ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 110/ मन्त्र 12
ऋषिः - त्रयरुणत्रसदस्यू
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
स प॑वस्व॒ सह॑मानः पृत॒न्यून्त्सेध॒न्रक्षां॒स्यप॑ दु॒र्गहा॑णि । स्वा॒यु॒धः सा॑स॒ह्वान्त्सो॑म॒ शत्रू॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठसः । प॒व॒स्व॒ । सह॑मानः । पृ॒त॒न्यून् । सेध॑न् । रक्षां॑सि । अप॑ । दुः॒ऽगहा॑णि । सु॒ऽआ॒यु॒धः । स॒स॒ह्वान् । सो॒म॒ । शत्रू॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
स पवस्व सहमानः पृतन्यून्त्सेधन्रक्षांस्यप दुर्गहाणि । स्वायुधः सासह्वान्त्सोम शत्रून् ॥
स्वर रहित पद पाठसः । पवस्व । सहमानः । पृतन्यून् । सेधन् । रक्षांसि । अप । दुःऽगहाणि । सुऽआयुधः । ससह्वान् । सोम । शत्रून् ॥ ९.११०.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 110; मन्त्र » 12
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 6
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सः) स परमात्मा (दुर्गहानि) दुर्दमानि (पृतन्यून्, रक्षांसि) संग्रामाभिलाषि राक्षसान् (अप, सेधन्) अपनयन् (पवस्व) मां रक्षतु (सहमानः) सहनशीलः (स्वायुधः) स्वयम्भूः (शत्रून्, ससह्वान्) शत्रून् तिरस्कुर्वन् मा संरक्षतु ॥१२॥ इति दशोत्तरशततमं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! आप (पृतन्यून्, रक्षांसि) संग्राम की कामना करनेवाले राक्षसों को (दुर्गहानि) जो दुर्गम हैं (अप, सेधन्, पवस्व) दूर करते हुए हमारी रक्षा करें (सहमानः) सहनशील (स्वायुधः) स्वयम्भू (शत्रुन्) शत्रुओं का (ससह्वान्) तिरस्कार करते हुए (सः) आप हमें अभय प्रदान करें ॥१२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा से यह प्रार्थना की गई है कि हे भगवन् ! आप कुमार्ग में प्रवृत्त दुष्ट पुरुषों से हमारी रक्षा करें। जिनसे रक्षा की जाती है, उनका नाम “राक्षस” है, सो हे पिता ! आप सम्पूर्ण विघ्नकारी पुरुषों से हमारी रक्षा करते हुए हमें अभय प्रदान करें ॥१२॥ यह ११० वाँ सूक्त और तेईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
सहमान: स्वायुधः
पदार्थ
हे (सोम) = वीर्य! (सः) = वह तू (पवस्व) = हमें प्राप्त हो । (पृतन्यून्) = आक्रान्त शत्रुओं को (सहमान:) = कुचलता हुआ, तू (दुर्गहाणि) = जिनका निग्रह बड़ा कठिन है, ऐसे (रक्षांसि) = राक्षसी भावों को (अपसेधन्) = हमारे से दूर भगाता है। (स्वायुधः) = तू इस जीवन संग्राम के 'इन्द्रिय, मन व बुद्धि' रूप उत्तम आयुधों वाला है। इन आयुधों के द्वारा तू (शत्रून्) = काम-क्रोध व लोभ रूप शत्रुओं को (सासह्वान्) = खूब ही कुचल डालता है। प्रशस्त इन्द्रियाँ काम के वशीभूत नहीं होती। निर्मल मन को क्रोध अशान्त नहीं कर पाता तथा तीक्ष्ण बुद्धि लोभ का शिकार नहीं हो जाती ।
भावार्थ
भावार्थ-सोम हमें प्राप्त होता है तो हमारे शत्रुओं को कुचल डालता है । 'इन्द्रिय, मन व बुद्धि' रूप आयुधों को प्रशस्त बनाता है उत्तम आयुधों वाला यह पुरुष 'अनानत' होता है, शत्रुओं से नत नहीं किया जाता। तथा सोमरक्षण के द्वारा अंग-प्रत्यंग में, पर्व- पर्व में शक्ति वाला 'पारुच्छेपि' बनता है। यह सोम शंसन करता हुआ कहता है-
विषय
दुर्गम तारक प्रभु।
भावार्थ
हे (सोम) शास्तः ! (सः) वह तू (पृतन्यून्) संग्राम में आगे बाधक शत्रुओं को (सहमानः पवस्व) सबको पराजित करता हुआ राजा के समान कण्टक-शोधनवत् हृदय को पवित्र करता हुआ (दुर्गहाणि रक्षांसि) बड़ी कठिनता से वश में आने वाले, दुःसाध्य दुष्ट भावों को (अप सेध) दूर कर। और तू (सु-आयुधः) उत्तम आयुधों से सम्पन्न होकर (शत्रून् सासह्वान्) दुःखदायी शत्रुओं को पराजित करने हारा हो। इति त्रयोविंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्र्यरुणत्रसदस्यू ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, १२ निचृदनुष्टुप्। ३ विराडनुष्टुप्। १०, ११ अनुष्टुप्। ४, ७,८ विराडुबृहती। ५, ६ पादनिचृद् बृहती। ९ बृहती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, spirit of power, patience and fortitude, wielder of mighty arms, flow pure, protect and purify us, warding off fighting forces of evil, eliminating difficulties, and challenging and defeating enemies.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमात्म्याला ही प्रार्थना केलेली आहे की हे भगवान! तू कुमार्गात प्रवृत्त दुष्ट पुरुषांपासून आमचे रक्षण कर. ज्यांच्यापासून रक्षण केले जाते त्यांचे नाव ‘राक्षस’ आहे. त्यासाठी हे पिता! तू संपूर्ण विघ्नकारी पुरुषांपासून आमचे रक्षण करत आम्हाला अभय प्रदान कर. ॥१२॥
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