ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 110/ मन्त्र 7
ऋषिः - त्रयरुणत्रसदस्यू
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्बृहती
स्वरः - मध्यमः
त्वे सो॑म प्रथ॒मा वृ॒क्तब॑र्हिषो म॒हे वाजा॑य॒ श्रव॑से॒ धियं॑ दधुः । स त्वं नो॑ वीर वी॒र्या॑य चोदय ॥
स्वर सहित पद पाठत्वे इति॑ । सो॒म॒ । प्र॒थ॒माः । वृ॒क्तऽब॑र्हिषः । म॒हे । वाजा॑य । श्रव॑से । धिय॑म् । द॒धुः॒ । सः । त्वम् । नः॒ । वी॒र॒ । वी॒र्या॑य । चो॒द॒य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वे सोम प्रथमा वृक्तबर्हिषो महे वाजाय श्रवसे धियं दधुः । स त्वं नो वीर वीर्याय चोदय ॥
स्वर रहित पद पाठत्वे इति । सोम । प्रथमाः । वृक्तऽबर्हिषः । महे । वाजाय । श्रवसे । धियम् । दधुः । सः । त्वम् । नः । वीर । वीर्याय । चोदय ॥ ९.११०.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 110; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) सर्वोत्पादक ! (प्रथमाः) प्राचीनाः (वृक्तबर्हिषः) उच्छिन्नकामाः (त्वे) भवति (महे, वाजाय) महते यज्ञाय (श्रवसे) ऐश्वर्य्याय च (धियं, दधुः) कर्मरूपबुद्धिं दधति (वीर) हे सर्वोपरि बलवन् ! (सः, त्वं) स भवान् (नः) अस्मान् (वीर्याय) वीरपुरुषगतगुणाय (चोदय) प्रेरयतु ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (प्रथमाः) प्राचीन लोग (वृक्तबर्हिषः) जिन्होंने अपनी कामनाओं का उच्छेदन कर दिया है, वे (त्वे) आपमें (महे, वाजाय) बड़े यज्ञ के लिये अथवा (श्रवसे) ऐश्वर्य्य के लिये (धियं, दधुः) कर्मरूप बुद्धि को धारण करते हैं। (वीर) हे सर्वोपरि बलस्वरूप परमात्मन् ! (सः, त्वं) वह आप (नः) हमको (वीर्याय) वीरपुरुषों में होनेवाले गुणों के लिये (चोदय) प्रेरणा करें ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा से यह प्रार्थना की गई है कि हे भगवन् ! हम बड़े-बड़े यज्ञ करते हुए ऐश्वर्यसम्पादन करें अथवा वीर पुरुषों के गुणों को धारण करते हुए बलवान् बनें, क्योंकि आप ही की कृपा से मनुष्य वीरतादि गुणों को धारण कर सकता है, अन्यथा नहीं ॥७॥
विषय
वाजाय श्रवसे
पदार्थ
हे (सोम) = वीर्य ! (त्वे) = तेरे में अर्थात् शरीर में तेरे स्थित होने पर ये सोम धारक पुरुष (प्रथमाः) = विस्तृत शक्तियों वाले होते हैं और (वृक्तबहिषः) = हृदय रूप क्षेत्र से वासनारूप घास-फूस को उखाड़नेवाले होते हैं ये (महे वाजाय) = महान् शक्ति के लिये तथा (श्रवसे) = ज्ञान प्राप्ति के लिये (धियं दधुः) = बुद्धिपूर्वक कर्मों को धारण करते हैं। सोमरक्षण ही इन्हें इस योग्य बनाता है। हे (वीर) = शत्रुओं को कम्पित करनेवाले सोम ! (सः) = वह (त्वम्) = तू (नः) = हमें (वीर्याय) = शक्तिशाली कर्मों के लिये (चोदय) = प्रेरित कर । तेरे रक्षण से शक्तिशाली कर्मों को करते हुए हम सदा वासना रूप शत्रुओं को कम्पित करके दूर करनेवाले हों।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम 'शक्ति विस्तार, पवित्र हृदय, ज्ञान व वीर्य' को प्राप्त करते हैं, सब शत्रुओं को कम्पित करनेवाले होते हैं ।
विषय
प्रभु के साक्षात् के लिये जितेन्द्रियता की साधना।
भावार्थ
हे (सोम) सर्व जगत् के उत्पादक ! प्रभो ! (प्रथमाः) पहले श्रेष्ठ जन (वृक्तबर्हिषः) काम क्रोध आदि शत्रुओं को तृणों के तुल्य छेदन करते हैं। (महे वाजाय) बड़े भारी ज्ञान, बल और ऐश्वर्य को प्राप्त करने के लिये (वे) तेरे सम्बन्ध में ही (श्रवसे) ज्ञानोपदेश श्रवण के लिये (धियं दधुः) कर्म और बुद्धि को लगाते हैं। (सः त्वम्) वह तू हे (वीर) विशेष मार्ग में प्रेरक ! बलशालिन् ! (नः) हमें भी (वीर्याय) उस पर उपदेश्य ज्ञान और वस्तु को प्राप्त करने के लिये (चोदय) प्रेरित कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्र्यरुणत्रसदस्यू ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, १२ निचृदनुष्टुप्। ३ विराडनुष्टुप्। १०, ११ अनुष्टुप्। ४, ७,८ विराडुबृहती। ५, ६ पादनिचृद् बृहती। ९ बृहती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Into you, O Soma, did ancient sages of uninvolved mind with yajnic dedication concentrate and focus their mind and senses for the attainment of a high order of spiritual enlightenment. O Soma spirit of divinity that enlightened the sages, pray inspire and enlighten us too with that same divine manliness of vision and action.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराला प्रार्थना केलेली आहे की, हे भगवान! आम्ही मोठमोठे यज्ञ करत ऐश्वर्य संपादन करावे अथवा वीर पुरुषांच्या गुणांना धारण करून बलवान बनावे. कारण तुझ्या कृपेनेच माणूस वीरता इत्यादी गुण धारण करून शकतो, अन्यथा नाही. ॥७॥
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