आणि (शमु नः शंसो अस्तु) तुझ्या कृपेने आमची सदैव प्रशंसा व्हावी. (पुरन्धिः शमु सन्तु रायः) विश्वाला धारण करणाऱ्या ईश्वरा ! तसेच वाय, प्राण, व सर्व धन आनंददायक व्हावे, (शन्नः, सत्यस्य सुयमस्य शंसः) यथार्थ सत्य धर्म, संयम आणि जितेंद्रिय इत्यादी लक्षणांनी युक्त असलेल्या [जीवाची] प्रसंशा सर्व जगात प्रसिद्ध पावते. ती परम आनंददायक व शांतियुक्त होवो, अशी प्रशंसा आमची ही होवो. (शं नो अर्यमा) तू न्यायी व (पुरुजातः) अनंत सामर्थ्याने युक्त असल्यामुळे आमचे कल्याण कर. ॥२५॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May our honour and glory and our praise and approbation prevailing around be for our good and well being. May our law and order for social sustenance and our wealth and honour be for peace and well being. May our honour and respect for true Dharma and law and for the proper pursuit of Dharma and law in effective governance and administration be for our joy and prosperity for the good life. And may our law and justice of universal value and fair application be for our good and well being in peace.

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    Purport

    O God! May You and the prosperity bestowed by You be the cause of our peace and happiness. O Lord by your grace there should be fame for us always, from all directions, which should give happiness to us. May you the upholder of the whole universe, the vital airs, vital forces and all the riches we have, be the cause of happiness and joy to us by your grace. May the deserving praise of truthful, righteous and self-restrained men, appreciated all over the world, be conducive to our bliss and tranquility. O God Almighty! May You the Dispensar of Justice having infinite power be always for our welfare and happiness.

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    नेपाली (1)

    विषय

    प्रार्थनाविषयः

    व्याखान

    हे ईश्वर ! भगः = तपाईंले कृपा गर्नु भएको ऐश्वर्य शं न := हाम्रा लागि सुख कारक होस् र शमु, नः, शंसो अस्तु = तपाईंका कृपा ले हाम्रो प्रशंसा सदैव सुख कारक होस् । पुरन्धिःशमु, सन्तु, रायः= संसार लाई धारण गर्नुहुने तपाईं आनन्द दायक हुनुहोस् तथा तपाईंको कृपाले वायु, प्राण एवं सम्पूर्ण धनहरु पनि आनन्द दायक हुन् । शन्नः, सत्यस्य सुयमस्य शंसः = सत्य, यथार्थ धर्म, सुसंयम र जितेन्द्रियतादि लक्षण युक्तको जुन प्रशंसा [पुण्यस्तती] समस्त संसार मा प्रसिद्ध छ त्यो हाम्रा लागी परमानन्द र शान्तियुक्त होस् । शंनो, अर्यमा= न्यायकारी तपाईं पुरुजात : = अनन्तसामर्थ्ययुक्त हुनुहुन्छ हाम्रा लागी कल्याणकारक अस्तु = हुनुहोस् ॥ २५॥ -

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