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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शं नो॑ अ॒ग्निर्ज्योति॑रनीको अस्तु॒ शं नो॑ मि॒त्रावरु॑णाव॒श्विना॒ शम्। शं नः॑ सु॒कृतां॑ सुकृ॒तानि॑ सन्तु॒ शं न॑ इषि॒रो अ॒भि वा॑तु॒ वातः॑ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम् । नः॒ । अ॒ग्निः । ज्योतिः॑ऽअनीकः । अ॒स्तु॒ । शम् । नः॒ । मि॒त्रावरु॑णौ । अ॒श्विना॑ । शम् । शम् । नः॒ । सु॒ऽकृता॑म् । सु॒ऽकृ॒तानि॑ । स॒न्तु॒ । शम् । नः॒ । इ॒षि॒रः । अ॒भि । वा॒तु॒ । वातः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नो अग्निर्ज्योतिरनीको अस्तु शं नो मित्रावरुणावश्विना शम्। शं नः सुकृतां सुकृतानि सन्तु शं न इषिरो अभि वातु वातः ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। अग्निः। ज्योतिःऽअनीकः। अस्तु। शम्। नः। मित्रावरुणौ। अश्विना। शम्। शम्। नः। सुऽकृताम्। सुऽकृतानि। सन्तु। शम्। नः। इषिरः। अभि। वातु। वातः ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं कर्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे जगदीश्वर विद्वन् वा ! भवत्कृपया ज्योतिरनीकोऽग्निर्नः शमस्त्वश्विना शं मित्रावरुणौ नः शं भवतां न सुकृतां सुकृतानि शम् [सन्तु] इषिरो वातो नः शमभि वातु ॥४॥

    पदार्थः

    (शम्) (नः) (अग्निः) पावकः (ज्योतिरनीकः) ज्योतिरेवानीकं सैन्यमिव यस्य सः (अस्तु) (शम्) (नः) (मित्रावरुणौ) प्राणोदानौ (अश्विना) व्यापिनौ (शम्) (शम्) (नः) (सुकृताम्) ये सुष्ठु धर्ममेव कुर्वन्ति तेषाम् (सुकृतानि) धर्माचरणानि (सन्तु) (शम्) (नः) (इषिरः) सद्यो गन्ता (अभि) (वातु) (वातः) वायुः ॥४॥

    भावार्थः

    ये अग्निवाय्वादिभ्यः कार्याणि साध्नुवन्ति ते समग्रैश्वर्यमश्नुवन्ति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे जगदीश्वर वा विद्वान् ! आप की कृपा से (ज्योतिरनीकः) ज्योति ही सेना के समान जिस की (अग्निः) वह अग्नि (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो (अश्विना) व्यापक पदार्थ (शम्) सुखरूप और (मित्रावरुणौ) प्राण और उदान (नः) हमारे लिये (शम्) सुखरूप होवें (नः) हम (सुकृताम्) सुन्दर धर्म करनेवालों के (सुकृतानि) धर्माचरण (शम्) सुखरूप (सन्तु) हों और (इषिरः) शीघ्र जानेवाला (वातः) वायु (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अभि, वातु) सब ओर से बहे ॥४॥

    भावार्थ

    जो अग्नि और वायु आदि पदार्थों से कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वे समग्र ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥४॥

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    विषय

    शान्तिसूक्त, समस्त भौतिक तत्वों से शान्ति प्राप्त करने की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    ( ज्योतिः अनीकः ) तेज को सैन्य के समान धारण करने वाला ( अग्नि: ) आग और उसके समान तेजस्वी सैन्य वा मुख वाला राजा और विद्वान् पुरुष (नः शम्) हमें सुखकारी हो । ( मित्रा वरुणौ नः शं ) प्राण और उदान तथा एक दूसरे के स्नेही और एक दूसरे का वरण करनेवाले ( अश्विना ) रथी सारथी के समान उत्तम अश्वों के समान इन्द्रियों के स्वामी, जितेन्द्रिय, स्त्री पुरुष ( नः शं ) हमें शान्तिदायक हों ( सुकृतां ) पुण्यात्माओं के ( सुकृतानि ) पुण्य कर्म ( नः शं ) हमें शान्ति दें । ( इषिरः वातः ) सदा गमनशील वायु और सर्वप्रेरक वायुवत् बलवान् पुरुष ( नः शं अभिवातु ) हमें शान्तिदायक होकर सब ओर बहे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि:॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः– १, २, ३, ४, ५, ११, १२ त्रिष्टुप्। ६, ८, १०, १५ निचृत्त्रिष्टुप्। ७, ९ विराट् त्रिष्टुप्। १३, १४ भुरिक् पंक्तिः॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    तेजस्वी पुरुष सुखकारी हों

    पदार्थ

    पदार्थ - (ज्योतिः अनीकः अग्निः) = तेज का सैन्य तुल्य धारक, आग के समान तेजस्वी सैन्य, वा राजा (नः शम्) = हमें सुखकारी हो । (मित्रावरुणौ नः शं) = एक दूसरे के स्नेही और वरण करनेवाले (अश्विना) = रथी-सारथी वा इन्द्रियों के स्वामी, स्त्री-पुरुष (नः शं) = हमें शान्तिदायक हों। (सुकृतां) = पुण्यात्माओं के (सुकृतानि) = पुण्य कर्म (नः शं) = हमें शान्ति दे। (इषिरः वातः) = सदा गमनशील वायु (नः शं अभि वातु) = हमें शान्तिदायक होकर सब ओर जावे ।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र में तेजस्वी विद्वान् पुरुष प्राणसाधना, इन्द्रिय जय तथा पुण्यात्माओं के संसर्ग से लाभ आदि का उत्तम उपदेश करके प्रजा का मंगल साधें अर्थात् प्रजा को सुखी करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे अग्नी व वायू इत्यादी पदार्थार्ंनी कार्य करतात ते संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May the fire and the light and splendour of life be good for our peace and well being. May the prana and udana energies and the circuitous dynamics of nature be for our good and joy of well being. May the noble works of good artists and great men be for peace and happiness for us, and the ever blowing winds blow and inspire us for peace and joy.

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