ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 106/ मन्त्र 11
धी॒भिर्हि॑न्वन्ति वा॒जिनं॒ वने॒ क्रीळ॑न्त॒मत्य॑विम् । अ॒भि त्रि॑पृ॒ष्ठं म॒तय॒: सम॑स्वरन् ॥
स्वर सहित पद पाठधी॒भिः । हि॒न्व॒न्ति॒ । वा॒जिन॑म् । वने॑ । क्रीळ॑न्तम् । अति॑ऽअविम् । अ॒भि । त्रि॒ऽपृ॒ष्ठम् । म॒तयः॑ । सम् । अ॒स्व॒र॒न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
धीभिर्हिन्वन्ति वाजिनं वने क्रीळन्तमत्यविम् । अभि त्रिपृष्ठं मतय: समस्वरन् ॥
स्वर रहित पद पाठधीभिः । हिन्वन्ति । वाजिनम् । वने । क्रीळन्तम् । अतिऽअविम् । अभि । त्रिऽपृष्ठम् । मतयः । सम् । अस्वरन् ॥ ९.१०६.११
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 106; मन्त्र » 11
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(धीभिः) स्तुतिभिः (वाजिनम्) बलस्वरूपं तं विद्वांसः (हिन्वन्ति) सर्वोत्कृष्टत्वेन वर्णयन्ति (अत्यविम्) यः परमात्मा सर्वेषां रक्षकः (वने, क्रीळन्तम्) सर्वत्र जगति विद्यमानः (त्रिपृष्ठम्) लोकत्रयम्, कालत्रयम्, सवनत्रयमित्यादिसर्वत्रिकेषु विराजते तं च (मतयः) बुद्धिमन्तः (समस्वरन्) स्तुवन्ति ॥११॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(धीभिः) स्तुतियों द्वारा (वाजिनम्) उस बलस्वरूप को (हिन्वन्ति) सर्वोपरिरूप से वर्णन करते हैं। जो परमात्मा (अत्यविं) सबकी रक्षा करनेवाला है (वने क्रीळन्तम्) सर्वत्र विद्यमान है, (त्रिपृष्ठं) तीनों लोक, तीनों काल और तीनों सवन इत्यादि सर्व त्रिकों में विद्यमान है, उसकी (मतयः) बुद्धिमान् लोग (समस्वरन्) स्तुति करते हैं ॥११॥
भावार्थ
परमात्मा कालातीत है अर्थात् भूत, भविष्यत् और वर्तमान ये तीनों काल उसकी इयत्ता अर्थात् हद्द नहीं बाँध सकते। तात्पर्य यह है कि काल की गति कार्य्य पदार्थों में है, कारणों में नहीं, वा यों कहो कि नित्य पदार्थों में काल का व्यवहार नहीं होता, किन्तु अनित्यों में होता है, इसी अभिप्राय से परमात्मा को यहाँ कालातीतरूप से वर्णन किया है ॥११॥
विषय
वने क्रीडन्तम्
पदार्थ
(धीभि) = ज्ञानपूर्वक कर्मों के द्वारा (वाजिनं) = शक्ति का संचार करनेवाले सोम को (हिन्वन्ति) = शरीर में सर्वत्र प्रेरित करते हैं । उस सोम को प्रेरित करते हैं, जो (वने) = उपासक के जीवन में (क्रीडन्तम्) = क्रीडा को करता है, उसके जीवन को क्रीड़क की मनोवृत्ति वाला [sport's man like spirit] बनाता है । (अत्यविम्) = अतिशयेन रक्षक है। इस त्रिपृष्ठम् ' शरीर, मन व बुद्धि' तीनों के आधारभूत सोम को (मतयः) = मननपूर्वक स्तुति करनेवाले लोग (अभिसमस्वरन्) = सदा प्रातः - सायं स्तुत करते हैं। दिन के प्रारम्भ में भी, तथा दिन की समाप्ति पर रात्रि के प्रारम्भ में भी [अभि] सोम के महत्व का स्मरण करते हुए वे इसे सुरक्षित रखते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ–सोम शक्ति देता है, क्रीडक की मनोवृत्ति को प्राप्त कराता है, रक्षक है, 'शरीर, मन व बुद्धि' तीनों का आधार बनता है ।
विषय
उसकी स्तुति।
भावार्थ
(मतयः) ज्ञानी जन (वाजिनम्) ज्ञानी, बलवान्, परमैश्वर्यवान् (वने क्रीड़न्तं) जीवादि से सेवनीय, जगत् में बालवत् अनायास चेष्टाएं करने वाले, (अति-अविम्) पृथ्वी वा सूर्य से भी अति अधिक महान् (त्रि-पृष्ठम् अमि) तीनों लोकों में व्यापक उस प्रभु को लक्ष्य करके (सम् अस्वरन्) उसकी स्तुति करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषि:-१-३ अग्निश्चाक्षुषः। ४–६ चक्षुर्मानवः॥ ७-९ मनुराप्सवः। १०–१४ अग्निः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३, ४, ८, १०, १४ निचृदुष्णिक्। २, ५–७, ११, १२ उष्णिक् । ९,१३ विराडुष्णिक्॥ चतुदशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Men of distinguished mind, adoring Soma with holy thoughts, words and action, invoke and celebrate all protective Soma, victorious spirit and cosmic energy, playing in the beautiful world over three regions of heaven, earth and the skies.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा कालातीत आहे. अर्थात, भूत, भविष्य व वर्तमान हे तीनही काळ त्याची सीमा बांधू शकत नाहीत. तात्पर्य हे की काळाची गती कार्य पदार्थात आहे. कारणामध्ये नाही किंवा नित्य पदार्थात काळाची गती नसते; परंतु अनित्य पदार्थात असते. याच अभिप्रायाने परमात्म्याला येथे कालातीत रूपाने वर्णिलेले आहे. ॥११॥
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