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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शं नः॒ सूर्य॑ उरु॒चक्षा॒ उदे॑तु॒ शं न॒श्चत॑स्रः प्र॒दिशो॑ भवन्तु। शं नः॒ पर्व॑ता ध्रुवयो॑ भवन्तु॒ शं नः॒ सिन्ध॑वः॒ शमु॑ स॒न्त्वापः॑ ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम् । नः॒ । सूर्यः॑ । उ॒रु॒ऽचक्षाः॑ । उत् । ए॒तु॒ । शम् । नः॒ । चत॑स्रः । प्र॒ऽदिशः॑ । भ॒व॒न्तु॒ । शम् । नः॒ । पर्व॑ताः । ध्रु॒वयः॑ । भ॒व॒न्तु॒ । शम् । नः॒ । सिन्ध॑वः । शम् । ऊँ॒ इति॑ । स॒न्तु॒ । आपः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नः सूर्य उरुचक्षा उदेतु शं नश्चतस्रः प्रदिशो भवन्तु। शं नः पर्वता ध्रुवयो भवन्तु शं नः सिन्धवः शमु सन्त्वापः ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। सूर्यः। उरुऽचक्षाः। उत्। एतु। शम्। नः। चतस्रः। प्रऽदिशः। भवन्तु। शम्। नः। पर्वताः। ध्रुवयः। भवन्तु। शम्। नः। सिन्धवः। शम्। ऊँ इति। सन्तु। आपः ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्भिः किमेष्टव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे परेश विद्वन् वा ! भवच्छिक्षया उरुचक्षास्सूर्यः नः शमुदेतु चतस्रः प्रदिशः नः शं भवन्तु ध्रुवयः पर्वता नः शं भवन्तु सिन्धवो नः शमापः शमु सन्तु ॥८॥

    पदार्थः

    (शम्) (नः) (सूर्यः) सविता (उरुचक्षाः) उरूणि बहूनि चक्षांसि दर्शनानि यस्मात् सः (उत्) (एतु) (शम्) (नः) (चतस्रः) (प्रदिशः) पूर्वाद्या ऐशान्याद्या वा (भवन्तु) (शम्) (नः) (पर्वताः) शैलाः (ध्रुवयः) स्वस्वस्थाने स्थिराः (भवन्तु) (शम्) (नः) (सिन्धवः) नद्यः समुद्रा वा (शम्) (उ) (सन्तु) (आपः) जलानि प्राणा वा ॥८॥

    भावार्थः

    ये जगदीश्वरनिर्मितेभ्यः सूर्यादिभ्यः उपकारानादातुं शक्नुवन्ति तेऽत्र श्री राज्यसत्कीर्तिमन्तो जायन्ते ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् जनों को क्या इच्छा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे परमेश्वर वा विद्वान् ! आपकी शिक्षा से (उरुचक्षाः) जिससे बहुत दर्शन होते हैं वह (सूर्यः) सूर्य (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुख रूप (उत्, एतु) उदय हो (चतस्रः) चार (प्रदिशः) पूर्वादि वा रोशनी आदि दिशा वा विदिशा (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवन्तु) हों (ध्रुवयः) अपने-अपने स्थान में स्थिर (पर्वताः) पर्वत (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (भवन्तु) होवें (सिन्धवः) नदी वा समुद्र (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप और (आपः) जल वा प्राण (शम्) सुखरूप (उ) ही (सन्तु) हों ॥८॥

    भावार्थ

    जो जगदीश्वर ने बनाये हुए सूर्यादिकों से उपकार ले सकते हैं, वे इस जगत् में श्री, राज्य और कीर्तिवाले होते हैं ॥८॥

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    विषय

    शान्ति सूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    ( उरुचक्षाः ) बहुत से सम्यग् ज्ञान दर्शनों का कर्त्ता तेजस्वी ( सूर्य: ) सूर्यवत् सर्वप्रकाशक विद्वान् ( नः ) हमारे लिये (शं उदेतु ) शान्तिदायक होकर उदय को प्राप्त हो । ( चतस्रः प्रदिशः ) चारों दिशाएं (नः शं भवन्तु ) हमें शान्तिदायक हों। (ध्रुवयः पर्वताः) ध्रुव स्थिर पर्वत ( नः शं भवन्तु ) हमें शान्तिदायक हों । ( सिन्धवः नः शम् ) नदियों के जलप्रवाह हमें सुखकारी हों । और ( आपः शम् उ सन्तु ) जल हमें सुखकारी हों ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ऋषिचारों दिशाएँ शान्तिदायक हों

    पदार्थ

    पदार्थ - (उरुचक्षा:) = बहुत सम्यग् - ज्ञान दर्शनों का कर्त्ता तेजस्वी (सूर्यः) = सूर्यवत् प्रकाशक विद्वान् (नः) = हमारे लिये (शं उदेतु) = शान्तिदायक होकर उदय हो। (चतस्त्रः प्रदिशः) = चारों दिशाएँ (नः शं भवन्तु) = हमें शान्तिदायक हों। (ध्रुवयः पर्वताः) = स्थिर पर्वत (नः शं भवन्तु) = हमें शान्तिदायक हों। (सिन्धवः नः शम्) = नदियों के प्रभाव हमें सुखकारी हों और (आपः शम् उ सन्तु) = जल प्रभु सुखदायी हो

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र में उत्तम विद्वानों द्वारा उपदेश कराया जावे कि चारों दिशाओं के पदार्थों से कैसे लाभ लेकर जनसमुदाय सुखी हो सकता है। जैसे-उदय होते सूर्य की किरणों द्वारा स्नान, समुद्र के खारे जल द्वारा स्नान, पर्वतों की चोटियों पर वायु स्नान तथा जल द्वारा कटिस्नान, घर्षण स्नान, मेहन स्नान व पाँव स्नान आदि से कैसे स्वास्थ्य लाभ उठाया जा सकता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे जगदीश्वराने निर्माण केलेल्या सूर्य इत्यादीद्वारे त्यांचा उपयोग करून घेऊ इच्छितात ते या जगात श्री, राज्य व कीर्ती मिळवितात. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May the sun of universal eye rise for our peace and joy. May the four directions with their subdirections be for our peace and joy. May the mountains be stable and undisturbed to give us peace. Let the seas be calm and peaceful, and let all forms of water be for us and our peace and joy.

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