ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 9
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
शं नो॒ अदि॑तिर्भवतु व्र॒तेभिः॒ शं नो॑ भवन्तु म॒रुतः॑ स्व॒र्काः। शं नो॒ विष्णुः॒ शमु॑ पू॒षा नो॑ अस्तु॒ शं नो॑ भ॒वित्रं॒ शम्व॑स्तु वा॒युः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठशम् । नः॒ । अदि॑तिः । भ॒व॒तु॒ । व्र॒तेभिः॑ । शम् । नः॒ । भ॒व॒न्तु॒ । म॒रुतः॑ । सु॒ऽअ॒र्काः । शम् । नः॒ । विष्णुः॑ । शम् । ऊँ॒ इति॑ । पू॒षा । नः॒ । अ॒स्तु॒ । शम् । नः॒ । भ॒वित्र॑म् । शम् । ऊँ॒ इति॑ । अ॒स्तु॒ । वा॒युः ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो अदितिर्भवतु व्रतेभिः शं नो भवन्तु मरुतः स्वर्काः। शं नो विष्णुः शमु पूषा नो अस्तु शं नो भवित्रं शम्वस्तु वायुः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। अदितिः। भवतु। व्रतेभिः। शम्। नः। भवन्तु। मरुतः। सुऽअर्काः। शम्। नः। विष्णुः। शम्। ऊँ इति। पूषा। नः। अस्तु। शम्। नः। भवित्रम्। शम्। ऊँ इति। अस्तु। वायुः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 9
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः शिक्षकैः शिष्यान् संशिक्ष्य कीदृशाः सम्पादनीया इत्याह ॥
अन्वयः
हे अध्यापकोपदेशका विद्वांसो ! यूयं यथाऽदितिर्व्रतेभिस्सह नश्शं भवतु स्वर्का मरुतो व्रतेभिस्सह नः शं भवन्तु विष्णुर्नः शं भवतु पूषा नः शम्वस्तु भवित्रं नः शं भवतु वायुर्नः शमु अस्तु तथा शिक्षध्वम् ॥९॥
पदार्थः
(शम्) (नः) (अदितिः) विदुषी माता (भवतु) (व्रतेभिः) सत्कर्मभिः (शम्) (नः) (भवन्तु) (मरुतः) प्राणा इव प्रिया मनुष्याः (स्वर्काः) शोभना अर्का मन्त्रा विचारा येषान्ते (शम्) (नः) (विष्णुः) व्यापको जगदीश्वरः (शम्) (उ) (पूषा) पुष्टिकरब्रह्मचर्यादिव्यवहारः (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (भवित्रम्) भवितव्यम् (शम्) (उ) (अस्तु) (वायुः) पवनः ॥९॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मात्रादिभिर्विदुषीभिः कन्या पित्रादिभिर्विद्वद्भिः पुत्रास्सम्यक् शिक्षणीया यदेते भूमिमारभ्येश्वरपर्यन्तपदार्थानां विद्याः प्राप्य धर्मिष्ठा भूत्वा सर्वान् मनुष्यादीन् सततमानन्दयेयुः ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर शिक्षकजनों को शिष्यजन अच्छी शिक्षा दे कैसे सिद्ध करने चाहियें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे अध्यापक और उपदेशक विद्वानो ! तुम जैसे (अदितिः) विदुषी माता (व्रतेभिः) अच्छे कामों के साथ (नः) हम लोगों को (शम्) सुखरूप (भवतु) हो और (स्वर्काः) सुन्दर मन्त्र विचार हैं जिनके वे (मरुतः) प्राणों के समान प्रियजन अच्छे कामों के साथ (शम्) सुखरूप (भवन्तु) होवें (विष्णुः) व्यापक जगदीश्वर (नः) हम लोगों के =को(शम्) सुखरूप हो (पूषा) पुष्टि करनेवाला ब्रह्मचर्य्यादि व्यवहार (नः) हमारे लिये (शम्) सुखरूप (उ) ही (अस्तु) हो (भवित्रम्) होनहार काम (नः) हमारे लिये (शम्) सुखरूप होवे और (वायुः) पवन (नः) हमारे लिये (शम्) सुखरूप (उ) ही (अस्तु) हो वैसी शिक्षा देओ ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । माता आदि विदुषियों को कन्या और विद्वान् पिता आदि को पुत्र अच्छे प्रकार शिक्षा देने योग्य हैं, जिससे यह भूमि से ले के ईश्वर पर्यन्त पदार्थों की विद्याओं को पाके धार्मिक होकर सब मनुष्यों को निरन्तर आनन्दित करें ॥९॥
विषय
शान्ति सूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।
भावार्थ
( अदितिः ) अखण्ड व्रत पालन करने वाले ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणी और माता पिता, पुत्रादि ( व्रतेभिः ) सत्कर्मों से ( नः शम् ) हमें सुख शान्तिदायक हों । ( स्वर्काः मरुतः ) उत्तम विचारवान् विद्वान् पुरुष प्राणवत् प्रिय होकर ( नः ) हमें ( शं भवन्तु ) शान्तिदायक हों । ( विष्णुः नः शम् ) व्यापक परमेश्वर हमें शान्ति दे । ( पूषा नः शम् उ अस्तु ) पुष्टिकारक ब्रह्मचर्यादि व्यवहार, सर्वपोषक प्रभु वा राजा भी हमें सुखकारी हो । ( भवित्रं नः शम्) भवितव्य जो आगे होने को है वह भी हमें सुख दे । ( वायुः शम् उ अस्तु ) वायु हमें शान्तिदायक हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
आदित्य ब्रह्मचारी शान्तिदायक हो
पदार्थ
पदार्थ- (अदितिः) = अखण्ड व्रती ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणी और माता-पिता, (व्रतेभिः) = सत्कर्मों से (नः शम्) = हमें शान्तिदायक हों। (स्वर्काः मरुतः) = उत्तम विद्वान् प्राणवत् प्रिय होकर (नः) = हमें (शं भवन्तु) = शान्तिदायक हों। (विष्णुः नः शम्) = परमेश्वर हमें शान्ति दे। (पूषाः नः शम् उ अस्तु) = पुष्टिकारक ब्रह्मचर्यादि व्यवहार, पोषक प्रभु भी हमें सुखकारी हो । (भवित्रं नः शम्) = भवितव्य भी हमें सुख दे। (वायुः सम् उ अस्तु) = वायु हमें शान्तिदायक हो।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र में आदित्य ब्रह्मचारी उत्तम विद्वान् होकर अपने सत्कर्मों सदाचरण द्वारा उपदेश करके प्रजा के प्रिय बनें। वे ब्रह्मचारी पुष्टिकारक ब्रह्मचर्य की शिक्षा तथा व्यापक परमेश्वर की प्राप्ति के उपाय सिखाकर जनगण का मङ्गल साधें ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विदुषी मातांनी कन्यांना व विद्वान पित्यांनी पुत्रांना चांगल्या प्रकारे शिक्षण द्यावे. ज्यामुळे त्यांनी भूमीपासून ईश्वरापर्यंत पदार्थांची विद्या प्राप्त करून धार्मिक बनून सर्व माणसांना निरंतर आनंदित करावे. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May the indestructible nature mother with her laws and mother earth be peaceful for us. May the holy and adorable winds and vibrant humanity of brilliant virtues be for peace and joy for us. May Vishnu, lord omnipresent, be gracious and give us peace and joy. May nature’s nourishment be for our peace and happiness. Let the future possibilities be for our good and happiness of well being. Let the air be for our peace and happiness. Let all laws and disciplines be for peace.
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