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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 33/ मन्त्र 11
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    वृष॑णस्ते अ॒भीश॑वो॒ वृषा॒ कशा॑ हिर॒ण्ययी॑ । वृषा॒ रथो॑ मघव॒न्वृष॑णा॒ हरी॒ वृषा॒ त्वं श॑तक्रतो ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृष॑णः । ते॒ । अ॒भीश॑वः । वृषा॑ । कशा॑ । हि॒र॒ण्ययी॑ । वृषा॑ । रथः॑ । म॒घ॒ऽव॒न् । वृष॑णा । हरी॒ इति॑ । वृषा॑ । त्वम् । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषणस्ते अभीशवो वृषा कशा हिरण्ययी । वृषा रथो मघवन्वृषणा हरी वृषा त्वं शतक्रतो ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषणः । ते । अभीशवः । वृषा । कशा । हिरण्ययी । वृषा । रथः । मघऽवन् । वृषणा । हरी इति । वृषा । त्वम् । शतक्रतो इति शतऽक्रतो ॥ ८.३३.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 33; मन्त्र » 11
    अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of the power, wealth and glory of the universe, agent of infinite acts of creation in the world of existence, strong and golden are the reins of your cosmic chariot, golden is the goad that maintains and controls the speed of its motion, strong and laden with riches is your chariot, strong and virile the motive powers, and you yourself are all potent and generous.$(This mantra may be interpreted as a description of the human soul in its own individual sphere provided that it is self-controlled and free from external forces which bind it in the fetters of worldly interests of a selfish and transitory nature.)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या व्यक्तीचे शरीर-इन्द्रिये, मन व बुद्धी इत्यादी जीवनचक्राचे सर्व चालक यंत्र सुदृढ असतात. ती जगातील नाना प्रकारचे कर्म सुदृढ संकल्पाद्वारे करत स्वत: समर्थ व दानशील बनते. ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे (शतक्रतो) अनेक प्रकार के दृढ़ संकल्प धारक! तदनुसार सैकड़ों कर्म करने वाले! क्योंकि (ते अभीशवः) तेरे [जीवन-रथ के घोड़ों की नियन्त्रक रासें] चारों तरफ फैले तेज (वृषणः) बलवान् हैं; ( हिरण्ययी) न्याय के प्रकाश से चमकते (कशा) नियन्त्रणसाधक क्रियारूप चाबुक (वृषा) सुदृढ़ है, हे (मघवन्) स्वच्छतम पूजायोग्य ऐश्वर्यवाले! (रथः) हर्षदाता सर्वथा स्वस्थ तेरा शरीर रूपी रथ (वृषा) सुदृढ़ है, (हरी) हरणशील जीवन-चक्र को चलाने वाली दो-दो प्रकार की इन्द्रियाँ, ज्ञान व कर्मेन्द्रियाँ (वृषणा) सर्वथा कार्यदक्ष हैं; इसलिये तू अपने आप (वृषा) समर्थ व दानशील है।॥११॥

    भावार्थ

    जिस आदमी का शरीर-इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि आदि जीवनचक्र के सभी चालक यंत्र सुदृढ़ हैं, वह संसार में नाना कर्म सुदृढ़ संकल्प से करता है तथा स्वयं समर्थ व दानशील होता है ॥११॥

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    विषय

    वीर योद्धा रथीवत् प्रभु का वर्णन।

    भावार्थ

    जिस प्रकार वीर पुरुष की ( अभीशवः कशा रथः हरी ) रासें, चाबुक, रथ और घोड़े बलवान् हों तो वह युद्ध करने में समर्थ होता है उसी प्रकार हे ( शतक्रतो ) सैकड़ों बलों कर्मों और ज्ञानों वाले ! स्वामिन् ! तेरी ( ते अभीशवः ) सर्वत्र शासनकारिणी शक्तियां (वृषणः) बलवती और सुखों का वर्षण करने वाली हैं। ( ते कशा ) तेरी वाणी वेदमयी, ( हिरण्ययी ) हितकारिणी और सुन्दर सुखदायी है और (वृषा) सुख ज्ञान के देने वाली है। हे ( मघवन् ) ऐश्वर्यवन् ! ( ते रथः वृषा ) तेरा रमणीय रूप और उपदेश भी सुखप्रद है। ( ते हरी ) तेरे उपासक स्त्री पुरुष ( वृषणा ) बलवान् हैं। (त्वं वृषा) तू स्वयं बलवान्, सर्वसुखवर्षक है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेधातिथि: काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१—३, ५ बृहती। ४, ७, ८, १०, १२ विराड् बृहती। ६, ९, ११, १४, १५ निचृद् बृहती। १३ आर्ची भुरिग बृहती। १६, १८ गायत्री। १७ निचृद् गायत्री। १९ अनुष्टुप्॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    शरीर-रथ

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो! आपने हमें यह शरीर रथ दिया है। इसमें (ते) = आपसे दी गयी (अभीशवः) = चित्तवृत्ति रूप रश्मियाँ [लगामें] (वृषण:) = शक्तिशाली हैं। यह (हिरण्ययी) = ज्योतिर्मयी (कशा) = वाणी रूप चाबुक भी (वृषा) = शक्तिशाली व सुखवर्षक है। [२] हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! (रथः) = आपका दिया हुआ यह शरीर रथ वृषा शक्तिशाली है। इसमें जुते हुए (हरी) = इन्द्रियरूप अश्व (वृषणा) = शक्तिशाली हैं। हे (शतक्रते) = अनन्त प्रज्ञान व कर्मोंवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप इन सब वसुओं को देकर हमारे लिये (वृषा) = सुखों के वर्षक होते हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु ने यह शरीर रथ हमें जीवनयात्रा की पूर्ति के लिये दिया है। इसमें चित्तवृत्तियाँ लगाम हैं, ज्योतिर्मयी वाणी चाबुक है, इन्द्रियाश्व घोड़े हैं। ये सब के सब शक्तिशाली हैं। प्रभु देकर हमारे पर अनन्त सुखों का वर्षण करते हैं।

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