ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 6
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
शं न॒ इन्द्रो॒ वसु॑भिर्दे॒वो अ॑स्तु॒ शमा॑दि॒त्येभि॒र्वरु॑णः सु॒शंसः॑। शं नो॑ रु॒द्रो रु॒द्रेभि॒र्जला॑षः॒ शं न॒स्त्वष्टा॒ ग्नाभि॑रि॒ह शृ॑णोतु ॥६॥
स्वर सहित पद पाठशम् । नः॒ । इन्द्रः॑ । वसु॑ऽभिः । दे॒वः । अ॒स्तु॒ । शम् । आ॑आ॒दि॒त्येभिः । वरु॑णः । सु॒ऽशंसः॑ । शम् । नः॒ । रु॒द्रः । रु॒द्रेभिः॑ । जला॑षः । शम् । नः॒ । त्वष्टा॑ । ग्नाभिः॑ । इ॒ह । शृ॒णो॒तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं न इन्द्रो वसुभिर्देवो अस्तु शमादित्येभिर्वरुणः सुशंसः। शं नो रुद्रो रुद्रेभिर्जलाषः शं नस्त्वष्टा ग्नाभिरिह शृणोतु ॥६॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। इन्द्रः। वसुऽभिः। देवः। अस्तु। शम्। आदित्येभिः। वरुणः। सुऽशंसः। शम्। नः। रुद्रः। रुद्रेभिः। जलाषः। शम्। नः। त्वष्टा। ग्नाभिः। इह। शृणोतु ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वद्भिः किं विज्ञाय सम्प्रयुज्य किं प्राप्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर विद्वन् वा ! भवत्सहायपरीक्षाभ्यामिह वसुभिस्सह देव इन्द्रो नः शमादित्येभिस्सह सुशंसो वरुणो नः शमस्तु रुद्रेभिस्सह जलाषो रुद्रो नश्शमस्तु ग्नाभिस्सह त्वष्टा नश्शं शृणोतु ॥६॥
पदार्थः
(शम्) (नः) (इन्द्रः) विद्युत्सूर्यो वा (वसुभिः) पृथिव्यादिभिस्सह (देवः) दिव्यगुणकर्मस्वभावयुक्तः (अस्तु) (शम्) (आदित्येभिः) संवत्सरस्य मासैः (वरुणः) जलसमुदायः (सुशंसः) प्रशस्तप्रशंसनीयः (शम्) (नः) (रुद्रः) परमात्मा जीवो वा (रुद्रेभिः) जीवैः प्राणैर्वा (जलाषः) दुःखनिवारकः (शम्) (नः) (त्वष्टा) सर्ववस्तुविच्छेदकोऽग्निरिव परीक्षको विद्वान् (ग्नाभिः) वाग्भिः। ग्नेति वाङ्नाम। (निघं०१.११)। (इह) अस्मिन् संसारे (शृणोतु) ॥६॥
भावार्थः
ये पृथिव्यादित्यवायुविद्ययेश्वरजीवप्राणान् विज्ञायेहैतद्विद्यामध्याप्य परीक्षां कृत्वा सर्वान् विदुष उद्योगिनः कुर्वन्ति तेऽत्र किं किमैश्वर्यं नाप्नुवन्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वानों को क्या जान के और संयुक्त कर क्या पाने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर वा विद्वान् आपके सहाय से और परीक्षा से (इह) यहाँ (वसुभिः) पृथिव्यादिकों के साथ (देवः) दिव्य गुणकर्मस्वभावयुक्त (इन्द्रः) बिजुली या सूर्य (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप और (आदित्येभिः) संवत्सर के महीनों के साथ (सुशंसः) प्रशंसित प्रशंसा करने योग्य (वरुणः) जल समुदाय (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो (रुद्रेभिः) जीव प्राणों के साथ (जलाषः) दुःख निवारण करनेवाला (रुद्रः) परमात्मा वा जीव (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप हो (ग्नाभिः) वाणियों के साथ (त्वष्टा) सर्व वस्तुविच्छेद करनेवाला अग्नि के समान परीक्षक विद्वान् (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुख (शृणोतु) सुने ॥६॥
भावार्थ
जो पृथिवी, आदित्य और वायु की विद्या से ईश्वर, जीव और प्राणों को जान यहाँ इनकी विद्या को पढ़ा परीक्षा कर सब को विद्वान् और उद्योगी करते हैं, वे इस संसार में किस-किस ऐश्वर्य को नहीं प्राप्त होते हैं ॥६॥
विषय
शान्ति सूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।
भावार्थ
( वसुभिः ) प्राणियों को बसने के स्थान रूप पृथिवी आदि उपग्रह, ग्रहों सहित ( देवः ) तेजस्वी सर्वप्रकाशक (इन्द्रः) अन्धकार नाशक मेघोत्पादक जलदायक सूर्य और प्रजाजनों सहित राजा, ब्रह्मचारियों सहित आचार्य ( नः शं ) हमें शान्ति सुख दे । ( आदित्येभिः ) वर्ष के मासों सहित ( वरुणः ) जल संघ, समुद्रादि और आदित्यसम तेजस्वी पुरुषों सहित ( वरुणः ) श्रेष्ठ राजा (सु-शंसः) उत्तम शासक, आज्ञापक और स्तुत्य होकर ( शम्) सबको सुखकारी हो । ( रुद्रेभिः ) प्राणों सहित ( रुद्रः ) जीव, दुष्टों के रुलाने वाले सैन्यों सहित सेनापति ( जलाषः) सन्ताप का नाशक जलवत् सुखों का दाता होकर ( नः शम् ) हमें शान्ति दे। ( ग्नाभिः त्वष्टा ) वाणियों सहित विद्वान् और उत्तम गृहपतियों सहित गृहस्थी जन भी ( नः ) हमारे ( शं ) शान्तिदायक ( शृणोतु ) वचन श्रवण करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
जलदायक सूर्य सुख दे
पदार्थ
पदार्थ- (वसुभिः) = प्राणियों को बसने के स्थान पृथिवी आदि ग्रहों सहित (देवः) = प्रकाशक (इन्द्रः) = सूर्य और राजा, ब्रह्मचारियों सहित आचार्य (नः शं) = हमें सुख दे। (आदित्येभिः) = वर्ष के मासों सहित (वरुणः) = समुद्रादि और आदित्यसम पुरुषों सहित राजा (सु-शंसः) = स्तुत्य होकर शम्सुखकारी हो । (रुद्रेभिः) = प्राणों सहित (रुद्रः) = जीव, दुष्टों के रोदक सैन्यों सहित सेनापति (जलाषः) = सन्ताप-नाशक, जलवत् सुख- दाता होकर (नः शम्) = हमें शान्ति दे। (ग्नाभिः त्वष्टा) = वाणियों सहित विद्वान् और उत्तम गृहपतियों सहित गृहस्थी भी (नः) = हमारे (शं) = शान्तिदायक (शृणोतु) = वचन सुनें।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणियों के बसने के स्थानरूप पृथिवी, ग्रह, बादल, तथा जलदायक सूर्य आदि का ज्ञान कराने हेतु राजा उत्तम आचार्यों की सुव्यवस्था करे। शौर्यवान् तथा उत्तम जनप्रिय शासक वर्ग की नियुक्ति करे। गृहस्थियों को सद्व्यवहार सिखाने हेतु उत्तम विद्वानों की नियुक्ति करके प्रजा का हित करे।
मराठी (1)
भावार्थ
जे पृथ्वी, आदित्य व वायूच्या विद्येने ईश्वर, जीव व प्राण यांना जाणून त्यांच्या विद्येचे अध्यापन करून, परीक्षा करून सर्वांना विद्वान व उद्योगी करतात ते या जगात कोणते ऐश्वर्य प्राप्त करू शकत नाहीत? ॥ ६ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May the self-refulgent sun with life sustaining planets be good for peace and happiness in our life. May the ocean so adorable be good for our peace and joy all the year round with the sun in Zodiacs. May the lord of nature’s life energy, Rudra, with pranic energies warding off pain and suffering be good for our peace and well being, and may the lord maker of forms, Tvashta, with his fires of evolution and new structures be good and gracious for our peace and happiness and listen to us here itself.
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