ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 3
शं नो॑ धा॒ता शमु॑ ध॒र्ता नो॑ अस्तु॒ शं न॑ उरू॒ची भ॑वतु स्व॒धाभिः॑। शं रोद॑सी बृह॒ती शं नो॒ अद्रिः॒ शं नो॑ दे॒वानां॑ सु॒हवा॑नि सन्तु ॥३॥
स्वर सहित पद पाठशम् । नः॒ । धा॒ता । शम् । ऊँ॒ इति॑ । ध॒र्ता । नः॒ । अ॒स्तु॒ । शम् । नः॒ । उ॒रू॒ची । भ॒व॒तु॒ । स्व॒धाभिः॑ । शम् । रोद॑सी॒ इति॑ । बृ॒ह॒ती । शम् । नः॒ । अद्रिः॑ । शम् । नः॒ । दे॒वाना॑म् । सु॒ऽहवा॑नि । स॒न्तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो धाता शमु धर्ता नो अस्तु शं न उरूची भवतु स्वधाभिः। शं रोदसी बृहती शं नो अद्रिः शं नो देवानां सुहवानि सन्तु ॥३॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। धाता। शम्। ऊँ इति। धर्ता। नः। अस्तु। शम्। नः। उरूची। भवतु। स्वधाभिः। शम्। रोदसी इति। बृहती। शम्। नः। अद्रिः। शम्। नः। देवानाम्। सुऽहवानि। सन्तु ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः सृष्ट्या कीदृगुपकारो ग्रहीतव्य इत्याह ॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर विद्वन् वा ! भवत्कृपया सङ्गेन च नो धाता शमु धर्ता नः शमस्तु स्वधाभिः सहोरूची नः शं भवतु बृहती रोदसी नः शं भवतां अद्रिर्नः शं भवतु नो देवानां सुहवानि शं सन्तु ॥३॥
पदार्थः
(शम्) शमित्यस्य सर्वत्रैव पूर्वोक्तरीत्यार्थो वेदितव्यः (नः) अस्मभ्यम् (धाता) धर्ता (शम्) (उ) (धर्ता) पोषकः (नः) अस्याप्येवमेव चतुर्थीबहुवचनान्तस्यार्थो वेदितव्यः (अस्तु) (शम्) (नः) (उरूची) या बहूनञ्चति प्राप्नोति सा पृथिवी (भवतु) (स्वधाभिः) अन्नादिभिः (शम्) (रोदसी) द्यावान्तरिक्षे (बृहती) महत्यौ (शम्) (नः) (अद्रिः) मेघः (शम्) (नः) (देवानाम्) विदुषाम् (सुहवानि) सुष्ठु आह्वानानि प्रशंसनानि वा (सन्तु) ॥३॥
भावार्थः
ये मनुष्याः पोषकादिभ्य उपकारान् ग्रहीतुं विजानन्ति ते सर्वाणि सुखानि लभन्ते ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को सृष्टि से कैसा उपकार लेना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर वा विद्वान् ! आप की कृपा और सङ्ग से (नः) हम लोगों के लिये (धाता) धारण करनेवाला (शम्) सुखरूप (उ) और (धर्ता) पुष्टि करनेवाला (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो (स्वधाभिः) अन्नादिकों के साथ (उरूची) जो बहुत पदार्थों को प्राप्त होती वह पृथिवी (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुख देनेवाली (भवतु) हो (बृहती) महान् (रोदसी) प्रकाश और अन्तरिक्ष (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप होवें (अद्रिः) मेघ (नः) हमारे लिये (शम्) सुखकारक हो (नः) हम लोगों के लिये (देवानाम्) विद्वानों के (सुहवानि) सुन्दर आवाहन प्रशंसा से बुलावे (शम्) सुखरूप (सन्तु) हों ॥३॥
भावार्थ
जो मनुष्य पुष्टि करनेवालों से उपकार लेना जानते हैं, वे सब सुखों को पाते हैं ॥३॥
विषय
शान्तिसूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।
भावार्थ
( धाता नः शम् ) पोषक वर्ग हमें शान्ति दे । ( धर्त्ता नः शम् उ ) धारण करने वाला, हमें सुख शान्ति दे । ( उरूची ) बहुत से पदार्थ प्राप्त कराने वाली भूमि, ( नः ) हमें ( स्वधाभिः ) अन्नों और जलों से ( शंभवतु ) शान्तिदायक हो । ( बृहती रोदसी शं ) बड़े, वृद्धिशील, सूर्य और अन्तरिक्ष दोनों ( शं) शान्तिदायक हों। (अद्रि नः शम् ) मेघ और पर्वत हमें शान्ति दें । ( देवानां ) देव, विद्वानों के ( सु-हवानि ) सम्बोधन करके किये गये उत्तम २ उपदेश वा उत्तम वचन भी ( नः शंसन्तु ) हमें शान्तिदायक हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
भूमि, अन्न, जल शान्तिदायक हों
पदार्थ
पदार्थ- (धाता न शम्) = पोषक वर्ग हमें शान्ति दे। (धर्त्ता नः शम् उ) = धारक हमें शान्ति दे। (उरूची) = बहुत पदार्थ प्राप्त करानेवाली भूमि, (नः) = हमें (स्वधाभिः) = अन्नों से (शं भवतु) = शान्तिदायक हो । (बृहती रोदसी शं) = वृद्धिशील, सूर्य और अन्तरिक्ष (शं) = शान्तिदायक हों। (अद्रिः नः शम्) = मेघ और पर्वत शान्ति दें। (देवानां) = देव, विद्वानों के (सु हवानि) = उत्तम उपदेश (नः शं सन्तु) = हमें शान्तिदायक हों।
भावार्थ
भावार्थ-राष्ट्र में किसान उत्तम अन्न पैदा करे, भूमि से प्रचुर अन्न-जलों तथा अन्य पदार्थों की उत्पत्ति हो तथा समय पर वर्षा हो। इन सबकी जानकारी हेतु राष्ट्र में विद्वान् जन उत्तम उपदेश करके राष्ट्र का कल्याण करें।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे पोषकाकडून उपकार घेणे जाणतात त्यांना सर्व सुख मिळते. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May the lord creator, ruler and sustainer be good and gracious and give us peace and joy of well being. May the extensive space and the wide earth be good with gifts of sustenance for our peace and well being. May the great firmament, and the regions of light and the cloud and the mountain be for our good, peace and joy. And may our invocations and adorations of the divinities of nature and humanity be good and bring us peace and joy.
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