ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 106/ मन्त्र 8
तव॑ द्र॒प्सा उ॑द॒प्रुत॒ इन्द्रं॒ मदा॑य वावृधुः । त्वां दे॒वासो॑ अ॒मृता॑य॒ कं प॑पुः ॥
स्वर सहित पद पाठतव॑ । द्र॒प्साः । उ॒द॒ऽप्रुतः॑ । इन्द्र॑म् । मदा॑य । व॒वृ॒धुः॒ । त्वाम् । दे॒वासः॑ । अ॒मृता॑य । कम् । प॒पुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तव द्रप्सा उदप्रुत इन्द्रं मदाय वावृधुः । त्वां देवासो अमृताय कं पपुः ॥
स्वर रहित पद पाठतव । द्रप्साः । उदऽप्रुतः । इन्द्रम् । मदाय । ववृधुः । त्वाम् । देवासः । अमृताय । कम् । पपुः ॥ ९.१०६.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 106; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(तव, द्रप्साः) भवतः शीघ्रगतिकाः शक्तयः याश्च (उदप्रुतः) जलप्रवाहवत् वहनशीलास्ताः (इन्द्रम्) कर्मयोगिनः (मदाय) आनन्दाय (वावृधुः) वर्धन्ते (कम्) आनन्दमयं (त्वां) भवन्तं (देवासः) विद्वांसः (अमृताय) शाश्वतिकजीवनाय (पपुः) पिबन्ति ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(तव, द्रप्साः) तुम्हारी शीघ्र गतिवाली शक्तियें जो (उदप्रुतः) जलों के प्रवाह के समान बहती हैं, वे (इन्द्रं) कर्म्मयोगी के (मदाय) आनन्द के लिये (वावृधुः) बढ़ती हैं और (त्वां) तुम जो (कं) आनन्दस्वरूप हो, इससे (देवासः) विद्वान् लोग (अमृताय) सदा जीवन के लिये (पपुः) पीते हैं ॥८॥
भावार्थ
ब्रह्मानन्द वा ब्रह्मामृतरूपी रस, जो सब रसों से अधिक स्वादु है, उसका पान ब्रह्मपरायण ज्ञानयोगी और कर्मयोगी ही कर सकते हैं, अन्य नहीं ॥८॥
विषय
अमृताय कं पपुः
पदार्थ
हे सोम ! (तव) = तेरे (द्रप्सा:) = [Drops ] सोमकण (उदप्रुतः) = [आपः रेतो भूत्वा०] रेतस् [शक्ति] को सारे शरीर में प्राप्त करानेवाले हैं। ये (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय पुरुष को (मदाय) = उल्लास के लिये (वावृधुः) = बढ़ाते हैं । इनके रक्षण से जीवन सदा सोत्साह बना रहता है। (देवासः) = देववृत्ति के पुरुष (त्वाम्) = तुझे (अमृताय) = अमृतत्व की प्राप्ति के लिये (कम्) = सुख देनेवाले को (पपुः) = अपने अन्दर ही पीने का प्रयत्न करते हैं। शरीर में सुरक्षित सोम अमृतत्व व सुख का साधन बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम 'उल्लास, अमृतत्व व सुख' को देता है ।
विषय
उसकी उपासना।
भावार्थ
(तव द्वप्सा) तेरे रस, (उद-प्रुतः) जल के समान ही अपने स्रोत से वेगपूर्वक निकलने वाले हैं। वे (मदाय) आनन्द प्राप्ति के लिये (इन्द्रं वृधुः) आत्मा की शक्ति को बढ़ाते हैं। (देवासः) विद्वान् जन (अमृता) अमृत, अविनाशी मोक्षानन्द प्राप्त करने के लिये (कं) सुखमय तेरा ही रस (पपुः) पान करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषि:-१-३ अग्निश्चाक्षुषः। ४–६ चक्षुर्मानवः॥ ७-९ मनुराप्सवः। १०–१४ अग्निः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३, ४, ८, १०, १४ निचृदुष्णिक्। २, ५–७, ११, १२ उष्णिक् । ९,१३ विराडुष्णिक्॥ चतुदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The streams of your peace, beauty and bliss swell like streams of water in flood, and the divines drink of the ecstasy for the attainment of immortality.
मराठी (1)
भावार्थ
ब्रह्मानंद किंवा ब्रह्मानंदरूपी रस जो सर्व रसापेक्षा अधिक मधुर आहे त्याचे पान ब्रह्मपरायण ज्ञानयोगी व कर्मयोगीच करू शकतात, इतर नाही. ॥८॥
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