ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 12
शं नः॑ स॒त्यस्य॒ पत॑यो भवन्तु॒ शं नो॒ अर्व॑न्तः॒ शमु॑ सन्तु॒ गावः॑। शं न॑ ऋ॒भवः॑ सु॒कृतः॑ सु॒हस्ताः॒ शं नो॑ भवन्तु पि॒तरो॒ हवे॑षु ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठशम् । नः॒ । स॒त्यस्य॑ । पत॑यः । भ॒व॒न्तु॒ । शम् । नः॒ । अर्व॑न्तः । शम् । ऊँ॒ इति॑ । स॒न्तु॒ । गावः॑ । शम् । नः॒ । ऋ॒भवः॑ । सु॒ऽकृतः॑ । सु॒ऽहस्ताः॑ । शम् । नः॒ । भ॒व॒न्तु॒ । पि॒तरः॑ । हवे॑षु ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नः सत्यस्य पतयो भवन्तु शं नो अर्वन्तः शमु सन्तु गावः। शं न ऋभवः सुकृतः सुहस्ताः शं नो भवन्तु पितरो हवेषु ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। सत्यस्य। पतयः। भवन्तु। शम्। नः। अर्वन्तः। शम्। ऊँ इति। सन्तु। गावः। शम्। नः। ऋभवः। सुऽकृतः। सुऽहस्ताः। शम्। नः। भवन्तु। पितरः। हवेषु ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 12
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 30; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः किमिच्छेयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर विद्वन् वा ! यथा हवेषु सत्यस्य पतयो नः शं भवन्त्वर्वन्तो नः शं भवन्तु गावो नः शमु सन्तु सुकृतस्सुहस्ता ऋभवो नः शं सन्तु पितरो नः शं भवन्तु तथा विधेहि ॥१२॥
पदार्थः
(शम्) (नः) (सत्यस्य) सत्यभाषणादिव्यवहारस्य (पतयः) पालकाः (भवन्तु) (शम्) (नः) (अर्वन्तः) उत्तमा अश्वाः (शम्) (उ) (सन्तु) (गावः) धेनवः (शम्) (नः) (ऋभवः) मेधाविनः (सुकृतः) धर्मात्मानः (सुहस्ताः) शोभनेषु कर्मसु हस्ता येषां ते (शम्) (नः) (भवन्तु) (पितरः) (हवेषु) हवनादिसत्कर्मसु ॥१२॥
भावार्थः
मनुष्यैरेवं शीलं वर्तव्यं येन आप्ताः प्रीताः स्युः येषां प्रीत्या सर्वे पशवो विद्वांसः पितरश्च प्रसन्नाः सुखकरा भवेयुः ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य किसकी इच्छा करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर वा विद्वान् ! जैसे (हवेषु) हवन आदि अच्छे कामों में (सत्यस्य) सत्यभाषण आदि व्यवहार के (पतयः) पति (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवन्तु) होवें (अर्वन्तः) उत्तम घोड़े (नः) हमारे लिये (शम्) सुखरूप होवें (गावः) दूध देती हुई गौवें (नः) हम लोगों को (शम्) सुखरूप (उ) ही (सन्तु) हों (सुकृतः) धर्मात्मा (सुहस्ताः) सुन्दर अच्छे कामों में हाथ डालनेवाले (ऋभवः) बुद्धिमान् जन (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप हों (पितरः) पितृजन (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवन्तु) होवें, वैसा विधान करो ॥१२॥
भावार्थ
मनुष्यों को ऐसे शील की धारणा करनी चाहिये जिससे आप्त सज्जन प्रसन्न हों, जिनकी प्रीति से सब पशु और विद्वान् पितृजन प्रसन्न और सुख करनेवाले होवें ॥१२॥
विषय
शान्ति सूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।
भावार्थ
( सत्यस्य पतयः नः शम् भवन्तु ) सत्य व्यवहार, सत्य धर्म के पालक हमें शान्ति दें । (अर्वन्तः ) अश्व ( नः शं) हमें सुख दें । (गावः शम् उ सन्तु ) गौएं हमें शान्तिदायक हों । ( सुकृतः ) उत्तम कार्य करने वाले धर्मात्मा ( सु-हस्ताः ) कार्य, शिल्पादि साधने में सिद्धहस्त, प्रशस्त ( ऋभवः ) शिल्पी और तेजस्वी, सत्यज्ञानी पुरुष ( नः शं ) हमें सुख दें। ( हवेषु ) यज्ञों और संग्रामों के अवसरों में (पितरः) माता पिता, पालक आचार्य, राजादि जन (नः शं भवन्तु) हमें शान्तिदायक हों ।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
शान्ति प्राप्ति हेतु सद्व्यवहार करें
पदार्थ
पदार्थ- (सत्यस्य पतयः नः शम् भवन्तु) = सत्य व्यवहार के पालक हमें शान्ति दें। (अर्वन्तः) = अश्व (नः शं) = हमें सुख दें। (गावः शम् उ सन्तु) = गौएँ हमें शान्तिदायक हों। (सुकृतः) = धर्मात्मा (सु-हस्ताः) = शिल्पादि में सिद्धहस्त (ऋभवः) = शिल्पी और ज्ञानी पुरुष (नः शं) = हमें सुख दें। (हवेषु) = यज्ञों और संग्रामों के समय (पितरः) = माता-पिता, राजादि (नः शं भवन्तु) = हमें शान्तिदायक हों।
भावार्थ
भावार्थ- उत्तम धर्मात्मा जन सत्य धर्म का उपदेश करें तथा अश्वपालन एवं गौपालन की विद्या सिखावें। यज्ञों में माता-पिता सहित पूरे परिवार को बैठने की प्रेरणा करें। सिद्धहस्त शिल्पकार शिल्प विद्या के द्वारा प्रजा का कल्याण करें।
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांचे शील असे असावे की ज्यामुळे विद्वान सज्जन प्रसन्न व्हावेत. ज्यांच्या प्रेमामुळे सर्व पशू व विद्वान पितर प्रसन्न व सुख देणारे असावेत. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May the keepers and observers of truth be at peace for our good and well being. May our horses and transports be at peace, may our lands and cows be at peace for our peace and well being. May our wise veterans, noble artists and expert craftsmen, be at peace for happiness and comfort for us. And may our seniors be at peace and give us peace at our programmes of holy action when we call upon them.
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