ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 110/ मन्त्र 2
ऋषिः - त्रयरुणत्रसदस्यू
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अनु॒ हि त्वा॑ सु॒तं सो॑म॒ मदा॑मसि म॒हे स॑मर्य॒राज्ये॑ । वाजाँ॑ अ॒भि प॑वमान॒ प्र गा॑हसे ॥
स्वर सहित पद पाठअनु॑ । हि । त्वा॒ । सु॒तम् । सो॒म॒ । मदा॑मसि । म॒हे । स॒म॒र्य॒ऽराज्ये॑ । वाजा॑न् । अ॒भि । प॒व॒मा॒न॒ । प्र । गा॒ह॒से॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अनु हि त्वा सुतं सोम मदामसि महे समर्यराज्ये । वाजाँ अभि पवमान प्र गाहसे ॥
स्वर रहित पद पाठअनु । हि । त्वा । सुतम् । सोम । मदामसि । महे । समर्यऽराज्ये । वाजान् । अभि । पवमान । प्र । गाहसे ॥ ९.११०.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 110; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे सर्वोत्पादक ! (महे, समर्यराज्ये) न्याययुक्ते महति राज्ये (त्वा, सुतं) साक्षात्कारं प्राप्तो भवान् (अनु, मदामसि) मामानन्दयतु (पवमान) हे सर्वपावक भगवन् ! (वाजान्, अभि) ऐश्वर्याण्यभिलक्ष्य (प्र, गाहसे) प्राप्नोति माम् ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे सोमगुणसम्पन्न परमात्मन् ! (महे, समर्यराज्ये) न्याययुक्त बड़े राज्य में (त्वा, सुतं) साक्षात्कार को प्राप्त आप (अनु, मदामसि) हमको आनन्दित करें। (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले भगवन् ! (वाजान्, अभि) ऐश्वर्य्यों को लक्ष्य रखकर (प्र, गाहसे) हमको प्राप्त हों ॥२॥
भावार्थ
मन्त्र में ऐश्वर्य्यों के लक्ष्य का तात्पर्य्य यह है कि ईश्वर में आध्यात्मिक तथा आधिभौतिक दोनों प्रकार के ऐश्वर्य्य हैं। जो पुरुष मुक्तिसुख को लक्ष्य रखते हैं, उनको निःश्रेयसरूप आध्यात्मिक ऐश्वर्य्य प्राप्त होता है और जो सांसारिक सुख को लक्ष्य रखकर ईश्वरपरायण होते हैं, उनको परमात्मा अभ्युदयरूप आधिभौतिक ऐश्वर्य्य प्रदान करते हैं ॥२॥
विषय
वाजान् अभि
पदार्थ
हे (सोम) = वीर्य ! (सुतं त्वा हि अनुमदामसि) = उत्पन्न हुए हुए तेरे अनुपात में ही आनन्द का अनुभव करते हैं। जितना जितना शरीर में तेरा उत्पादन होता है, उतना उतना ही जीवन आनन्दमय बनता है। तेरे उत्पादन से हमारा निवास (महे) = महत्त्वपूर्ण (समर्यराज्ये) = [सम् अर्य राज्ये] उत्तम स्वामी वाले इस शरीर राज्य में होता है । सोमरक्षण के होने पर इन्द्रियों का प्रभुत्व न होकर आत्मा का प्रभुत्व होता है। आत्मा 'इन्द्रियों, मन व बुद्धि' का अधिष्ठाता होता है । हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! तू (वाजान् अभि) = सब शक्तियों का लक्ष्य करके (प्रगाहसे) = इस शरीर राज्य का आलोडन करता है । सोम का यहाँ प्रवेश वस्तुतः सब शक्तियों के सञ्चार के दृष्टिकोण से होता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण के अनुपात में ही जीवन का आनन्द है । यह सोम ही इस शरीर राज्य को आत्माधिष्ठित बनाता है। यही सब शक्तियों को प्राप्त कराता है ।
विषय
वनस्थ और संन्यस्त जनों के कर्तव्य।
भावार्थ
हे (सोम) विद्वन् ! व्रतनिष्ठ ! अभिषिक्त ! (त्वां सुतम् अनु) तुझ अभिषिक्त दीक्षित के साथ ही हम भी (मदामसि) प्रसन्न होते हैं। हे (पवमान) पवित्र एवं पावन ! तू (महे) बड़े (स-मर्य-राज्ये) मनुष्यों सहित राज्य में राजा के तुल्य (वाजान् अभि) ज्ञानों और ऐश्वर्यों को लक्ष्य कर (प्र गाहसे) आगे बढ़। (२) इसी प्रकार राजा भी अभिषिक्त हो, उसके साथ प्रजा भी प्रसन्न हो। वह मनुष्यों से बसे राज्य में शत्रु-विजयार्थ सैन्यों के साथ देश-देशान्तर का विजय करे। (३) परमेश्वर उपासित होने से ‘सुत’ है, जीवमय जगत् रूप राज्य में समस्त ऐश्वर्यों का स्वामी है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्र्यरुणत्रसदस्यू ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, १२ निचृदनुष्टुप्। ३ विराडनुष्टुप्। १०, ११ अनुष्टुप्। ४, ७,८ विराडुबृहती। ५, ६ पादनिचृद् बृहती। ९ बृहती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
While you are with us at heart, O Soma, spirit of constant peaceful life, we rejoice with you in the great common-wealth order of governance where, dynamic, pure and purifying, you ever advance to victories in honour, excellence and glory.
मराठी (1)
भावार्थ
मंत्रात ऐश्वर्याचे लक्ष्य याचे तात्पर्य हे की ईश्वरात आध्यात्मिक व आधिभौतिक दोन्ही प्रकारचे ऐश्वर्य आहे. जे पुरुष मुक्तिसुखाचे लक्ष्य ठेवतात त्यांना नि:श्रेयसरूपी आध्यात्मिक ऐश्वर्य प्राप्त होते. जे सांसारिक सुखाला लक्ष्य बनवून ईश्वरपरायण असतात त्यांना परमात्मा अभ्युदयरूपी आधिभौतिक ऐश्वर्य प्रदान करतो. ॥२॥
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