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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 106 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 106/ मन्त्र 10
    ऋषिः - अग्निः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    सोम॑: पुना॒न ऊ॒र्मिणाव्यो॒ वारं॒ वि धा॑वति । अग्रे॑ वा॒चः पव॑मान॒: कनि॑क्रदत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमः॑ । पु॒ना॒नः । ऊ॒र्मिणा॑ । अव्यः॑ । वार॑म् । वि । धा॒व॒ति॒ । अग्रे॑ । वा॒चः । पव॑मानः । कनि॑क्रदत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोम: पुनान ऊर्मिणाव्यो वारं वि धावति । अग्रे वाचः पवमान: कनिक्रदत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमः । पुनानः । ऊर्मिणा । अव्यः । वारम् । वि । धावति । अग्रे । वाचः । पवमानः । कनिक्रदत् ॥ ९.१०६.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 106; मन्त्र » 10
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोमः) सर्वोत्पादकः सः (पुनानः) पवित्रयन् (ऊर्म्मिणा) स्वकीयानन्दप्रवाहैः (अव्यः) सर्वान्रक्षन् (वारम्) सद्गुणसम्पन्नजनं (विधावति) प्राप्नोति यश्च परमात्मा (अग्रे, वाचः) सर्वोत्कृष्टाध्यात्मिकविद्यात्मकवाणीं (कनिक्रदत्) गर्जयन् (पवमानः) पावयति ॥१०॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोमः) सर्वोत्पादक परमात्मा (पुनानः) पवित्र करते हुए (ऊर्मिणा) अपने आनन्द की लहरों से (अव्यः) सबकी रक्षा करता हुआ (वारं) सद्गुणसम्पन्न पुरुष को (विधावति) प्राप्त होते हैं। जो परमात्मा (अग्रे, वाचः) सर्वोपरि आध्यात्मिक विद्यारूप वाणी को (कनिक्रदत्) गर्जाता हुआ (पवमानः) पवित्र बनाता है ॥१०॥

    भावार्थ

    जो पुरुष सद्गुणसम्पन्न हैं, उनको परमात्मा अपने आनन्द में निमग्न करता है अर्थात् ब्रह्माम्बुधि में वे लोग अपने आपको सदैव शान्तिमय वारि से स्नान कराते हैं ॥१०॥

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    विषय

    वाचः अग्रे

    पदार्थ

    (सोम:) = सोम [वीर्यशक्ति] (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ (ऊर्मिणा) = प्रकाश के साथ (अव्यः) [अवेः] = रक्षक पुरुष के (वारम्) = जिसमें से वासनाओं का निवारण किया गया है, उस हृदय की ओर (विधावति) = विशिष्ट रूप से गतिवाला होता है। यह सोम पवित्र हृदय पुरुष को प्राप्त होता है। उसके जीवन को यह प्रकाशमय बना देता है। (कनिक्रदत्) = खूब ही उस प्रभु का आह्वान करता हुआ यह सोम (पवमानः) = हमें पवित्र बनाता हुआ (वाच:) = इस वेदवाणी से इस के द्वारा कर्तव्य मार्ग को जानता हुआ (अग्रे) = आगे और आगे बढ़ता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम जीवन को प्रकाशमय करता है, पवित्र करता है, प्रभु स्तवन की वृत्ति वाला बनाता है । वेदानुकूल मार्ग पर हमें आगे बढ़ाता है ।

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    विषय

    गुरुवत् प्रभु की उपासना।

    भावार्थ

    (ऊर्मिणा पुनानः) उत्तम उपदेशमय वेदज्ञान से (पुनानः) पवित्र होता हुआ (सोमः) जीव-आत्मा (अव्यः वारम्) सर्वरक्षक प्रभु के परम वरणीय रूप को, ज्ञान को शिष्य के तुल्य (वि धावति) विशेष रूप से प्राप्त करता है। वह (पवमानः) पवित्र होता हुआ (अग्रे) सर्व प्रथम (वाचः कनिक्रदत्) नाना वेदवाणियों, वा स्तुतियों का अभ्यास करे। इति दशमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषि:-१-३ अग्निश्चाक्षुषः। ४–६ चक्षुर्मानवः॥ ७-९ मनुराप्सवः। १०–१४ अग्निः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३, ४, ८, १०, १४ निचृदुष्णिक्। २, ५–७, ११, १२ उष्णिक् । ९,१३ विराडुष्णिक्॥ चतुदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, pure and purifying, protective and blissful, flowing by streams and sanctifying, roaring with ancient and original hymns of divine adoration, rushes to the heart core of the distinguished soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पुरुष सद्गुणसंपन्न असतात त्यांना परमात्मा आपल्या आनंदात निमग्न करतो. अर्थात, ब्रह्माम्बुधीमध्ये लोक आपल्या स्वत:ला सदैव शांतिमय वारीने स्नान करवितात. ॥१०॥

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