ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 110/ मन्त्र 3
ऋषिः - त्रयरुणत्रसदस्यू
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अजी॑जनो॒ हि प॑वमान॒ सूर्यं॑ वि॒धारे॒ शक्म॑ना॒ पय॑: । गोजी॑रया॒ रंह॑माण॒: पुरं॑ध्या ॥
स्वर सहित पद पाठअजी॑जनः । हि । प॒व॒मा॒न॒ । सूर्य॑म् । वि॒ऽधारे॑ । शक्म॑ना । पयः॑ । गोऽजी॑रया । रंह॑माणः । पुर॑न्ध्या ॥
स्वर रहित मन्त्र
अजीजनो हि पवमान सूर्यं विधारे शक्मना पय: । गोजीरया रंहमाण: पुरंध्या ॥
स्वर रहित पद पाठअजीजनः । हि । पवमान । सूर्यम् । विऽधारे । शक्मना । पयः । गोऽजीरया । रंहमाणः । पुरन्ध्या ॥ ९.११०.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 110; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे सर्वपावक परमात्मन् ! भवान् (पयः, विधारे) जलधारकेऽन्तरिक्षप्रदेशे (शक्मना) स्वशक्त्या (सूर्यं) रविम् (अजीजनः) उत्पादयति (गोजीरया) पृथिव्यादिलोकानां प्रेरिका या शक्तिः (पुरन्ध्या) याऽतिमहती ततोऽपि (रंहमाणः) अधिकवेगवानस्ति॥३॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! आप (पयः, विधारे) जलों को धारण करनेवाले अन्तरिक्षदेश में (शक्मना) अपनी शक्ति से (सूर्यं) सूर्य्य को (अजीजनः) उत्पन्न करते हैं और (गोजीरया, पुरन्ध्या) पृथिव्यादि लोकों को प्रेरणा करनेवाली बड़ी शक्ति से भी (रंहमाणः) अत्यन्त वेगवान् हैं ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र का भाव यह है कि वह परमपिता परमात्मा, जो अभ्युदय तथा निःश्रेयस का दाता है, उसका प्रभुत्व विद्युत् से भी अधिकतर है ॥३॥
Bhajan
आज का वैदिक भजन 🙏 1159
भाग 1/2
ओ३म् अजी॑जनो॒ हि प॑वमान॒ सूर्यं॑ वि॒धारे॒ शक्म॑ना॒ पय॑: ।
गोजी॑रया॒ रंह॑माण॒: पुरं॑ध्या ॥
ऋग्वेद 9/110/3
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
मिलता है इस विश्व को आश्रय
चहुं दिशी उसी की कृपा है,
अतिशय
चहुं दिशी उसकी कृपा है
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
वह ब्रह्माण्ड की वस्तुएँ रचता
करता है उनको परिपावन
ऽऽऽऽऽऽऽ
इसलिए कहलाता है वो सोम
है पवमान उसका दामन
सदा संलग्न ना रहते यदि प्रभु
कैसे इनका होता निर्वासन?
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
मलिन, विषैले अशुद्ध पदार्थ
बन जाते हैं कष्ट का कारण
ऽऽऽऽऽऽऽ
सूर्य, वायु, वृष्टि-माध्यम से
अपवित्रता का करे निवारण
कण-कण है प्रभु के आश्रय में
कैसा अद्भुत दान का सावन !
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
सूर्य के द्वारा सौरमण्डल का
करते हो तुम पूर्ण सञ्चालन
ऽऽऽऽऽऽऽ
चमकाया आध्यात्मिक सूर्य
आत्मा का भी किया प्रकाशन
मेघ से निर्झर जल बरसाया
कैसा आनन्द पा रहा आत्मन्
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
मिलता है इस विश्व को आश्रय
चहुं दिशी उसी की कृपा है,
अतिशय
चहुं दिशी उसकी कृपा है
सच्चिदानन्द सोम प्रभु के
कार्य बड़े महिमामय
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :-- १.११.२०११ २२.२५ रात्रि*
राग :- खमाज
गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर, ताल कहरवा 8 मात्रा
शीर्षक :- तुमने सूर्य बनाया,बादल बनाए 🎧७३६वां वैदिक भजन👏🏽 आज भाग १ कल दूसरा
*तर्ज :- *
742-00143
निर्वासन = निकलना और विसर्जन होना
परिपावन = अत्यंत पवित्र, पवमान
दामन = आंचल
संलग्न = पूर्णता से जुड़ा हुआ
मलिन = मैला
निवारण = दूर करना, हटाना
संचालन = नियंत्रण,चलाना
प्रकाशन = प्रकाश करने वाला
निर्झर = लगातार, बिना रुके
https://youtu.be/HmsjQDhEW6g?si=K-4oR9l1kM5FUPtF
Vyakhya
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
तुमने सूर्य बनाया,बादल बनाए
सच्चिदानन्द स्वरूप सोम प्रभु के कार्य बड़े ही महिमामय हैं। वह ब्रह्माण्ड की सब वस्तुओं का उत्पादक होने से सोम कहाता है और उन सब उत्पादित वस्तुओं को पवित्र करते रहने के कारण 'पवमान'
नाम से पुकारा जाता है। यदि उसकी पवित्र करने की क्रिया निरन्तर प्रवृत्त ना रहे, तो संसार की सब वस्तुएं इतनी मलिन, अपवित्र और विषैली हो जाएं कि समस्त प्राणियों के लिए विपत्ति आ खड़ी हो। वह प्रभु ही सूर्य वायु वृष्टि आदि के माध्यम से उत्पन्न वस्तुओं को सदा पवित्र करता रहता है और पवित्रता का माध्यम बनाने वाले सूर्य,वायु,जल आदि में भी पवित्रता लाता रहता है।
हे पवमान सोम परमेश्वर ! तुम्हारी एक अनोखी महिमा यह है कि तुमने 'सूर्य' को उत्पन्न किया है। अनगिनत सूर्य को तुमने गगन में चमकाया है और उन सबकी अधीनता में रहने वाले अनेक सौरमंडल भी बनाए हैं। यह सूर्य अपने-अपने सौर मण्डलों का संचालन कर रहे हैं। तुमने बाहर ही नहीं, किन्तु हमारे अन्दर भी आध्यात्मिक सूर्य को चमकाया है, जिससे हमारे आत्मा के सम्मुख प्रकाश ही प्रकाश हो गया है।
तुम्हारी दूसरी विशेषता यह है कि तुम विधारक अंतरिक्ष में अपनी शक्ति से मेघ-जल का संचय करते हो और फिर उसे संतप्त भूमि पर बरसा देते हो। आकाश में जल के संचित होने तथा उसके बरसने की कैसी अद्भुत प्रक्रिया है! बाहर के समान तुम हमारी आत्मा में भी आनन्द- रस को संचित करते हो।
तुम्हारी तीसरी विशेषता यह है कि भूमि को भी धुरी पर तथा अंडाकृति मार्ग पर सूर्य के चारों ओर गति देने के लिए निरन्तर क्रियाशील हो रहे हो। भूमि के घूमने के कारण दिन-रात्रि का तथा ऋतु का चक्र प्रवर्तन अनायास होता रहता है, यह क्या कम अचरज की बात है! इसी प्रकार शरीर में मुख से वाणी का उच्चारण कराने के लिए तुमने जो उत्तम व्यवस्था की हुई है वह भी अनोखी है।
हे परमेश! यूं तो तुम्हारी अनगिनत विशेषताएं हैं, जिन पर हम मुग्ध हुए बिना रह नहीं सकते, पर उक्त मन्त्र में परि गणित विशेषताओं से ही हम तुम्हारे प्रति बार-बार नतमस्तक हो रहे हैं।
वाह! परमेश! वाह !
विषय
गोजीरया पुरुन्ध्या
पदार्थ
हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! तू (हि) = निश्चय से (विधारे) = विशिष्ट धारण के निमित्त (सूर्यं अजीजन:) = ज्ञानसूर्य को उदित करता है । सोमरक्षण से मस्तिष्क की पवित्रता होकर ज्ञान प्राप्ति की अनुकूलता होती है। शक्मना हे सोम ! तू अपनी शक्ति से (पयः) = [अजीजन:] प्राप्यायन को प्राप्त करानेवाला हो । (गोजीरया) = इन्द्रियों को उत्तम कर्मों में प्रेरित करनेवाली (पुरन्ध्या) = पालक बुद्धि के साथ (रहमाण:) = शरीर में तीव्र गतिवाला होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम ज्ञानसूर्य को उदित करता है। शक्ति से अंगों का अप्यायन करता है, इन्द्रियों को प्रेरित करनेवाली बुद्धि से हमें प्राप्त होता है।
विषय
पक्षान्तर में परमेश्वर, राजा, विद्वान् के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (पवमान) सब को पवित्र करने और विश्व में व्यापने वाले ! तू (वि-धारे) विविध लोकों को कारण करने वाले अन्तरिक्ष में (शक्मना) अपनी महान् शक्ति से (सूर्यम् अजीजनः) सूर्य को प्रकट करता है। और (पयः) पोषक अन्न और जल को भी उत्पन्न कर है। और (पुरन्ध्या) विश्व के पोषक बल से और (गो-जीरया) पृथ्वी और रश्मियों को प्रेरित करने वाली शक्तियों से (रंहमाणः) संञ्चालित करता है। (२) इसी प्रकार राजा और विद्वान् वाणी और बुद्धि से यत्न करते हैं और वे तेजस्वी पुरुष को विशेष प्रजापालक पद पर स्थापित करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्र्यरुणत्रसदस्यू ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, १२ निचृदनुष्टुप्। ३ विराडनुष्टुप्। १०, ११ अनुष्टुप्। ४, ७,८ विराडुबृहती। ५, ६ पादनिचृद् बृहती। ९ बृहती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, pure, purifying and dynamic by your essential omnipotence, mighty moving with cosmic intelligence and ignition of oceanic particles of Prakrti, you create the sun, generate bio-energy in all containing space and set in motion the stars and planets of the universe.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्राचा भाव हा आहे की तो परमपिता परमात्मा जो अभ्युदय व नि:श्रेयसचा दाता आहे. त्याचे प्रभुत्व विद्युतहूनही अधिक आहे. ॥३॥
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