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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 63/ मन्त्र 12
    ऋषिः - प्रगाथः काण्वः देवता - देवाः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒स्मे रु॒द्रा मे॒हना॒ पर्व॑तासो वृत्र॒हत्ये॒ भर॑हूतौ स॒जोषा॑: । यः शंस॑ते स्तुव॒ते धायि॑ प॒ज्र इन्द्र॑ज्येष्ठा अ॒स्माँ अ॑वन्तु दे॒वाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्मे इति॑ । रु॒द्राः । मे॒हना॑ । पर्व॑तासः । वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑ । भर॑ऽहूतौ । स॒ऽजोषाः॑ । यः । शंस॑ते । स्तु॒व॒ते । धायि॑ । प॒ज्रः । इन्द्र॑ऽज्येष्टाः । अ॒स्मान् । अ॒व॒न्तु॒ । दे॒वाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्मे रुद्रा मेहना पर्वतासो वृत्रहत्ये भरहूतौ सजोषा: । यः शंसते स्तुवते धायि पज्र इन्द्रज्येष्ठा अस्माँ अवन्तु देवाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्मे इति । रुद्राः । मेहना । पर्वतासः । वृत्रऽहत्ये । भरऽहूतौ । सऽजोषाः । यः । शंसते । स्तुवते । धायि । पज्रः । इन्द्रऽज्येष्टाः । अस्मान् । अवन्तु । देवाः ॥ ८.६३.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 63; मन्त्र » 12
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 43; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord ruler of power and progress, for us, in our fight against suffering, may the Rudras, powers of justice and desperation, mighty generous clouds of shower, mountains and great men, all loving and cooperative, indeed whoever fast and strong may hasten and advance for the celebrant and worshipper, all the wisest and seniormost brilliant powers of generosity in nature and humanity, come and help us in our struggle for the conquest of darkness, want, evil and ignorance prevailing in society.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परदु:खहरण इत्यादी शुभकर्म अनुष्ठान करणाऱ्यांनी परस्पर साह्य करावे. ॥१२॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    इन्द्रनिकटे प्रार्थना क्रियते ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! वृत्रहत्ये=विघ्नविनाशके । भरहूतौ=संग्रामे । अस्मान् । देवाः श्रेष्ठा जनाः सदा अवन्तु=प्राप्नुवन्तु । ज्येष्ठाश्चास्मान् अवन्तु । रुद्राः=परमदुःखद्राविणः । हे मेहनाः=अनुग्रहवर्षितारः ! पर्वतासः=पर्वताः पूरणवन्तः प्रीणनवन्तो वा । सजोषाः=समानप्रीतिश्च जनः । यश्च शंसते=स्तुवते जनाय । धायि=धावति । यश्च पज्रः=बलवान् इत्येवंविधा जना अस्मानवन्तु ॥१२ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    इन्द्र के निकट प्रार्थना की जाती है ।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र=परमेश्वर ! (अस्मे) हमारे निकट (रुद्राः) पर-दुःखहारी जन वृत्रहत्ये+भरहूतौ=विघ्नविनाशक सांसारिक संग्राम के समय (अवन्तु) आवें (मेहनाः) दया और सुवचनों के वर्षा करनेवाले (पर्वतासः) ज्ञानादि से पूर्ण और प्रसन्न करनेवाले (सजोषाः) हमारे साथ समान प्रीति रखनेवाले (ज्येष्ठाः+देवाः) ज्येष्ठ श्रेष्ठ विद्वान् (अवन्तु) हमारे निकट आवें तथा (शंसते) ईश्वरीय प्रशंसक के और (स्तुवते) स्तावक जन के निकट (यः+धायि) जो दौड़ता है, (पज्रः) जो बलवान् हो, इस प्रकार के जन सदा हमको प्राप्त हों ॥१२ ॥

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    विषय

    त्यागी जनों से प्रार्थना।

    भावार्थ

    ( प्रः ) जो ( शंसते ) उत्तम प्रशंसा करते हुए और (स्तुवते) स्तुति करते हुए मनुष्य के लिये ( पज्रः ) बलवान् दृढ़ रूप से ( धायि ) सूर्यवत् स्थित है और ( रुद्राः ) गर्जना करने वाले ( मेहना ) वर्षाकारी, ( पर्वतासः ) मेघों के समान ( रुद्राः ) दुष्टों को रुलाने वाले ( मेहनाः ) मेरा इसमें कुछ स्वार्थ नहीं इस प्रकार की त्याग भावना वाले, निःसंग ( पर्वतासः ) पर्वतवत् अचल, प्रजापालक जन ( वृत्र-हत्ये ) दुष्टों के हनन करने और ( भर-हूतौ ) यज्ञ के आहुति वा पोषण के कार्य में योग देने के अवसर में ( सजोषाः ) सप्रेम होकर ( देवाः ) विद्वान् विजयेच्छुक जन ( अस्मान् ) हमें ( अवन्तु ) रक्षा करें। त्रिचत्वारिंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रगाथः काण्व ऋषिः॥ १—११ इन्द्रः। १२ देवा देवताः॥ छन्द:—१, ४, ७ विराडनुष्टुप्। ५ निचुदनुष्टुप्। २, ३, ६ विराड् गायत्री। ८, ९, ११ निचृद् गायत्री। १० गायत्री। १२ त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    इन्द्रज्येष्ठाः देवाः अस्मान् अवन्तु

    पदार्थ

    [१] (मेहना) = शरीर में शक्ति के सेचन के द्वारा (पर्वतासः) = हमारा पूरण करनेवाले (रुद्राः) = रोगों के द्रावक - दूर भगानेवाले प्राण वृत्रहत्ये वासना के विनाश के निमित्तभूत (भरहूतौ) = संग्राम में पुकार के होने पर (अस्मे) = हमारे लिए (सजोषा) = समान रूप से प्रीतिवाले हों। प्राणों की अनुकूलता से हम शरीर में शक्ति का सेचन करते हुए रोगशून्य व वासनाशून्य बनते हैं। [२] (यः) = जो (शंसते) = ज्ञान की वाणियों का शंसन करनेवाले तथा (स्तुवते) = स्तवन करनेवाले के लिए (पज्रः) = शक्तिशाली होता हुआ (धायि) = धारण किया जाता है वह इन्द्र, तथा (इन्द्रज्येष्ठाः देवाः) = इन्द्र है ज्येष्ठ जिनमें वे सब देव (अस्मान् अवन्तु) = हमारा रक्षण करें। सब देवों के साथ महादेव हमारे लिए कल्याणकर हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणयाम द्वारा अंग-प्रत्यंग को शक्ति से सिक्त करके हम रोगों व वासनाओं को जीतें । शक्ति के धारण करनेवाले प्रभु सब देवों के साथ हमारा कल्याण करें। अगले सूक्त के भी ऋषि 'प्रगाथ काण्व' व देवता 'इन्द्र' हैं-

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