ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 97/ मन्त्र 13
तमिन्द्रं॑ जोहवीमि म॒घवा॑नमु॒ग्रं स॒त्रा दधा॑न॒मप्र॑तिष्कुतं॒ शवां॑सि । मंहि॑ष्ठो गी॒र्भिरा च॑ य॒ज्ञियो॑ व॒वर्त॑द्रा॒ये नो॒ विश्वा॑ सु॒पथा॑ कृणोतु व॒ज्री ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । इन्द्र॑म् । जो॒ह॒वी॒मि॒ । म॒घऽवा॑नम् । उ॒ग्रम् । स॒त्रा । दधा॑नम् । अप्र॑तिऽस्कुतम् । शवां॑सि । मंहि॑ष्ठः । गीः॒ऽभिः । आ । च॒ । य॒ज्ञियः॑ । व॒वर्त॑त् । रा॒ये । नः॒ । विश्वा॑ । सु॒ऽपथा॑ । कृ॒णो॒तु॒ । व॒ज्री ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमिन्द्रं जोहवीमि मघवानमुग्रं सत्रा दधानमप्रतिष्कुतं शवांसि । मंहिष्ठो गीर्भिरा च यज्ञियो ववर्तद्राये नो विश्वा सुपथा कृणोतु वज्री ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । इन्द्रम् । जोहवीमि । मघऽवानम् । उग्रम् । सत्रा । दधानम् । अप्रतिऽस्कुतम् । शवांसि । मंहिष्ठः । गीःऽभिः । आ । च । यज्ञियः । ववर्तत् । राये । नः । विश्वा । सुऽपथा । कृणोतु । वज्री ॥ ८.९७.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 97; मन्त्र » 13
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 38; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 38; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
That Indra, ruler of the world, I invoke and address, illustrious, pious and true, wielder of unopposed powers, and I pray may the most generous and adorable lord of thunderous power, in response to our voice, turn to us constantly and clear our paths of advancement for the achievement of wealth, power, honour and excellence of the world.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रजा ऐश्वर्यासाठी राजाच्या साह्याची अपेक्षा करते; परंतु व्यक्तिश: उपासकाने राजांचाही राजा असलेल्या परमेश्वराचेच गुणगान करावे. प्रभू तर सर्वात श्रेष्ठ व संपूर्ण आहे. त्याच्या गुणांना धारण करण्याचा प्रयत्न करणारा साधक स्वत: जाणतो की, हे ऐश्वर्य कोणकोणत्या शोभादायक मार्गानी प्राप्त होऊ शकते. ॥१३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
[मैं उपासक तो] (तम्) उस विख्यात (मघवानम्) परम आदरणीय ऐश्वर्य-अधिपति, (उग्रम्) तेजस्वी, (सत्रा) सत्य (शवांसि) बलों से (दधानम्) युक्त (अप्रतिष्कुतम्) निर्विरोध विद्यमान (इन्द्रम्) प्रभु से (जोहवीमि) बार-बार प्रार्थना करता हूँ। वह (मंहिष्ठः) अतिशय उदार है (च) और (गीर्भिः) पवित्र वाणी द्वारा (यज्ञियः) संगति योग्य (आ ववर्तत्) सर्वथा विद्यमान है। वह (वज्री) न्यायरूप दण्डधर (राये) दानशीलता के प्रयोजनवाले ऐश्वर्य हेतु (नः) हमारे (विश्वा) सभी (सुपथा) शुभ मार्ग (कृणोतु) सिद्ध करता है॥१३॥
भावार्थ
प्रजा ऐश्वर्य के लिये शासक की सहायता चाहे। किन्तु व्यक्तिशः उपासक शासकों के भी राजा परमात्मा का ही गुण गाएं। प्रभु सर्वोपरि है ही, उसके गुणों को धारने का यत्न करने वाला साधक स्वयं जान जाता है कि आदरणीय ऐश्वर्य किन-किन शुभ मार्गों से प्राप्य है॥१३॥
विषय
राजा के कर्त्तव्य के साथ साथ परमेश्वर के गुणों का वर्णन।
भावार्थ
मैं ( तम् ) इस ( इन्द्रं ) ऐश्वर्यवान् ( मघवानम् ) उत्तम धनों के स्वामी ( उग्रम् ) बलवान्, ( सत्रा शवांसि ) सच्चे बलों को ( दधानम् ) धारण करने वाले ( अप्रतिष्कुतं ) जिसके किये को कोई मेट न सके, जिस के बल को कोई रोकने वाला नहीं उस को (जोहवीमि) बुलाता हूं, उसी से प्रार्थना करूं। वही ( मंहिष्ठः ) सब से बड़ा दानी ( यज्ञियः च ) और पूज्य है। वह ( गीर्भिः आववर्त्तत् ) उत्तम वाणियों से शासन करता है। वह ( वज्री ) बलवान्, वीर्यवान्, शक्तिमान् स्वामी, ( राये ) ऐश्वर्य के प्राप्त करने के लिये ( विश्वा ) सब प्रकार के ( सुपथा ) उत्तम मार्ग ( कृणोतु ) करे।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रेभः काश्यप ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ११ विराड् बृहती। २, ६, ९, १२ निचृद् बृहती। ४, ५, बृहती। ३ भुरिगनुष्टुप्। ७ अनुष्टुप्। १० भुरिग्जगती। १३ अतिजगती। १५ ककुम्मती जगती। १४ विराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
सुपथ से ऐश्वर्य प्राप्ति
पदार्थ
[१] (तम्) = उस (इन्द्रम्) = सर्वशक्तिमान् प्रभु को (जोहवीमि) = पुकारता हूँ। जो (मघवानम्) = ऐश्वर्यशाली हैं, (उग्रम्) = तेजस्वी हैं। (सत्रा) = सचमुच (शवांसि) = बलों को (दधानम्) = धारण कर रहे हैं अतएव (अप्रतिष्कुतम्) = शत्रुओं से अप्रतिरोधनीय हैं। [२] वे प्रभु (मंहिष्ठः) = दातृतम हैं, महान् दाता हैं, (च) = और (गीर्भिः) = ज्ञान की वाणियों से (यज्ञियः) = पूजनीय हैं। ये प्रभु (राये) = ऐश्वर्य को प्राप्त कराने के लिये (आववर्तत्) = हमें आभिमुख्येन प्राप्त हों। ये (वज्री) = वज्रहस्त प्रभु (नः) = हमारे लिये (विश्वा सुपथा) = सब सुमार्गों को (कृणोतु) = करें। हम विपथ से हटकर सदा सुमार्ग पर चलनेवाले बनें।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु को पुकारें। प्रभु ही हमारे सब शत्रुओं का संहार करते हैं। सब आवश्यक धनों को प्राप्त कराते हैं। हमारे मार्गों को सुपथ करते हैं, हमें विपथ से परावृत्त करते हैं।
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