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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 14
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    आ॒दि॒त्या रु॒द्रा वस॑वो जुषन्ते॒दं ब्रह्म॑ क्रि॒यमा॑णं॒ नवी॑यः। शृ॒ण्वन्तु॑ नो दि॒व्याः पार्थि॑वासो॒ गोजा॑ता उ॒त ये य॒ज्ञिया॑सः ॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒दि॒त्याः । रु॒द्राः । वस॑वः । जु॒ष॒न्त॒ । इ॒दम् । ब्रह्म॑ । क्रि॒यमा॑णम् । नवी॑यः । शृ॒ण्वन्तु॑ । नः॒ । दि॒व्याः । पार्थि॑वासः । गोऽजा॑ताः । उ॒त । ये । य॒ज्ञिया॑सः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदित्या रुद्रा वसवो जुषन्तेदं ब्रह्म क्रियमाणं नवीयः। शृण्वन्तु नो दिव्याः पार्थिवासो गोजाता उत ये यज्ञियासः ॥१४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आदित्याः। रुद्राः। वसवः। जुषन्त। इदम्। ब्रह्म। क्रियमाणम्। नवीयः। शृण्वन्तु। नः। दिव्याः। पार्थिवासः। गोऽजाताः। उत। ये। यज्ञियासः ॥१४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 14
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किमवश्यं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! ये भवन्त आदित्या रुद्रा वसवो दिव्याः पार्थिवासो गोजाता उत ये यज्ञियासः सन्ति ते न इदं नवीयः क्रियमाणं ब्रह्म जुषन्तास्माभिरधीतं शृण्वन्तु ॥१४॥

    पदार्थः

    (आदित्याः) अष्टाचत्वारिंशद्वर्षकृतेन ब्रह्मचर्येण पूर्णविद्याः (रुद्राः) चतुश्चत्वारिंशद्वर्षप्रमितेन ब्रह्मचर्येणाधीतविद्याः (वसवः) चत्वारिंशद्वर्षपरिमाणेन ब्रह्मचर्येण पठितवेदशास्त्राः (जुषन्त) सेवन्ताम् (इदम्) प्रत्यक्षम् (ब्रह्म) बृहद्धनमन्नं वा (क्रियमाणम्) वर्त्तमाने सम्पाद्यमानम् (नवीयः) अतिशयेन नूतनम् (शृण्वन्तु) (नः) अस्माकं विद्याः (दिव्याः) दिवि शुद्धे कमनीये गुणादौ भवाः (पार्थिवासः) पृथिव्यां विदिताः (गोजाताः) गवा सुशिक्षितया वाचा प्रादुर्भूताः (उत) (ये) (यज्ञियासः) यज्ञसम्पादकाः ॥१४॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः धार्मिकान् विदुष आहूय सत्कृत्यान्नादिना सन्तर्प्य स्वश्रुतं संश्राव्य शेषमेभ्यः शृण्वन्तु यतो निर्भ्रमाः सर्वे स्युः ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य क्या अवश्य करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वानो ! जो आप लोग (आदित्याः) अड़तालीस वर्ष प्रमाण से ब्रह्मचर्य सेवन से विद्या पढ़े हुए हों वा (रुद्राः) चवालीस वर्ष प्रमाण ब्रह्मचर्य से विद्या पढ़े हुए हों वा (वसवः) चालीस वर्ष परिमाण जिसका है ऐसे ब्रह्मचर्य्य से विद्या पढ़े हुए हैं वा (दिव्याः) शुद्ध मनोहर गुण आदि में प्रसिद्ध वा (पार्थिवासः) पृथिवी में विदित वा (गोजाताः) सुशिक्षित वाणी से उत्पन्न हुए (उत) और (ये) जो (यज्ञियासः) यज्ञ सम्पादन करनेवाले हैं वे (नः) हम लोगों के लिये (इदम्) इस प्रत्यक्ष (नवीयः) अत्यन्त नवीन (क्रियमाणम्) वर्त्तमान में सिद्ध होते हुए (ब्रह्म) बहुत धन वा अन्न को (जुषन्त) सेवें और हम लोगों का पढ़ा हुआ (शृण्वन्तु) सुनें ॥१४॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि धार्मिक विद्वानों को बुलाय सत्कार कर अन्नादिकों से अच्छे प्रकार तृप्त कर अपना पढ़ा अच्छे प्रकार सुना, शेष इन से सुनें, जिससे भ्रमरहित सब हों ॥१४॥

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    विषय

    शान्ति सूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    ( आदित्याः ) ४८ वर्ष तक के ब्रह्मचारी ( रुद्राः ) ४४ वर्ष तक के ब्रह्मचर्यवान् और ( वसवः ) २४ वर्ष तक के ब्रह्मचारी (इदं) इस (नवीयः ) उत्तम ( क्रियमाणं ब्रह्म ) उपदेश किये जाते, धन अन्न और ज्ञान को ( जुषन्त ) प्रेम से स्वीकार करें । ( दिव्याः ) उत्तम कमनीय गुणादि में प्रसिद्ध ( पार्थिवासः ) पृथिवी में प्रसिद्ध ( गो-जाताः ) वाणी से सुशिक्षित, विद्वान् तेजस्वी जन ( उत ) और ( ये ) जो (यज्ञियासः ) यज्ञकर्त्ता, सेवा सत्संगादि योग्य पुरुष हैं वे सब ( नः शृण्वन्तु ) हमारे वचन श्रवण किया करें । हमारे प्रश्न सुन समाधान करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ब्रह्मचारी ज्ञान का श्रवण करें

    पदार्थ

    पदार्थ- (आदित्याः) ४८ वर्ष के ब्रह्मचारी (रुद्राः) = ३६ वर्ष के ब्रह्मचर्यवान् और (वसवः) = २४ वर्ष के ब्रह्मचारी (इदं) = इस (नवीयः) = उत्तम (क्रियमाणं ब्रह्म) = उपदेश किये जाते ज्ञान को (जुषन्त) = स्वीकार करें। (दिव्याः) = गुणों में प्रसिद्ध, (पार्थिवासः) = पृथिवी में प्रसिद्ध (गोजाताः) = वाणी से सुशिक्षित, विद्वान् (उत) = और (ये) = जो (यज्ञियासः) = सत्संगादि योग्य पुरुष हैं वे (नः शृण्वन्तु) = हमारे वचन सुनें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- वाक् कुशल विद्वान् जनों के उत्तम उत्तम ज्ञान के उपदेश को आदित्य ब्रह्मचारी, रुद्र ब्रह्मचारी, वसु ब्रह्मचारी तथा यज्ञकर्त्ता जन प्रेम से सुनकर धारण करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी धार्मिक विद्वानांना आमंत्रित करून सत्कार करावा. अन्न इत्यादींनी चांगल्या प्रकारे तृप्त करून स्वतः अध्ययन केलेले त्यांना ऐकवावे. उरलेले त्यांच्याकडून ऐकावे. ज्यामुळे सर्वजण भ्रमरहित बनावेत. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May the Adityas, cosmic lights, Rudras, catalytic agents of nature, and the Vasus, sustaining abodes of life, receive this song divine of homage being sung at the latest and be at peace for us, and may the divinities of heaven and earth born of nature and the holy Word sung in divine voice, and those who are venerable sages dedicated to yajna be at peace and give us peace and happiness.

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