ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 63/ मन्त्र 2
दि॒वो मानं॒ नोत्स॑द॒न्त्सोम॑पृष्ठासो॒ अद्र॑यः । उ॒क्था ब्रह्म॑ च॒ शंस्या॑ ॥
स्वर सहित पद पाठदि॒वः । मान॑म् । न । उत् । स॒द॒न् । सोम॑ऽपृष्ठासः । अद्र॑यः । उ॒क्था । ब्रह्म॑ । च॒ । शंस्या॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवो मानं नोत्सदन्त्सोमपृष्ठासो अद्रयः । उक्था ब्रह्म च शंस्या ॥
स्वर रहित पद पाठदिवः । मानम् । न । उत् । सदन् । सोमऽपृष्ठासः । अद्रयः । उक्था । ब्रह्म । च । शंस्या ॥ ८.६३.२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 63; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 42; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 42; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
The mountains overgrown with soma do not forsake the spirit and presence of divinity since it is manifested there. Hence hymns of praise and songs of adoration ought to be sung in honour of divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! जेव्हा स्थावरही परमेश्वराचे महत्त्व दर्शवीत आहेत तेव्हा तुम्ही वाणी व ज्ञान प्राप्त करूनही जर त्याची महान कीर्ती गात नाही, तर तुम्ही महा कृतघ्न आहात. ॥२॥
संस्कृत (1)
विषयः
इन्द्रः स्तूयते ।
पदार्थः
सोमपृष्ठासः=सोमलतादिसंयुक्तपृष्ठाः । अद्रयः=स्थावराः पर्वता अपि । तं दिवोमानं=द्युलोकस्य निर्मातारं-ईश्वरम् । नोत्सदन्=न त्यक्तवन्तः=न च त्यजन्ति । तर्हि मनुष्यास्तं कथं त्यजेयुरित्याशयः । अतो हे मनुष्याः ! तमुद्दिश्य । उक्था=उक्थानि=पवित्राणि वाक्यानि । ब्रह्म च= ब्रह्माणि=स्तोत्राणि च । युष्माभिः । शंस्या=शंसनीयानि= वक्तव्यानीत्यर्थः ॥२ ॥
हिन्दी (3)
विषय
इन्द्र की स्तुति करते हैं ।
पदार्थ
हे मनुष्यों ! (सोमपृष्ठासः) सोमलता आदि ओषधियों से संयुक्त पृष्ठवाले (अद्रयः) स्थावर पर्वत आदिकों ने भी उस (दिवः+मान्म्) द्युलोक के निर्माणकर्त्ता और प्रकाशप्रदाता को (न+उत्सदन्) नहीं त्यागा है और न त्यागते हैं, क्योंकि वे पर्वत आदि भी नाना पदार्थों से भूषित हो उसी के महत्त्व को दिखला रहे हैं । तब मनुष्य उसको कैसे त्यागे, यह इसका आशय है । अतः हे बुद्धिमानो ! उसके लिये (उक्था) पवित्र वाक्य और (ब्रह्म+च) स्तोत्र (शंस्या) वक्तव्य है । अर्थात् उसकी प्रसन्नता के लिये तुम अपनी वाणी को प्रथम पवित्र करो और उसके द्वारा उसकी स्तुति गाओ ॥२ ॥
भावार्थ
हे मनुष्यों ! जब स्थावर भी उसका महत्त्व दिखला रहे हैं, तब तुम वाणी और ज्ञान प्राप्त करके भी यदि उसकी महती कीर्ति को न दिखलाते, गाते, तो तुम महा कृतघ्न हो ॥२ ॥
विषय
प्रभु वा शासक का सर्वोपरि पद।
भावार्थ
जिस प्रकार ( अद्रयः ) मेघ ( सोम-पृष्ठासः ) जल वर्षणकारी होकर भी (दिवः मानं न उत् सदन्ति) सूर्य का पैमाना नहीं पाते, वा ऊपर उठकर भी सूर्य तक नहीं जा सकते उसी प्रकार ( सोम-पृष्ठासः ) अभिषिक्त राजा वा नायक को अपनी पीठ पर रखने वाले, तदधीन ( अद्रयः ) सेना के जन ( दिवः मानं नः उत् सदन् ) तेजस्वी राजा के मान-प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं हो सकते, वे उससे उच्च पद नहीं पा सकते। इसी प्रकार ( सोम-पृष्ठासः ) सोम अर्थात् सर्वोत्पादक प्रभु के भक्त ( अद्रयः ) अविनाशी, धर्म मेघस्थ योगीजन वा ‘सोम’, वीर्य द्वारा पुष्ट, ऊर्ध्वरेता जन ( दिवः मानं ) ज्ञानमय तेजोमय प्रभु के ज्ञान, वेद को ( न उत् सदन् ) नहीं छोड़ सकते। वह प्रभु का ज्ञान ( उक्था ) वचन योग्य उत्तम मन्त्र ( ब्रह्म च ) महान् वेद ( शंस्या ) स्तुति करने, उपदेश देने योग्य होते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रगाथः काण्व ऋषिः॥ १—११ इन्द्रः। १२ देवा देवताः॥ छन्द:—१, ४, ७ विराडनुष्टुप्। ५ निचुदनुष्टुप्। २, ३, ६ विराड् गायत्री। ८, ९, ११ निचृद् गायत्री। १० गायत्री। १२ त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
सोमपृष्ठासः अद्रयः
पदार्थ
[१] (सोमपृष्ठासः) = सोम [वीर्य] शक्ति को अपना आधार बनानेवाले (अद्रयः) = उपासक (दिवः मानं) = ज्ञान के निर्माता प्रभु को (न उत्सदन्) = छोड़कर दूर नहीं जाते। ये सोमरक्षक उपासक अवश्य प्रभु को पानेवाले बनते हैं। [२] इनके जीवन में (उक्था) = स्तोत्र (च) = और (ब्रह्म) = ज्ञान के वचन (शंस्या) = शंसनीय होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोम का रक्षण करनेवाले उपासक अवश्य प्रभु को प्राप्त करते हैं। ये स्तोत्रों व ज्ञानवचनों का उच्चारण करते हैं।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal