ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 33/ मन्त्र 18
सप्ती॑ चिद्घा मद॒च्युता॑ मिथु॒ना व॑हतो॒ रथ॑म् । ए॒वेद्धूर्वृष्ण॒ उत्त॑रा ॥
स्वर सहित पद पाठसप्ती॒ इति॑ । चि॒त् । घ॒ । म॒द॒ऽच्युता॑ । मि॒थु॒ना । व॒ह॒तः॒ । रथ॑म् । ए॒व । इत् । धूः । वृष्णः॑ । उत्ऽत॑रा ॥
स्वर रहित मन्त्र
सप्ती चिद्घा मदच्युता मिथुना वहतो रथम् । एवेद्धूर्वृष्ण उत्तरा ॥
स्वर रहित पद पाठसप्ती इति । चित् । घ । मदऽच्युता । मिथुना । वहतः । रथम् । एव । इत् । धूः । वृष्णः । उत्ऽतरा ॥ ८.३३.१८
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 33; मन्त्र » 18
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
If the two ardent horses of Indra’s chariot together draw the burden of the home-state, then the shaft of the chariot is better and stronger.
मराठी (1)
भावार्थ
पूर्व मंत्रात उद्भवलेल्या शंकेचे उत्तर हे आहे की, पती-पत्नीचे गृहस्थ जीवन दोघांच्या उत्तरदायित्वावर अवलंबून आहे; परंतु शारीरिक इत्यादी दृष्टीने अधिक बलवान असल्यामुळे दानशील पतीचे उत्तरदायित्व अधिक श्रेष्ठ आहे. जसे रथ इत्यादी यानात नियुक्त जोडीतून जो बलवान असेल त्याच्यावर अधिक भार असतो. ॥१८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सप्ती चित्) शीघ्रगामी भी पति-पत्नी निश्चित रूप से ही (मदच्युता) मन आदि के संयम से दिव्य आनन्द को भोगते हुए (मिथुना) मिले हुए (रथं वहतः) जीवन रथ को चलाते हैं। (एवेत्) इसी तरह (वृष्णः) बलवान् पति का (धूः) भार-दायित्व (उत्तरा) दोनों के भारों में अधिक है।॥१८॥
भावार्थ
इससे पूर्व व्यक्त शङ्का का उत्तर यह है कि पति-पत्नी का पारिवारिक जीवन दोनों का संयुक्त दायित्व है परन्तु शारीरिक दृष्टि आदि से अधिक बलशाली तथा दानशील पति का दायित्व अधिक बड़ा है उसी तरह जैसे कि रथ आदि में जुती जोड़ी में से अधिक बलिष्ठ पर अधिक भार पड़ता है॥१८॥
विषय
उत्तम स्त्री के कर्त्तव्य।
भावार्थ
स्त्री और पुरुष ( मिथुना ) दोनों मिलकर ( मदच्युता ) आनन्द को प्राप्त करते हुए ( सप्ता चित् ) दो अश्वों के समान ही ( रथम् वहतः ) गृहस्थ रूप रथ वा गृहस्थ के सुख को वहन करते और रथ में जिस प्रकार ( धूः वृष्ण: उत्तरा ) धुरा बलवान् अश्व से अधिक ऊंची होती है उसी प्रकार ( धू: ) गृहस्थ या प्रजा को धारण करने में समर्थ स्त्री, ( वृष्णः ) बलवान्, वीर्यसेचक पुरुष की अपेक्षा ( उत्तरा एव इत् ) उत्कृष्ट गुणों से युक्त, अधिक आदर योग्य ही होती है। माता का मान पिता से अधिक है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मेधातिथि: काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१—३, ५ बृहती। ४, ७, ८, १०, १२ विराड् बृहती। ६, ९, ११, १४, १५ निचृद् बृहती। १३ आर्ची भुरिग बृहती। १६, १८ गायत्री। १७ निचृद् गायत्री। १९ अनुष्टुप्॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'मदच्युता मिथुना' सप्ती
पदार्थ
[१] पति-पत्नी तो (चित् घा) = निश्चय से इस गृहस्थ शकट के (सप्ती) = अश्व हैं। अश्वों के समान ये गृहस्थ शकट का ठीक से वहन करते हैं। (मदच्युता) = मद को छोड़नेवाले, अभिमान को न करनेवाले (मिथुना) = स्त्री पुमान् [ पति-पत्नी] ही मिलकर (रथं वहतः) = गृहस्थ-रथ को ठीक लक्ष्य- स्थान पर पहुँचाते हैं। [२] ऐसा होते हुए भी (वृष्णः) = वीर्य का सेचन करनेवाले से पुरुष (धूः) = गृहस्थ शकट की धुरा के समान यह स्त्री उत्तरा (एव इत्) = निश्चय से उत्कृष्ट है। रथ में अश्व से जैसे धुरा ऊपर होती है, इसी प्रकार पिता से माता का महत्त्व अधिक है।
भावार्थ
भावार्थ अभिमान को छोड़कर परस्पर मिलकर पति-पत्नी गृहस्थयज्ञ को पूर्ण करते हैं। माता का मान निश्चय से पिता से अधिक है।
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