ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 97/ मन्त्र 11
समीं॑ रे॒भासो॑ अस्वर॒न्निन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॑ । स्व॑र्पतिं॒ यदीं॑ वृ॒धे धृ॒तव्र॑तो॒ ह्योज॑सा॒ समू॒तिभि॑: ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । ई॒म् । रे॒भासः॑ । अ॒स्व॒र॒न् । इन्द्र॑म् । सोम॑स्य । पी॒तये॑ । स्वः॑ऽपतिम् । यत् । ई॒म् । वृ॒धे । धृ॒तऽव्र॑तः । हि । ओज॑सा । सम् । ऊ॒तिऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
समीं रेभासो अस्वरन्निन्द्रं सोमस्य पीतये । स्वर्पतिं यदीं वृधे धृतव्रतो ह्योजसा समूतिभि: ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । ईम् । रेभासः । अस्वरन् । इन्द्रम् । सोमस्य । पीतये । स्वःऽपतिम् । यत् । ईम् । वृधे । धृतऽव्रतः । हि । ओजसा । सम् । ऊतिऽभिः ॥ ८.९७.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 97; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 38; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 38; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Let all intelligent people cordially welcome and felicitate Indra for the protection of the honour, integrity, beauty and culture of the nation of humanity, and when they, together, exhort the guardian of their happiness and welfare to advance the beauty of corporate life, then, committed to the values, laws and ideals of the nation, he feels exalted with lustrous courage and positive measures of defence and protection.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रजा पूर्व मंत्रोक्त गुणसंपन्न राजाकडून राष्ट्राच्या ऐश्वर्याच्या रक्षणाची प्रार्थना करते. तोही कर्मठ बनून, ओजस्वी व पालक बनून राष्ट्राच्या ऐश्वर्याचे रक्षण करतो. ॥११॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ईम्) इस (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् शासक को (रेभासः) बहुश्रुत स्तोता विद्वान्, (सोमस्य पीतये) ऐश्वर्य की रक्षार्थ (सम्, अस्वरन्) सम्यक्तया पुकारते हैं। तथा च (यत) जब (ईम्) इस (स्वर्पतिम्) धनस्वामी से (वृधे) अपने वर्धन हेतु प्रार्थना करते हैं तब (धृतव्रतः) कर्मठ बना वह राजा (हि) निश्चय ही (ओजसा) बल तथा (ऊतिभिः) पालन शक्तियों से (सम्) सम्पन्न होता है॥११॥
भावार्थ
प्रजाजन पहले मन्त्र में वर्णित गुणसम्पन्न शासक से राष्ट्र के ऐश्वर्य की रक्षार्थ प्रार्थना करते हैं। वह भी कर्मठ बन, ओजस्वी तथा पालक होकर राष्ट्र के ऐश्वर्य की रक्षा करता है॥११॥
विषय
राजा के कर्त्तव्य के साथ साथ परमेश्वर के गुणों का वर्णन।
भावार्थ
(रेभासः) उत्तम स्तुतिकर्त्ता, उपदेष्टा जन (सोमस्य पीतये ) ऐश्वर्य वा जगत् के पालन के लिये ( इन्द्रम् ) ऐश्वर्यवान् ( स्वः-पतिम् ) सब सुखों के स्वामी की (ईम्) सब ओर से, सब प्रकार से ( सम् अस्वरन् ) मिलकर स्तुति, प्रार्थना करें और ( यत् ईं वृधे सम् अस्वरन् ) जब वे इसको अपनी वृद्धि के लिये प्रार्थना करें तब वह (ऊतिभिः) अपने रक्षा-साधनों और ( ओजसा ) बल पराक्रम से ( धृत-व्रतः ) व्रतो कर्मों और नियमों को धारण करने वाला हो और उन को ( सम् अस्वरन् ) अच्छी प्रकार शासन करे। ( २ ) परमेश्वर अपनी शक्तियों से जगत् के सब नियमों को धारता है, सब अपनी वृद्धि और जगत के पालनार्थ उस की स्तुति करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रेभः काश्यप ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ११ विराड् बृहती। २, ६, ९, १२ निचृद् बृहती। ४, ५, बृहती। ३ भुरिगनुष्टुप्। ७ अनुष्टुप्। १० भुरिग्जगती। १३ अतिजगती। १५ ककुम्मती जगती। १४ विराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
स्तुति से 'सोमरक्षण, प्रकाश वृद्धि व पुण्य का लाभ'
पदार्थ
[१] (रेभासः) = स्तोता लोग (ईं इन्द्रम्) = इस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (सोमस्य पीतये) = सोम के रक्षण के लिये (सं अस्वरन्) = स्तुत करते हैं। प्रभु-स्तवन द्वारा, वासनाओं से आक्रान्त न होते हुए ये स्तोता सोमरक्षण कर पाते हैं। [२] (स्वः पतिम्) = सुख व प्रकाश के स्वामी (ईम्) = इस प्रभु को (यद्) = जब ये स्तुत करते हैं, तो वे प्रभु (वृधे) = इनकी वृद्धि के लिये होते हैं। वे प्रभु (हि) = निश्चय से (ओजसा) = ओजस्विता के साथ तथा (ऊतिभिः) = रक्षणों के साथ (धृतव्रतः) = इनके उत्तम कर्मों का धारण करते हुए (सम्) [गच्छते] = इनके साथ संगत होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु का स्तवन करें। प्रभु हमारे जीवन में सोम का रक्षण करेंगे, प्रकाश को प्राप्त करायेंगे, अपने रक्षणों व ओज से हमारे व्रतों का रक्षण करेंगे। इस प्रकार हमारी वृद्धि का कारण बनेंगे।
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