ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 110/ मन्त्र 11
ऋषिः - त्रयरुणत्रसदस्यू
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
ए॒ष पु॑ना॒नो मधु॑माँ ऋ॒तावेन्द्रा॒येन्दु॑: पवते स्वा॒दुरू॒र्मिः । वा॒ज॒सनि॑र्वरिवो॒विद्व॑यो॒धाः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । पु॒ना॒नः । मधु॑ऽमान् । ऋ॒तऽवा॑ । इन्द्रा॑य । इन्दुः॑ । प॒व॒ते॒ । स्वा॒दुः । ऊ॒र्मिः । वा॒ज॒ऽसनिः॑ । व॒रि॒वः॒ऽवित् । व॒यः॒ऽधाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष पुनानो मधुमाँ ऋतावेन्द्रायेन्दु: पवते स्वादुरूर्मिः । वाजसनिर्वरिवोविद्वयोधाः ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । पुनानः । मधुऽमान् । ऋतऽवा । इन्द्राय । इन्दुः । पवते । स्वादुः । ऊर्मिः । वाजऽसनिः । वरिवःऽवित् । वयःऽधाः ॥ ९.११०.११
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 110; मन्त्र » 11
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एषः) उक्तगुणसम्पन्नः परमात्मा (पुनानः) सर्वं पवित्रयन् (मधुमान्)आनन्दमयः (ऋतवा) ज्ञानादियज्ञस्वामी (इन्दुः) प्रकाशस्वरूपः (इन्द्राय) कर्मयोगिने (पवते) पवित्रतां प्रददाति (वाजसनिः) अन्नाद्यैश्वर्यप्रदः (वरिवोवित्) धनाद्यैश्वर्यज्ञः (वयोधाः) आयुषः प्रदाता (स्वादुः, ऊर्मिः) आनन्दवीचीर्वाहयति ॥११॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एषः) उक्त गुणसम्पन्न परमात्मा (पुनानः) सबको पवित्र करनेवाला (मधुमान्) आनन्दमय (ऋतवा) ज्ञानादि यज्ञों का स्वामी (इन्दुः) प्रकाशस्वरूप (इन्द्राय, पवते) कर्मयोगी के लिये पवित्रता प्रदान करनेवाला (वाजसनिः) अन्नादि ऐश्वर्य्यों का दाता (वरिवोवित्) धनादि ऐश्वर्य्य प्रदान करनेवाला (वयोधाः) आयु की वृद्धि करनेवाला (स्वादुः, ऊर्मिः) आनन्द की लहरें बहाता है ॥११॥
भावार्थ
इस मन्त्र का आशय यह है कि जो पुरुष उक्त गुणोंवाले परमात्मा की ओर क्रियाशक्ति तथा ज्ञानशक्ति से बढ़ते हैं, उनको परमपिता परमात्मा अवश्य प्राप्त होते और उन पर सब ओर से आनन्द की वृष्टि करते हैं ॥११॥
विषय
वरिवोवित् वयोधाः
पदार्थ
(एषः) = यह (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ [पूयमानः] (इन्दुः) = सोम (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (पवते) = प्राप्त होता है। यह (मधुमान्) = प्रशस्त माधुर्य वाला है, जीवन के सब व्यवहारों में माधुर्य का सञ्चार करता है । और (ऋतावा) = ऋतवाला होता है, हमारे जीवन से अनृत को दूर करता है । (स्वादुः) = यह हमारे लिये जीवन को सरस बनाता है और (ऊर्मिः) = हमारे लिये 'प्रकाश' बनता है । यह सुरक्षित सोम ही हृदय को पवित्र करके अन्तःस्थित प्रभु के प्रकाश को प्राप्त कराता है । बुद्धि को तीव्र करके भी यह ज्ञान के प्रकाश का साधन बनता है । (वाजसनिः) = यह शक्ति को देता है । (वरिवः वित्) = सब कोशों के ऐश्वर्य को प्राप्त कराता है और (वयोधाः) = उत्कृष्ट जीवन का धारण कराता है।
भावार्थ
भावार्थ - जितेन्द्रिय पुरुष में सुरक्षित हुआ हुआ सोम 'माधुर्य, ऋत, आनन्द, प्रकाश, शक्ति, ऐश्वर्य व दीर्घ उत्कृष्ट जीवन' को सिद्ध करता है ।
विषय
सर्वशासक तेजस्वी दयालु।
भावार्थ
(सोमः) सोम, वह सबका शासक प्रभु (अव्यये) अविनाशी (वारे) परम वरणीय रूप में (पुनानः) प्रकट होता हुआ, (शिशुः न क्रीडन्) बालकवत् जगत् के सर्जन-संहार आदि कर्म अनायास करता हुआ, (पवमानः) जगत् भर को चलाता हुआ, (सहस्र-धारः) सहस्रों शक्तियों और वाणियों वाला और (शत-वाजः) सैकड़ों ऐश्वर्यों वा बल पराक्रमों वाला (इन्दुः) परम तेजस्वी और दयार्द्र है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्र्यरुणत्रसदस्यू ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, १२ निचृदनुष्टुप्। ३ विराडनुष्टुप्। १०, ११ अनुष्टुप्। ४, ७,८ विराडुबृहती। ५, ६ पादनिचृद् बृहती। ९ बृहती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This Soma, pure and purifying, honeyed presence, ruling lord of truth and eternal law, bright and beautiful, treasurehold of power and sustenance, master of wealth and honour, mighty warrior and victor, pervades and vibrates as the sweetest presence in waves of ecstasy.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्राचा आशय हा आहे की, जे पुरुष अनंत गुणांनी युक्त परमेश्वराकडे वळतात त्यांची क्रियाशक्ती व ज्ञानशक्ती वाढते. त्यांना परमात्मा अवश्य प्राप्त होतो व त्यांच्यावर सगळीकडून आनंदाची वृष्टी करतो. ॥११॥
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