ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 33/ मन्त्र 3
कण्वे॑भिर्धृष्ण॒वा धृ॒षद्वाजं॑ दर्षि सह॒स्रिण॑म् । पि॒शङ्ग॑रूपं मघवन्विचर्षणे म॒क्षू गोम॑न्तमीमहे ॥
स्वर सहित पद पाठकण्वे॑भिः । धृ॒ष्णो॒ इति॑ । आ । धृ॒षत् । वाज॑म् । द॒र्षि॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् । पि॒शङ्ग॑ऽरूपम् । म॒घ॒ऽव॒न् । वि॒ऽच॒र्ष॒णे॒ । म॒क्षु । गोऽम॑न्तम् । ई॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कण्वेभिर्धृष्णवा धृषद्वाजं दर्षि सहस्रिणम् । पिशङ्गरूपं मघवन्विचर्षणे मक्षू गोमन्तमीमहे ॥
स्वर रहित पद पाठकण्वेभिः । धृष्णो इति । आ । धृषत् । वाजम् । दर्षि । सहस्रिणम् । पिशङ्गऽरूपम् । मघऽवन् । विऽचर्षणे । मक्षु । गोऽमन्तम् । ईमहे ॥ ८.३३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 33; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord of universal vision, resolute will and irresistible action, ruler and commander of the world’s wealth, power and force, we pray, conceive, plan and bring about for the intelligent people of action and ambition a social order of golden beauty and progressive achievement, full of a hundred-fold prosperity of lands and cows, education and culture, and invincible will, strength and advancement free from indecision and delay in action.
मराठी (1)
भावार्थ
भौतिक ऐश्वर्य क्षात्रबलाने प्राप्त होते; परंतु त्याबरोबरच ब्राह्म किंवा आध्यात्मिक बलाची साधना हे लक्ष्यही ठेवले पाहिजे. ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (धृष्णो) बलवान् सेनापति! आप (सहस्रिणम्) सहस्रों सुखों से युक्त (धृषद् वाजम्) विजय प्रदान करने वाले ऐश्वर्य को (आ दर्षि) हमें चतुर्दिक् से दिलाते ही हैं। परन्तु (मघवन्) हे पूजनीय ऐश्वर्य के स्वामी! (विचर्षणे) विविध प्रकार की दर्शनशक्ति व विज्ञान युक्त प्रभु! हम (कण्वेभिः) बुद्धिमान् विद्वानों द्वारा अब (मक्षू) शीघ्र ही (पिशङ्गरूपम्) उज्ज्वल सुव्यवस्था में ढले हुए (गोमन्तम्) ज्ञान-विज्ञान के ऐश्वर्य की (ईमहे) कामना करते हैं ॥३॥
भावार्थ
क्षात्रबल से ही भौतिक ऐश्वर्य प्राप्त होता है; परन्तु साथ ही ब्राह्म अथवा आध्यात्मिक बल की साधना का लक्ष्य भी रखना अभीष्ट है ॥३॥
विषय
राजा और विद्वान् के कर्त्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
हे ( मघवन् ) उत्तम धनसम्पन्न ! हे ( विचर्षणे ) विविध प्रजाओं के ऊपर द्रष्टः ! हे (धृष्णो) दुष्टों के दलन करने हारे ! हम (पिशङ्गरूपं ) उज्वल, पीतरूप वाले और ( गोसन्तं ) भूमि से युक्त ( वाजं ) ऐश्वर्य की तुझ से ( मक्षु ) शीघ्र ही ( ईमहे ) याचना करते हैं और तू ( कण्वेभिः ) विद्वानों और वीरों द्वारा ( सहस्रिणं वाजं दर्षि ) सहस्त्रों सुखों, संख्याओं से युक्त ऐश्वर्य हमें दे। अथवा हे ( वि-चर्षणे ) विविध विद्याओं के द्रष्टः ! विद्वन् ! (पिशङ्ग-रूप) तेजस्वी, (गोमन्तं ) वेदवाणी के विद्वानों से ( मक्षु ) अति शीघ्र ( वाजम् ईमहे ) ज्ञान प्राप्त करें। और ( कण्वेभिः ) विद्वानों द्वारा ( सहस्रिणं वाजं दर्षि ) सहस्रों ऋचाओं से युक्त ज्ञान प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मेधातिथि: काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१—३, ५ बृहती। ४, ७, ८, १०, १२ विराड् बृहती। ६, ९, ११, १४, १५ निचृद् बृहती। १३ आर्ची भुरिग बृहती। १६, १८ गायत्री। १७ निचृद् गायत्री। १९ अनुष्टुप्॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
ज्ञान-बल-धन
पदार्थ
[१] हे (धृष्णो) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाले प्रभो ! (कण्वेभिः) = विद्वानों के द्वारा (आधृषत्) = आप हमारे शत्रुओं का धर्षण कीजिये। उनसे ज्ञान प्राप्त करके हम काम-क्रोध आदि शत्रुओं को जीतनेवाले बनें। आप हमारे लिये (सहस्रिणं वाजम्) = सहस्रों शत्रुओं का पराजय करने में समर्थ बल को दर्षि दीजिये। [२] हे (विचर्षणे) = [विद्रष्टः] हमारा विशेषरूप से ध्यान करनेवाले (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! हम (मक्षू) = शीघ्र (पिशङ्ग रूपम्) = उज्ज्वल रूपवाले, (गोमन्तम्) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाले धन को (ईमहे) = माँगते हैं। हमारे लिये आप उस धन को प्राप्त कराइये जो हमें तेजस्वी बनाये, हमारी इन्द्रियों को सशक्त करे। यह धन हमें विलास में ले जाकर अशक्त करनेवाला न हो ।
भावार्थ
भावार्थ- हम ज्ञानियों के सम्पर्क में ज्ञान को प्राप्त करके वासनाओं को कुचल डालें। प्रभु हमें हजारों शत्रुओं को पराभूत करनेवाले बल को दें। हमें वह धन दें, जो हमें तेजस्वी व प्रशस्त इन्द्रियोंवाला बनाये।
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