ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 110/ मन्त्र 4
ऋषिः - त्रयरुणत्रसदस्यू
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्बृहती
स्वरः - मध्यमः
अजी॑जनो अमृत॒ मर्त्ये॒ष्वाँ ऋ॒तस्य॒ धर्म॑न्न॒मृत॑स्य॒ चारु॑णः । सदा॑सरो॒ वाज॒मच्छा॒ सनि॑ष्यदत् ॥
स्वर सहित पद पाठअजी॑जनः । अ॒मृ॒त॒ । मर्त्ये॑षु । आ । ऋ॒तस्य॑ । धर्म॑न् । अ॒मृत॑स्य । चारु॑णः । सदा॑ । अ॒स॒रः॒ । वाज॑म् । अच्छ॑ । सनि॑स्यदत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अजीजनो अमृत मर्त्येष्वाँ ऋतस्य धर्मन्नमृतस्य चारुणः । सदासरो वाजमच्छा सनिष्यदत् ॥
स्वर रहित पद पाठअजीजनः । अमृत । मर्त्येषु । आ । ऋतस्य । धर्मन् । अमृतस्य । चारुणः । सदा । असरः । वाजम् । अच्छ । सनिस्यदत् ॥ ९.११०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 110; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अमृत) हे शश्वदेकभाववन् परमात्मन् ! भवान् (मर्त्येषु, आ) जनानां सम्मुखी भवनाय (चारुणः, अमृतस्य, धर्मन्) रुचिराविनाशि-परमाणुधारकेऽन्तरिक्षे (अजीजनः) ग्रहादीन् उत्पादयामास (सदा, असरः) सदा विचरति च, अतः (वाजं, अच्छ) ऐश्वर्य्यमभिलक्ष्य (सनिष्यदत्) मद्भक्तेर्विषयो भवतु ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अमृत) हे सदा एकरस तथा जरामरणादि धर्मों से रहित परमात्मन् ! आप (मर्त्येषु, आ) मनुष्यों के सम्मुख होने के लिये (चारुणः, अमृतस्य, धर्मन्) सुन्दर अविनाशी परमाणुओं को धारण करनेवाले अन्तरिक्षदेश में (अजीजनः) सूर्य्यादि दिव्य पदार्थों को उत्पन्न करके (सदा, असरः) सदैव विचरते हो, इसलिये (वाजं, अच्छ) ऐश्वर्य्य को लक्ष्य रखकर (सनिष्यदत्) हमारी भक्ति का विषय हो ॥४॥
भावार्थ
हे परमात्मन् ! आप सदा एकरस सर्वत्र विराजमान और सदैव सब प्राणियों को अहर्निश देखते हुए विचरते हैं, अतएव प्रार्थना है कि आप हमें अपनी भक्ति का दान दें कि हम आपकी आज्ञा का पालन करते हुए ऐश्वर्य्यशाली हों। विचरने से तात्पर्य्य अपनी व्यापक शक्ति द्वारा सर्वत्र विराजमान होने का है, चलने का नहीं ॥४॥
विषय
अमृतत्व के साधन ऋत का धारण
पदार्थ
हे (अमृत) = रोगों से आक्रान्त न होने देनेवाले सोम ! तू (मर्त्येषु) = मनुष्यों में (चारुणः) = सुन्दर (अमृतस्य) = मृत्युरूप रोगों से बचानेवाले (ऋतस्य) = ऋत के यज्ञादि उत्तम कर्मों के व नियमितता [regularly] के (धर्मन्) = धारण के निमित्त (अजीजनः) = प्रकट हुआ है। सोमरक्षण से यज्ञादि उत्तम कर्मों में प्रवृत्ति बढ़ती है तथा जीवन नियमित होता है। ये ही बातें मनुष्य को रोगों से आक्रान्त होने से बचाती हैं। हे सोम ! तू (सनिष्यदत्) = अमृतता को देता हुआ (सदा) = हमेशा (वाजम् अच्छा) = शक्ति की ओर (असरः) = गतिवाला हुआ है। जीवन में शक्ति को देनेवाला यह सोम ही है ।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम अमृत के साधन ऋत के धारण के निमित्त उत्पन्न किया गया है । यह अमृतत्व को देता हुआ सदा शक्ति की ओर गतिवाला होता है ।
विषय
पक्षान्तर में परमेश्वर, राजा, विद्वान् के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (अमृत) अविनाशिन् ! हे दीर्घजीविन् ! तू (मर्त्येषु) मनुष्यों में (धर्मन्) धर्म में स्थित होकर (अमृतस्य) अविनाशी, कभी न नष्ट होने वाले (चारुणः) अति उत्तम, (ऋतस्य) सत्य ज्ञान को (अजीजनः) प्रकट कर। और (सदा) सदा (वाजम् सनिष्यदत्) ज्ञान को प्रदान करता हुआ (अच्छ असरः) आगे भ्रमण कर। (२) वीर राजा (वाजम् अच्छ सदा असरः) संग्राम को लक्ष्य कर आगे २ प्रयाण करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्र्यरुणत्रसदस्यू ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, १२ निचृदनुष्टुप्। ३ विराडनुष्टुप्। १०, ११ अनुष्टुप्। ४, ७,८ विराडुबृहती। ५, ६ पादनिचृद् बृहती। ९ बृहती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Immortal Soma, manifesting in mortal forms, radiating in the operative laws of eternal and immortal blissful dynamics of existence, vesting in mortals the energy and ambition to live, you move on ever in union with mortals and immortals.
मराठी (1)
भावार्थ
हे परमात्मा! तू सदैव एकरस सर्वत्र विराजमान व सदैव प्राण्यांना अहर्निश पाहात विचरण करतोस. त्यासाठी ही प्रार्थना आहे की तू आम्हाला आपल्या भक्तीचे दान दे. ज्यामुळे आम्ही आज्ञेचे पालन करत ऐश्वर्यवान व्हावे. विचरण करणे याचा अर्थ असा की आपल्या व्यापक शक्तीद्वारे सर्वत्र विराजमान होणे असा आहे, चालणे नव्हे. ॥४॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal