ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 106/ मन्त्र 2
अ॒यं भरा॑य सान॒सिरिन्द्रा॑य पवते सु॒तः । सोमो॒ जैत्र॑स्य चेतति॒ यथा॑ वि॒दे ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । भरा॑य । सा॒न॒सिः । इन्द्रा॑य । प॒व॒ते॒ । सु॒तः । सोमः॑ । जैत्र॑स्य । चे॒त॒ति॒ । यथा॑ । वि॒दे ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं भराय सानसिरिन्द्राय पवते सुतः । सोमो जैत्रस्य चेतति यथा विदे ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । भराय । सानसिः । इन्द्राय । पवते । सुतः । सोमः । जैत्रस्य । चेतति । यथा । विदे ॥ ९.१०६.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 106; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अयं) अयं परमात्मा (सानसिः) सर्वैरुपास्यः (सोमः) सर्वोत्पादकः (सुतः) सर्वत्र विद्यमानः (यथाविदे) यथार्थज्ञानिने (भराय) स्वकर्तव्यपूर्णाय (जैत्रस्य) जयशीलाय (इन्द्राय) कर्मयोगिने (चेतति) बोधमुत्पादयति, स्वज्ञानेन च (पवते) पुनाति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अयम्) उक्त परमात्मा जो (सानसिः) सबका उपास्य देव है, (सोमः) सर्वोत्पादक है, (सुतः) सर्वत्र विद्यमान है, वह गुणसम्पन्न परमात्मा (यथाविदे) यथार्थज्ञानी के लिये (भराय) जो स्वकर्तव्य से भरपूर है, (जैत्रस्य) जो जयशील है, (इन्द्राय) कर्मयोगी है, उसको (चेतति) बोधन करता है और अपने ज्ञान द्वारा (पवते) पवित्र करता है ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा विजयी पुरुषों को धर्म से जो विजय करनेवाले हैं, उनको अवश्यमेव अपने ज्ञान से बोधन करता है और अपने ऐश्वर्य्य से उन्हें सदैव उत्साहित बनाता है ॥२॥
विषय
भराय सानसिः
पदार्थ
(अयम्) = यह सोम (भराय) = जीवन संग्राम के लिये (सानसिः) = सम्भजनीय है । इसके रक्षण से ही हम जीवन संग्राम में विजयी बन पायेंगे। (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (पवते) = प्राप्त होता है । (यथा विदे) = यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति के लिये (सोमः) = शरीर में सुरक्षित सोम (जैत्रस्य) = उस विजयशील प्रभु का (चेतति) = ज्ञान प्राप्त करता है। सोमरक्षण से यह सोमी पुरुष ज्ञान दीप्ति को प्राप्त करता हुआ प्रभु को जाननेवाला बनता है। यह ज्ञान ही यथार्थ ज्ञान का कारण बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ - जितेन्द्रिय पुरुष से सुरक्षित सोम जीवन संग्राम में हमें विजयी बनाता है यह उस विजेता प्रभु का भी ज्ञान प्राप्त कराता है, जिससे हम यथार्थ ज्ञान को प्राप्त कर पाते हैं।
विषय
यथार्थ ज्ञान के लिये प्रभु की उपासना।
भावार्थ
(अयं) यह (सानसिः) भजन, सेवन करने वाला (सुतः) उत्पन्न जीव, (भराय इन्द्राय) सर्वपोषक प्रभु परमेश्वर को प्राप्त करने (यथा विदे) यथार्थ रूप से जानने के लिये (सोमः) जीव (जैत्रस्य) सब कष्टों पर विजय पाने वाले उसी परमेश्वर का (चेतति) स्मरण करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषि:-१-३ अग्निश्चाक्षुषः। ४–६ चक्षुर्मानवः॥ ७-९ मनुराप्सवः। १०–१४ अग्निः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३, ४, ८, १०, १४ निचृदुष्णिक्। २, ५–७, ११, १२ उष्णिक् । ९,१३ विराडुष्णिक्॥ चतुदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This Soma, competent and victorious for the battle of life, when realised, flows for Indra, the winning soul, and enlightens it about the world’s reality as it is and as it knows.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा विजयी पुरुषांना धर्माने विजय प्राप्त करून देणारा आहे. त्यांना अवश्य आपल्या ज्ञानाने बोधन करतो व आपल्या ऐश्वर्याने त्यांना सदैव उत्साहित करतो. ॥२॥
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